5 राज्यों में करारी हार के बाद इन 5 सवालों को नजरअंदाज नहीं कर सकते नरेंद्र मोदी

2
54
Modi: 5 राज्यों में करारी हार के बाद इन 5 सवालों को नजरअंदाज नहीं कर सकते

5 राज्यों में करारी हार के बाद इन 5 सवालों को नजरअंदाज नहीं कर सकते नरेंद्र मोदी

दिल्ली। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद कभी इतनी करारी हार नहीं हुई थी। 2013 में जिन राज्यों में जीत के बाद मोदी (Modi) लहर की शुरुआत हुई थी, उन्हीं राज्य में हार के बाद अब कहा जा रहा है कि मोदी लहर खत्म हो गई है। ये नतीजे 2019 चुनाव से ठीक पहले आए हैं। ऐसे में 2019 के लिए मोदी सरकार को अपनी रणनीति में बदलाव लानी होगी।

क्या ये राहुल युग की शुरुआत है?

राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद अब ताकतवर नेता के तौर पर उभरे हैं। इन राज्यों में चुनाव से पहले कर्नाटक और गुजरात में इसकी झलक दिखी है। गुजरात में पार्टी को मजबूत किया तो कर्नाटक में अपनी सूझबूझ से बीजेपी को सरकार बनाने से रोक दिया। ऐसे में राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस के नए युग को शुरुआत हो रहा है। जिसे मोदी (Modi) को अब नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।

2019 से पहले सुधारना होगा

2013 में जब नरेंद्र मोदी (Modi) को पीएम उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट किया गया तो वे भारतीय राजनीति के इतिहास में अब तक के सबसे गैर कांग्रेसी नेता के रूप में उभरे। लेकिन अब जादू फीका पड़ता नजर आ रहा है। पांच राज्यों के नतीजे उनके जादुई नेतृत्व पर अब सवाल खड़ा कर रहा है। नतीजों से जाहिर हो रहा है कि ये मोदी (Modi) विरोधी रुझान का संकेत है। ऐसे में उन्हें पार्टी में लोकतंत्र और सत्ता में भागीदारी बनाए रखना होगा। क्योंकि पार्टी और सरकार में मोदी-शाह (Modi) का एकछत्र राज्य है। इसे लेकर विरोध के स्वर उठते भी रहे, विरोध करने वाले पार्टी में हाशिए पर चले गए। जिसे 2019 से पहले सुधारना होगा।

तीसरा मोदी (Modi) के लिए 2014 वाले एनडीए को बनाए रखने की भी चुनौती है। उस वक्त तमाम क्षेत्रीय पार्टियां बीजेपी के साथ आई थी। अब टीडीपी और उपेंद्र कुशवाहा एनडीए छोड़कर चले गए हैं। वहीं, शिवसेना भी नाराज चल रही है। ऐसे में मोदी को जो बचे हुए साथी हैं, उन्हें साथ बनाए रखना होगा।

संयम बरतने की नसीहत

वहीं, सत्ता के नशे में भाजपा नेताओं के जुबान भी बेलगाम हो गए हैं। खुद प्रधानमंत्री मोदी (Modi) भी कई बार भाषाई मर्यादा का लांघ जाते हैं। ऐसे में भाषा के लिहाज से भी संयम बरतना होगा। वहीं, नोटबंदी, जीएसटी, किसानों की बदहाली, बेरोजगारी और भगोड़े पूंजीपतियों के भ्रष्टाचार को लेकर मोदी (Modi) को खुद आगे आकर जवाब देना चाहिए। पीएम बनने के साढ़े चार साल बाद वे भी कभी मीडिया से बात करने सामने नहीं आए।

बीजेपी में मोदी (Modi) का उभार ही उग्र हिंदुत्व के चेहरे के तौर पर हुआ है। लेकिन वे राम मंदिर के सवाल पर बचते रहे हैं। जातीय राजनीति को लेकर भी बीजेपी का रवैया अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नजर आता है। खासकर हिंदी पट्टी के इलाकों में जातीय रणनीति ठीक तरह न बना पाने की वजह से कहीं सवर्ण बीजेपी से नाराज हैं तो कहीं ओबीसी।

2 COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.