जानें, क्या है शिव की प्रिय कांवड़ यात्रा का रहस्य, इससे जुड़ी मान्यताएं

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कांवड़ यात्रा से जुड़ी पहली मान्यता

कांवड़ यात्रा से जुड़ी पहली मान्यता

दिल्ली। हिंदू धर्म के अनुसार सावन भगवान शिव का प्रिय माह है। जिस कारण इस महीने में भोलेनाथ के भक्त उनकी प्रिय कांवड़ यात्रा निकालते हैं। लेकिन इसके बारे में शायद ही किसी को पता होगा। तो आइए जानते हैं कि इससे जुड़ी मान्यताओं का क्या कहना है।

कुछ पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सबसे पहले कांवड़िया भगवान राम थे। कहा जाता है कि उन्होंने सुल्तानगंज से कांवड़ में गंगाजल लाकर बाबा धाम के शिवलिंग का जलाभिषेक किया था। इसके अलावा कांवड़ से जुड़ी कई और कथा प्रचलित हैं।

कांवड़ यात्रा से जुड़ी पहली मान्यता

इसमें सबसे ज्यादा विवाद पहले कांवड़िये को लेकर है। कुछ लोगों का मानना है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने उत्तर प्रदेश के बागपत के पास स्थित पुरा महादेव का कांवड़ से गंगाजल लाकर जलाभिषेक किया था। परशुराम इस प्राचीन शिवलिंग का जलाभिषेक करने के लिए गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जी का जल लाए थे।

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आज भी इस परंपरा का अनुपालन करते हुए सावन के महीने में गढ़मुक्तेश्वर से जल लाकर लाखों लोग पुरा महादेव का जलाभिषेक करते हैं। गढ़मुक्तेश्वर का वर्तमान नाम ब्रजघाट है।

कांवड़ यात्रा से जुड़ी दूसरी मान्यता

वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि पहली बार श्रवण कुमार ने त्रेता युग में कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी। अपने दृष्टिहीन माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराते समय जब वह हिमाचल के ऊना में थे तब उनसे उनके माता-पिता ने हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा के बारे में बताया। उनकी इस इच्छा को पूरा करने के लिए श्रवण कुमार ने उन्हें कांवड़ में बैठाया और हरिद्वार लाकर गंगा स्नान कराए। वहां से वह अपने साथ गंगाजल भी लाए। माना जाता है कि तभी से कांवड यात्रा की शुरुआत हुई।

कांवड़ यात्रा से जुड़ी तीसरी मान्यता

कुछ हिंदू पुराणों की मानी जाए तो इस यात्रा की शुरुआत समुद्र मंथन के समय से हुई थी। समुद्रमंथन के दौरान निकले हलाहल विष को पीने के बाद भगवान शिव का गला नीला हो गया था। साथ ही उनके शरीर में बुरा असर पड़ने लगे थे। जिसे देखकर देवता चिंतित हो उठे। विष के प्रभाव को कम करने के लिए चिंतित देवताओं ने पवित्र और शीतलता का पर्याय गंगा जल शिव के शरीर में चढ़ाया। गंगा जल से जलाभिषेक करने से कुछ ही समय में देवताओं की मेहनत रंग लाई और भोलेनाथ का शरीर समान्य होने लगा। इसी के बाद से कहा जाता है कि यह यात्रा शुरू हुई। लेकिन ऐसे शिव की इस प्रिय कांवड़ यात्रा को लेकर कई मान्यताओं प्रचलित है।

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