नरोदा पाटिया केस के बारे में आप कितना जानते हैं? 97 लोगों की हुई थी हत्या

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97 लोगों की हुई थी हत्या

गुजरात के अहमदाबाद में साल 2002 में हुए नरोदा पाटिया दंगा केस में हाईकोर्ट का फैसला आ चुका है। कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा दोषी करार दी गई पूर्व बीजेपी विधायक माया कोडनानी को बरी कर दिया है। वहीं, दूसरे दोषी बाबू बजरंगी की 21 साल की सजा को बरकरार रखा गया है।

97 लोगों की हुई थी हत्या

इस दंगे में कुल 97 लोगों की हत्या हुई थी। आइए आपको नरोदा पाटिया केस से जुड़ी कुछ अहम बातों के बारे में बताते हैं।

दरअसल, गुजरात में हुए गोधरा कांड के बाद प्रदेश के कई हिस्सों में दंगा भड़क गई थी। गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में आग लगा दी गई थी, जिसमें 59 कारसेवकों की मौत हो गई थी।

इसी के विरुद्ध में विश्व हिंदू परिषद ने 28 फरवरी 2002 को बंद का अह्वान किया था। इसी दौरान नरोदा पाटिया इलाके में उग्र भीड़ ने अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों पर हमला कर दिया था।

इस उग्र भीड़ ने नरोदा पाटिया इलाके के कई घरों को जला दिया था। जिसमें 97 लोगों की हत्या कर दी गई थी और 33 लोग घायल हुए थे।

97 लोगों की हुई थी हत्या

पूर्व मंत्री भी आरोपी

इस केस में पूर्व मंत्री माया कोडनानी को आरोपी बनाया गया था। दंगे के समय वह नरोदा से विधायक थीं।

2002 के गुजरात दंगों में उनका नाम सामने आया। 2002 में ही हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में वे फिर से विधायक चुनी गईं।

97 लोगों की हुई थी हत्या

2007 के गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान भी माया फिर से विधायक चुनी गईं। इसके बाद वह गुजरात सरकार में मंत्री बन गईं। नरोदा पाटिया दंगा मामले में माया कोडनानी पर आरोप था कि माया ने दंगाई भीड़ का नेतृत्व किया था।

नरोदा पाटिया कांड का मुकदमा अगस्त 2009 में शुरू हुआ था और 62 आरोपियों के खिलाफ आरोप दर्ज किए गए थे। सुनवाई के दौरान एक अभियुक्त विजय शेट्टी की मौत हो गई थी।

327 लोगों के बयान दर्ज

अदालत ने सुनवाई के दौरान 327 लोगों के बयान दर्ज किए। इनमें कई पीड़ित, पत्रकार, डॉक्टर, पुलिस अधिकारी और सरकारी अधिकारी शामिल थे।

97 लोगों की हुई थी हत्या

29 अगस्त 2012 को एसआईटी स्पेशल अदालत ने माया कोडनानी समेत 32 लोगों को सजा सुनाई। कोडनानी को 28 साल की जेल हुई थी। जबकि बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी को 21 साल की सजा हुई थी।

वहीं, सात दोषियों को 21 साल की आजीवन कारावास और शेष अन्य को 14 साल के साधारण आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।

निचली अदालत ने सबूतों के अभाव में 29 आरोपियों को बरी कर दिया था। जिन्हें सजा हुई थी, उन्होंने निचली अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

वहीं, इस केस में हाईकोर्ट के दो जजों की बेंच ने पिछले साल अगस्त में फैसला सुरक्षित रख लिया था। जिसपर शुक्रवार को कोर्ट ने अपना फैसला दिया है।

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