सवर्ण आंदोलन: फीडबैक से बढ़ी मोदी सरकार की चिंता, सरकार ने निकाला ये उपाय

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सवर्ण आंदोलन: फीडबैक से बढ़ी मोदी सरकार की चिंता

दिल्ली। सवर्ण तबके के प्रदर्शन ने मौजूदा सरकार की माथे पर बल ला दिया है. हिन्दी भाषी राज्यों में सवर्ण सबसे ज्यादा ऐक्टिव दिख रहे हैं. अपनी मांगों को लेकर शायद ही ये तबका कभी सड़कों पर उतरा हो. मगर हाल के दिनों में जिस तरह के विरोध प्रदर्शन दिख रहा है, उससे सत्ताधारी बीजेपी की परेशानी जरूर बढ़ती दिख रही है.

सवर्ण सबसे ज्यादा ऐक्टिव

एससी-एसटी ऐक्ट में तब्दीली के बाद से ओबीसी और सवर्ण ज्यादा मुखर दिख रहे हैं. इनकी आवाज को दबाने या यूं कहें की मनाने की रणनीति पर काम हो रही है. बीजेपी के मैनेजर्स मंथन कर रहे हैं. इसकी काट खोज रहे हैं. क्योंकि सरकार और पार्टी के लेवल पर मिले फीडबैक के बाद चिंता और बढ़ गई है. आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी ऐक्ट में बदलाव का आदेश देते हुए इसमें गिरफ्तारी से पहले जांच का आदेश दिया था. मगर केंद्र सरकार ने संसद के जरिए कोर्ट के आदेश को पलट दिया. इसके बाद से ही देश के अलग-अलग हिस्सों में सवर्ण आंदोलन शुरू हुआ.

नीतीश कुमार पर फेंकी चप्पल

एससी-एसटी कानून को लेकर शुरू हुआ प्रदर्शन अब सवर्ण आरक्षण की मांग तक पहुंच चुका है. इसमें सवर्ण सबसे ज्यादा ऐक्टिव दिख रहे हैं. शायद ही कोई दिन गुजरता हो जब अलग-अलग राज्यों में बीजेपी नेताओं को विरोध का सामना न करना पड़ता हो. आलम ये है कि आरक्षण की मांग को लेकर पटना में एक सवर्ण युवक ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कार्यक्रम में चप्पल उछाल दी. बीजेपी और कांग्रेस ऑफिस पर पहले ही सवर्ण सेना से जुड़े लोग धावा बोल चुके हैं. बिहार से आनेवाले केंद्रीय मंत्रियों के कार्यक्रम में नारेबाजी कर चुके हैं. रास्ते में काला झंडा तो कई बार दिखाया जा चुका है. सवर्ण सेना से जुड़े लोग कई बार रास्ते में मंत्रियों के काफिले को रोक लेते हैं और मांगें नहीं माने जाने पर वोट नहीं देने की चेतावनी भी देते हैं.

सवर्ण-ओबीसी नेताओं को टिकट?

केंद्रीय नेतृत्व को लगातार इसका फीडबैक मिल रहा है. सवर्ण और पिछड़े तबके के आंदोलन पर अब सरकार नफा-नुकसान का आकलन करने में जुटी है. इस मुद्दे पर सवर्ण सबसे ज्यादा ऐक्टिव हैं. दलितों को खुश करने के चक्कर में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले तो संसद के जरिए बदल तो दिया, मगर ग्राउंड लेवल पर समीकरण गड़बड़ा गया. पूरे मामले को सियासी हवा दी गई और अब सवर्ण सबसे ज्यादा ऐक्टिव हैं. डैमेज कंट्रोल की कोशिशें की जा रही है. अब पार्टी के सवर्ण नेता अलग जिलों में जाकर पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ मीटिंग कर रहे हैं. ताकि बूथ लेवल पर चीजें अनबैलेंस न हो. हालांकि अब तक जो सरकार का स्टैंड है उसके मुताबिक वो एससी-एसटी पर अपने फैसले से पीछे नहीं हटेगी.

दरअसल पार्टी को लगता है कि 2014 में दलितों के एक बड़े हिस्से ने बीजेपी को वोट दिया था. ऐसे में 2019 चुनाव के वक्त बढ़त को खोना नहीं चाहती है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक आगामी चुनावों में सवर्ण और ओबीसी नेताओं को पार्टी ज्यादा टिकट दे सकती है. मोदी सरकार की योजनाओं को गिनाया जा सकता है. सवर्ण और ओबीसी नेताओं को इस काम में लगाया जा सकता है.

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