/2019 से पहले गठबंधन की गांठ मजबूत करने में लगे शाह, बिना इन तीनों को मनाए जीत है मुश्किल
2019 से पहले गठबंधन की गांठ मजबूत करने में लगे शाह

2019 से पहले गठबंधन की गांठ मजबूत करने में लगे शाह, बिना इन तीनों को मनाए जीत है मुश्किल

2019 से पहले गठबंधन की गांठ मजबूत करने में लगे शाह

दिल्ली। हाल ही में सम्पन्न हुए उपचुनावों में भाजपा की करारी हार हुई है। इसके साथ ही भाजपा के सहयोगी दलों में नाराजगी बढ़ती जा रही है। इन हार के बावजूद अब तक खामोश रहे दल बीजेपी को आंख दिखाने लगे हैं। ऐसे में समय रहते हुए भाजपा इन्हें मनाने में जुट गई है।

इसकी कमान खुद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने संभाल रखी है। क्योंकि 2019 की राजनीतिक स्थिति बिल्कुल बदल गई है। मोदी विरोधी सभी दल मतभेद को भुलाकर भाजपा को रोकने के लिए एक मंच पर आने को तैयार हैं।

ये भी पढ़ें:

2019 के लिए राहुल ने बनाया नया विभाग, इस शख्स को दी है जिम्मेवारी

सहयोगियों को मनाने में जुटे शाह

विरोधी दलों के एक मंच पर आना ही भाजपा के लिए उपचुनावों में हार का कारण बनी है। ऐसे में अब पुराने दोस्तों की नाराजगी का खामियाजा कितना बड़ा होगा, इसका अंदाजा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को बखूबी है। इसलिए 2019 को जीतना है तो एक रणनीति के तहत भाजपा अपने प्रमुख तीन सहयोगी दलों को मनाने में जुटी है।

भाजपा के तीन प्रमुख सहयोगी दल शिवसेना, जेडीयू और शिरोमणि अकाली दल किसी न किसी वजह से नाराज चल रहे हैं। उन्हें मनाने का जिम्मा अब बीजेपी अध्यक्ष ने खुद ही उठा लिया है।

मुंबई के मातोश्री में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से अमित शाह ने मुलाकात की। उसके बाद चंडीगढ़ में शिरोमणि अकाली दल के नेताओं से मुलाकात की. वे पटना में बिहार एनडीए के नेताओं से भी मिलनेवाले हैं.

इन दलों ने खुलकर तो कभी नाराजगी वजह नहीं बताई, मगर सहयोगी पार्टी के नेताओं के द्वारा भाजपा पर यह आरोप जरूर लगती है कि वह सहयोगियों की अनदेखी करती है। ऐसे में अमित शाह के सामने चुनौती यह है कि अब जो लोग एनडीए के साथ बचे हैं, उन्हें 2019 तक रोके रखना है।

जेडीयू

सबसे पहले बात जेडीयू की करते हैं। पूर्वी भारत में बीजेपी की सबसे बड़ी सहयोगी पार्टी है। लेकिन बिहार में अब जेडीयू बड़े भाई की भूमिका चाहती है। यानी कि जेडीयू 2019 के चुनाव में लोकसभा के 40 सीटों में से 25 चाहती है। बाकी के 15 सीटों पर बीजेपी और सहयोगी दल।

वहीं, पिछले चुनाव बीजेपी, एलजेपी और आरएलएसपी मिलकर बिहार के 40 में से 31 सीटों पर काबिज है। इसके साथ ही नीतीश बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलने से भी नाखुश हैं। लेकिन बदले परिस्थितियों में वो बीजेपी के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। इसलिए पार्टी उन्हें मनाने में जुटी है।

शिवसेना

वहीं, शिवसेना भाजपा के सबसे पुराने सहयोगियों में से एक है। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही दोनों दलों के बीच खटास बढ़ती गई। शिवसेना ऐलान कर चुकी है कि 2019 का चुनाव वह अकेली लड़ेगी।

महाराष्ट्र के पालघर में हुए उपचुनाव में शिवसेना और भाजपा अलग-अलग चुनाव लड़ी थी। लेकिन शिवसेना चुनाव हार गई। उसके बाद दोनों दलों में और तानातनी बढ़ गई। लेकिन जब महाराष्ट्र में सभी विरोधी दल एकजुट हो रहे हैं तो शाह उद्धव को मनाने में लगे हैं।

शिरोमणि अकाली दल

इसके साथ ही भाजपा के पुराने साथियों में से एक शिरोमणि अकाली दल भी है। अकाली दल भी इन दिनों भाजपा से खफा चल रही है। अकाली दल ने खुद को एनडीए में अलग-थलग बताकर लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने का ऐलान कर दिया है। ऐसे में उन्हें मनाने के लिए अमित शाह चंडीगढ़ में अकाली दल के नेताओं से मुलाकात की.