22 साल की उम्र में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुख्य मार्गदर्शक बनानेवाले, तीन दशकों से विश्व हिन्दू परिषद के साथ रहनेवाले, 2011 से वीएचपी के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष और नामचीन कैंसर डॉक्टर प्रवीण तोगड़िया की कुर्सी हिलानेवाले विष्णु सदाशिव कोक्जे को आप कितना जानते हैं.
आज की नौजवान पीढ़ी वीएचपी का मतलब प्रवीण तोगड़िया समझती है जो अल्पसंख्यकों के बारे में कम से कम ‘अच्छा’ तो नहीं ही बोलते हैं.
52 साल में पहली बार चुनाव
विश्व हिन्दू परिषद की 52 साल की इतिहास में पहलीबार गोपनीय बैलेट के जरिए मतदान हुआ. प्रवीण तोगड़िया सीधे-सीधे मैदान में तो नहीं थे लेकिन इनके समर्थन से राघव रेड्डी मुकाबले में थे.
मगर बाजी लगी हिमाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल विष्णु सदाशिव कोक्जे के हाथों. इसका मतलब ये हुआ हुआ कि अब प्रवीण तोगड़िया की जगह वीएचपी की कमान कोक्जे के हाथों में आ गई.
कोक्जे को 131 वोट मिले जबकि राघव रेड्डी को महज 60. इससे ये पता चलता है कि तोगड़िया की पकड़ संगठन पर कमजोर पड़ गई थी.
मध्य प्रदेश के कोक्जे को कमान
मध्य प्रदेश में धार जिले के दाही गांव में 6 सितंबर 1939 को विष्णु सदाशिव कोक्जे का जन्म हुआ था. स्कूली पढ़ाई धार में हुई. कॉलेज के लिए ये इंदौर आ गए.
होल्कर कॉलेज से गणित, सांख्यिकी और इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएशन किया. एलएलबी की पढ़ाई भी इंदौर में ही पूरी की. बाद में क्रिश्चियन कॉलेज से सोशल सायंस में एमए किया. पढाई पूरी होने के बाद 1964 में वकालत शुरू कर दी.
1990 में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में जज बने. चार साल बाद राजस्थान ट्रांसफर हुआ. 11 महीने तक राजस्थान हाई कोर्ट में प्रभारी मुख्य न्यायाधीश रहे और 2001 में रिटायर हो गए.
जैन मुनी लोकेंद्र विजय पर रेप के आरोप और बाद में खुदकुशी के मामले की जांच के लिए बने आयोग की अध्यक्षता कोक्जे ने की थी.
पीएम की आलोचना की वजह से गए तोगड़िया?
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 2003 में हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल बनने से पहले कोक्जे आरएसएस से जुड़े थे. अप्रैल 2012 से मार्च 2014 तक भारत विकास परिषद के अखिल भारतीय अध्यक्ष रहे और पिछले तीन सालों से वो वीएचपी के उपाध्यक्ष थे.
हाल के दिनों में प्रवीण तोगड़िया ने खुलकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस की आलोचना की थी.
विश्व हिन्दू परिषद का इतिहास जानिए
विश्व हिन्दू परिषद आरएसएस से जुड़ी हुई एक संस्था है. इसका चिन्ह बरगद का पेड़ है. इसका नारा है ‘धर्मो रक्षति रक्षित:’ यानी जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है.
इसकी स्थापना 1964 में की गई. इसके संस्थापकों में स्वामी चिन्मयानंद, एसएस आप्टे, मास्टर तारा हिंद थे. स्थापना के वक्त हिन्दू, सिख और बौद्ध धर्म के कई प्रतिनिधि मौजूद थे. सम्मेलन में गोलवलकर ने कहा कि भारत के सभी मतावलंबियों को एकजुट होने की जरुरत है.
हिन्दू हिन्दुस्तानियों के इस्तेमाल के लिए शब्द है जो सभी धर्मों से ऊपर है. इस मीटिंग के दौरान संगठन का नाम तय हुआ. प्रस्तावित संगठन का नाम विश्व हिन्दू परिषद रखने पर सहमति बनी.
स्थापना के 2 साल बाद 1966 के प्रयाग कुंभ के दौरान संगठन का स्वरूप सामने आया. संगठन के मेमोरेंडम के मुताबिक राजनीतिक पार्टी का अधिकारी विश्व हिन्दू परिषद का अधिकारी नहीं होगा.
साथ ही इसका लक्ष्य भी तय किया गया. जिसमें हिन्दू समाज को मजबूत करना, हिन्दू जीवन दर्शन का रक्षा और प्रचार, विदेशों में रहनेवाले हिन्दुओं से तालमेल रखना और हिन्दुत्व की रक्षा के लिए संगठित और मदद करना शामिल है.