दिल्ली। उपचुनावों में मिली लगातार हार के बाद बीजेपी सहम गई है। देश कई राज्यों में 2014 के बाद हुए उपचुनाव में मोदी-शाह का सारा प्लान फेल हो गया है।
अब पार्टी का एक तबका अंदरखाने में ये मानता है कि अगर मोदी लहर इसी तरह कमजोर पड़ता, तो 2019 की गर्मियों के महासमर में बीजेपी के कई सहयोगी पार्टी को सियासी छांव देने की बजाय कांग्रेस की नाव में सवारी करना पसंद करेंगे।
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ब्रांड मोदी के फीका पड़ने का ‘टेंशन’
दरअसल, 2014 के चुनाव में मोदी फैक्टर ही वो आकर्षण बिंदू है जिसकी वजह से शिवसेना, एलजेपी, आरएलएसपी, अकाली दल जैसी पार्टियां बीजेपी के साथ जुड़ी थीं।
लेकिन उपचुनावों में लगातार हार, कर्नाटक में बहुमत हासिल करने में नाकामयाबी, ये हाल के कुछ ऐसे सियासी घटनाक्रम हैं जिसने बीजेपी का टेंशन बढ़ा दिया है। एनडीए के सहयोगियों की बयानबाजी बढ़ गई है। शिवसेना के साथ बीजेपी के रिश्ते निचले स्तर पर हैं।
उधर नीतीश कुमार ये कहकर कि सरकार लोगों की उम्मीदों पर खरी उतरेगी, इशारों-इशारों में मोदी सरकार पर ताने मार रहे हैं। वहीं, टीडीपी केंद्र से तलाक के बाद यहां तक कह रही है कि 2019 में मोदी सरकार सत्ता में नहीं आएगी।
यहीं नहीं बीजेपी के विधायक-सांसद भी खुलेआम ऐसे बयान दे रहे हैं जिससे पार्टी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंच रहा है। हरदोई के गोपामऊ से बीजेपी विधायक श्यामप्रकाश ने कैराना-नूरपुर में हार के बाद तुरंत सोशल मीडिया के जरिए सीएम पर तंज कसा।
उन्होने तुकबंद कर फेसबुक पर लिखा, मोदी नाम से पा गए राज, कर ना सके जनता का काज, संघ, संगठन हाथ लगाम, मुख्यमंत्री भी असहाय।
वहीं, कई मुद्दों पर मुखर रहने वाले बैरिया से बीजेपी विधायक सुरेंद्र सिंह ने कहा है कि इस हार के पीछे अधिकारियों और कर्मचारियों में फैला भ्रष्टाचार जिम्मेदार है, जिसकी वजह से मासूम जनता परेशान होती है।
ऐसे विवादों से बीजेपी के अंदरखाने में लगता है कि अगर पीएम की चुनाव जिताने की क्षमता कम होती है तो इस संगठन में बिखराव से इनकार नहीं किया जा सकता है। नीतीश पिछले कुछ दिनों से लगातार संकेत दे रहे हैं कि बीजेपी के साथ उनकी दोस्ती सहज नहीं हो पा रही है।
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