दिल्ली। राजस्थान में चुनाव से पहले बीजेपी को बड़ा झटका लगने के संकेत मिल रहे हैं। कभी बीजेपी के कद्दावर नेता रहे जसवंत सिंह ब्रेन हैमरेज के बाद से बिस्तर पर हैं। वहीं, अब उनके बेटे मानवेंद्र सिंह पार्टी को झटका देने की तैयारी में हैं। यह संकेत मिलने लगे हैं कि मानवेंद्र अब अलग रास्ते पर चलेंगे। राजस्थान की राजनीति में यह चर्चा जोरों पर है कि मानवेंद्र सिंह जल्द ही कांग्रेस का हाथ थाम सकते हैं।
झटका देने की तैयारी में मानवेंद्र
ऐसा इसलिए कि मेवाड़ में इन दिनों मानवेंद्र सिंह की होने वाली स्वाभिमान रैली को लेकर तैयारी जोर-शोर से चल रही है। स्वाभिमान रैली को सफल बनाने के लिए मानवेंद्र के समर्थक काफी मेहनत कर रहे हैं। उम्मीद की जा रही है कि उसी दिन बाड़मेर के पचपदरा में होने वाली स्वाभिमान रैली में मानवेंद्र सिंह अपने अगले कदम का ऐलान करेंगे।
इसके पीछे की वजह यह बताई जा रही है कि मानवेंद्र सिंह लंबे समय से पार्टी के अंदर हाशिए पर चल रहे हैं। पिता जसवंत सिंह बीमार होने की वजह से लंबे वक्त से सक्रिय राजनीति से दूर हैं। दूसरी तरफ विधायक मानवेंद्र सिंह की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के साथ अदावत जारी है। आलम यह है कि अभी अपनी गौरव यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री राजे ने उनके जिले में जाने के बावजूद उनके विधानसभा क्षेत्र का दौरा नहीं किया। यह बात मानवेंद्र सिंह को अखर गई है।
वसुंधरा राजे से छत्तीस का आंकड़ा
मानवेंद्र सिंह के परिवार का वसुंधरा राजे के साथ पहले से ही छत्तीस का आंकड़ा रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव के वक्त भी उनके पिता जसवंत सिंह को बीजेपी का टिकट नहीं दिया गया था। विरोध में जसवंत सिंह ने बाड़मेर से निर्दलीय ही मैदान में उतरने का फैसला कर लिया था। लेकिन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने यहां से जाट समुदाय के कर्नल सोनाराम को जिताने में एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। जसवंत सिंह की हार हुई। हालांकि उसके बाद भी शिव से विधायक मानवेंद्र सिंह को पार्टी के भीतर या राजस्थान में सरकार के भीतर कोई पद नहीं दिया गया। अपनी उपेक्षा से परेशान मानवेंद्र सिंह की तरफ से अब नए कदम की तैयारी शुरू कर दी गई है।
नाराजगी को भुनाने की कोशिश
मानवेंद्र को लगता है कि राजस्थान में राजपूत समुदाय के भीतर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ पहले ही गुस्सा है। अगर इस समुदाय की मुख्यमंत्री के खिलाफ नाराजगी को भुनाना है तो यह सही वक्त है। मानवेंद्र सिंह राजपूत समुदाय के उस गुस्से के प्रतीक के तौर पर अपने आप को स्थापित करना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि वसुंधरा के खिलाफ ताल ठोंक कर इस बार वो समाज के नायक बन सकते हैं।