पटना। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हर मंच से शराबबंदी को लेकर अपनी पीठ थपथपाते नहीं थकते। लेकिन शराबबंदी का साइड इफेक्ट एक भयावह तस्वीर पेश करता है। शराबबंदी के बाद शराब का विकल्प ड्रग्स बनते जा रहे हैं।
चौक-चौराहों पर अब पुड़िया की ‘पकड़’
साल 2016 में बिहार में शराबबंदी हुई और गांजा पीने वालों की संख्या में 1000 फीसदी की बढ़ोतरी हो गई। चरस, अफीम, हशीश जो 2015 से पहले कभी-कभार बरामद होते थे। शराबबंदी के बाद इनकी बरामदगी के आंकड़ों में गजब का इजाफा होने लगा। कोलकाता से लेकर त्रिपुरा तक बिहार में ड्रग्स सप्लाई करने का चेन खड़ा हो गया। ट्रेन से, स्पीड पोस्ट से और हवाई जहाज से बिहार में ड्रग्स की खेप पहुंचने लगी और गली-चौराहों पर 10 रुपए से लेकर 100 रुपए की पुड़िया की गिरफ्त में युवाओं की ज़िंदगी आने लगी।
एक अनुमान के मुताबिक 2015 के बाद ड्रग्स जब्ती में 1000% की बढ़ोतरी हुई है। वहीं 2015 के मुकाबले 2017 में गांजा-चरस बरामदगी में 5 गुना बढ़ोतरी हुई है। अफीम और हशीश की जब्ती मामले में बिहार देश में अव्वल है। जबकि गांजा जब्ती में आंध्रप्रदेश के बिहार दूसरे नंबर पर है। जिसकी तस्दीक शराबबंदी के बाद गांजा-चरस और अफीम बरामदगी में बढ़ोतरी के आंकड़े करते हैं।
शराबबंदी के बाद चौंकानेवाले आंकड़े
ये आंकड़े कहीं और के नहीं है, बल्कि 26 जून को आयोजित मादक द्रव्यों के दुरुपयोग एवं अवैध व्यापार के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय नशा विमुक्ति दिवस समारोह में पेश किए गए। इन आंकड़ों के मुताबिक 2015 में बिहार पुलिस ने 4 हजार 302 किलो गांजा बरामद किया था। जबकि 2017 में बिहार पुलिस ने 19 हजार 848 किलो गांजा बरामद किया।
वहीं बिहार पुलिस, डीआरआई और एनसीबी के द्वारा बरामद गांजा को जोड़ दे तो ये आंकड़ा 42 हजार 905 किलो का हो जाता है। वहीं 2017 में कुल 28 हजार 516 किलो अफीम बरामद किया गया। जबकि चरस की बात करें तो 2015 में 81.9 किलो चरस बरामद किया गया, जबकि 2017 में 421 किलो चरस बरामद किया गया।
2015 में बिहार में हशीश जैसे मादक पदार्थ की कोई जब्ती नही हुई। जबकि 2017 में 244 किलो हशीश बरामद किया गया। वहीं 2015 में मादक पदार्थ से बरामदगी संबंधित कुल 328 मामले दर्ज किए गए और 346 लोगों की गिरफ्तारी हुई। जबकि 2017 में कुल 601 मामले दर्ज हुए, जबकि 531 लोगों की गिरफ्तारी हुई। ये आंकड़े बताने के लिए काफी है कि किस तरह ड्रग्स की बड़ी खेप बिहार पहुंचती है।
हवाई जहाज से गांजा की सप्लाई
अब सवाल है कि ड्रग्स की ये खेप बिहार पहुंचती कैसे है। इसका भी जवाब अंतर्राष्ट्रीय नशा विमुक्ति दिवस समारोह में ही दिए गए। 4 सितंबर 2017 को हावड़ा-गया एक्स्प्रेस से 400 किलो गांजा बरामद किया गया। गांजे की ये खेप हावड़ा से गया लाए जा रहे थे। इसके बारे में छानबीन करने पर इसके तार त्रिपुरा तक जुड़े। साथ ही 2 रेल कर्मचारी भी पकड़े गए। वहीं 5 दिसंबर 2017 को एक दर्ज मामले पर गौर करें तो गांजे की खेप हवाई जहाज से भी बिहार आ रहे हैं।
स्पीड पोस्ट से प्लेन तक का ‘गांजा सफर’
इस मामले के मुताबिक त्रिपुरा के अभयनगर प्रधान डाकघर से गांजे की एक खेप स्पीड पोस्ट की गई। इस खेप को पहले अगरतल्ला तक पहुंचाया गया और अगरतलला से दो अलग-अलग फ्लाइट से अलग-अलग पैकेट में कोलकाता पहुंचाया गया। कोलकाता से फिर गांजे की ये खेप फ्लाइट से पटना लाई गई और फिर डाकघर भेजा गया। लेकिन पोस्टमास्टर की सावधानी से वो पैकेट पकड़ा गया। दोनों ही मामलों में गांजा सप्लाई चेन बिहार से त्रिपुरा तक होने की बात का पता चला। हालांकि गांजा सप्लायर या बिहार में गांजा मंगाने वाले माफिया का नहीं पता चल पाया।
कर्मचारियों की मिलीभगत से इनकार नहीं
पूरे मामले में एयरपोर्ट कर्मचारियों और एयरपोर्ट सुरक्षाकर्मियों की मिली भगत से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। क्योंकि एयरपोर्ट जैसे संवेदनशील जगह पर गांजे की खेप कहीं स्कैन मशीन से क्या नहीं गुजरी। अगर स्कैन मशीन से गांजे की खेप गुजरी…तो फिर एयरपोर्ट सुरक्षाकर्मियों को पता कैसे नहीं चला। साफ है बिना सिस्टम के मिलीभगत के ड्रग्स सप्लाई का इतनी बड़ी चेन नहीं खड़ा हो सकती। जिसका नतीजा है कि बिहार के गली-चौराहों पर गांजा-चरस की पुड़िया 100 रुपए में आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं और पुलिस सिर्फ गांजे की चंद खेप बरामद कर अपनी पीठ थपथपाती है।