दिल्ली। अब 105 साल बाद ‘ब्लड मून’ देखने को मिलेगा. जो 27 जुलाई का चंद्रग्रहण नहीं देख पाए कम से कम इस जन्म में ‘ब्लड मून’ नहीं देख पाएंगे. इसके लिए उन्हें अगले जन्म का इंतजार करना पड़ेगा. या फिर फोटो से काम चलाना पड़ेगा. अगला ‘ब्लड मून’ वाला चंद्र गहण 9 जून 2123 को लगेगा.
105 साल बाद ‘ब्लड मून’ देखने को मिलेगा
9 जून 2123 को लगनेवाला चंद्रग्रहण उस सदी का सबसे लंबा चंद्रगहण होगा. शुक्रवार-शनिवार रात 1 घंटे 42 मिनट और 57 सेकेंड का चंद्रग्रहण उस सदी का सबसे लंबा चंद्रग्रहण होगा. इस दौरान ‘ब्लड मून’ जैसी खगोलीय घटना भी देखने को मिलेगी. भारत में चंद्रग्रहण की शुरुआत रात 11 बजकर 54 मिनट पर होगी.
Visual of moon before lunar eclipse from Hyderabad’s Chaar Minar. pic.twitter.com/Dm11fSBoiM
— ANI (@ANI) July 27, 2018
ऐसा माना जा रहा है कि ये तड़के लगभग 4 बजे तक रहेगा. भारत में इसे हर जगह से देखा जा सकता है. इस साल 31 जनवरी को ‘सुपरमून’ चंद्रगहण लगा था. ये चंद्रग्रहण 1 घंटे 16 तक रहा था. लेकिन 9 जून को लगनेवाला चंद्रग्रहण इससे लंबा है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अब 9 जून 2123 को ऐसा चंद्रग्रहण देखने को मिलेगा.
Delhi: Visuals of lunar eclipse through Nehru Planetarium (Source NASA) pic.twitter.com/xtXCdzWA4b
— ANI (@ANI) July 27, 2018
इसे उत्तरी अमेरिका के लोग नहीं देख पाएंगे. क्योंकि जिस समय ये चंद्रग्रहण लगेगा इन देशों में दिन का समय रहेगा. नासा के मुताबिक 9 जून को ऑस्ट्रेलिया, एशिया, अफ्रीका, यूरोप और दक्षिण अमेरिका में चंद्रग्रहण चंद्रग्रहण देखा जा सकता है.
9 जून 2123 को दिखेगा ‘ब्लड मून’
9 जून के चंद्रग्रहण में ‘ब्लड मून’ देखने को मिलेगा. यानी इस दौरान चांद का रंग लाला हो जाएगा. ऐसा तब होता है जब कुछ समय के लिए पूरा अंतरिक्ष में धरती की छाया गुजरता है. इस दौरान लाल रंग के तरंग नीले और बैगनी रंग से कम बिखरते हैं, इसी वजह से ऐसा लगता है कि चांद पूरा लाल हो गया है. दरअसल पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करता है और चांद पृथ्वी की. जब पृथ्वी सूर्य और चांद के बीच आ जाता है तो पृथ्वी सूर्य की किरणों को चांद पहुंचने नहीं देता है और तब हमें दिखाई नहीं देता है, इसे चंद्रग्रहह कहते हैं.
पूर्णिमा को चंद्रग्रहण, अमावस्या को सूर्यग्रहण
चंद्रग्रहण पूर्णिमा के दिन ही पड़ता है लेकिन हर पूर्णिमा को चंद्रग्रहण नहीं पड़ता है. इसका कारण है कि पृथ्वी की कक्षा पर चंद्रमा की कक्षा का झुके होना माना जाता है. ये झुकाव तकरीबन 5 डिग्री का होता है. इसलिए हर बार चंद्रमा पृथ्वी की छाया में प्रवेश नहीं करता है. उसके ऊपर या नीचे से निकल जाता है. यही बात सूर्यग्रहण के लिए भी सच है.
सूर्य ग्रहण हमेशा अमावस्या के दिन होता है. क्योंकि चंद्रमा का आकार पृथ्वी के आकार के मुकाबले लगभग 4 गुना कम होता है. इसकी छाया पृथ्वी पर छोटी आकार की पड़ती है. इसीलिए पूर्णा की स्थिति में सूर्यग्रहण पृथ्वी के एक छोटे से हिस्से से ही देखा जा सकता है. लेकिन चंद्रग्रहण की स्थिति में धरती की छाया चंद्रमा के मुकाबले काफी बड़ी होती है. लिहाजा इससे गुजरने में चंद्रमा को ज्यादा वक्त लगता है.
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