/हर तरह का चुनाव जीतनेवाला ‘शाह-मंत्र’ डिकोड, राहुल गांधी को सबसे ज्यादा जरुरत

हर तरह का चुनाव जीतनेवाला ‘शाह-मंत्र’ डिकोड, राहुल गांधी को सबसे ज्यादा जरुरत

कोई भी चुनाव जीतनेवाला 'शाह-मंत्र' डिकोड, राहुल गांधी को सबसे ज्यादा जरुरत

दिल्ली। कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनेगी इसकी सबसे बड़ी वजहों में एक राज्यपाल भी हैं. बीजेपी को उम्मीद है कि सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते उन्हें राज्यपाल मौका देंगे. अमित शाह और नरेंद्र मोदी का चुनावी प्रबंधन कुर्सी के इतने नजदीक पहुंचकर सत्ता गवां दे, इसका दावा उनके धुर विरोधी भी नहीं कर पाएंगे.

कोई भी चुनाव जीतनेवाला ‘शाह-मंत्र’ डिकोड

मगर बात यहां, सरकार बनाने की नहीं बल्कि उस कमाल की,

जिसे अमित शाह और नरेंद्र मोदी की जोड़ी ने कर दिखाया.

जिसे नए नवेले कांग्रेस अध्यक्ष भांप तक नहीं पाए.

ये इलेक्शन मैनेजमेट ही है जिसके बलबूते आज भारतीय जनता पार्टी सत्ता की कुर्सी पर काबिज होने के करीब है.

इसकी नींव अगस्त 2017 में रखी गई थी. जब ‘विस्तारक’ नाम के कार्यक्रम को अमित शाह ने संबोधित किया.

इसमें बीजेपी के करीब 12 हजार एक्टिव सदस्यों को बुलाया गया था. इस बैठक की रणनीति थी

केंद्र सरकार के कामकाज की जानकारी को हर आदमी तक पहुंचाना.

इसके बाद एक्शन प्लान बनाया गया जिसका नाम दिया गया ‘बिल बोर्ड’.

‘बिल बोर्ड’ का कमाल आपको रिजल्ट में दिख रहा है.

चुनाव में ‘पन्ना प्रमुखों’ का अहम रोल

कोई भी चुनाव जीतनेवाला 'शाह-मंत्र' डिकोड, राहुल गांधी को सबसे ज्यादा जरुरत

ये भी पढ़ें: पीएम मोदी के वो ‘5 चाल’ जिसने पलट दी कर्नाटक की बाजी, जिसे नहीं समझ पाए राहुल!

ये भी पढ़ें: कर्नाटक में नरेंद्र मोदी का नहीं, योगी आदित्यनाथ का चला है जादू!

कर्नाटक जीत की तैयारी किस स्तर पर गई होगी इसका अंदाजा आप इससे लगाइए कि

राज्य में 4 करोड़ 96 लाख रजिस्टर्ड वोटर हैं. इनके लिए 58 हजार 8 बूथ बनाए गए थे.

यानि करीब ढाई से तीन लाख कार्यकर्ता पिछले 8 महीने से काम कर रहे थे.

अगर इस इलेक्शन मैनेजमेंट के माइक्रो लेवल पर जाएंगे तो बूथ लेवल पर

सक्रिय भूमिका निभाने वाले ‘पन्ना प्रमुख’ होते हैं. वोटरलिस्ट के एक पन्ने में

जितने मतदाताओं के नाम आते हैं उसकी जिम्मेदारी ‘पन्ना प्रमुख’ की होती है.

अमूमन एक पेज में 50 मतदाताओं के नाम होते हैं.

उनकी जिम्मेदारी ‘पन्ना प्रमुख’ को दी जाती है.

‘पन्ना प्रमुख’ की जिम्मेदारी देने में भी ‘समीकरण’ का खास ख्याल रखा जाता है.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कर्नाटक में इस बार करीब 10 लाख

पन्ना प्रमुख मतदाताओं को घर से निकाल कर मतदान केंद्र तक

लाने के लिए लगाए गए थे. इसका नतीजा भी दिखा.

कर्नाटक में वोटिंग इस बार रिकॉर्ड 70 फीसदी से ज्यादा देखने को मिली.

माइक्रो मैनेजमेंट में पिछड़ गई कांग्रेस

ये भी पढ़ें: नरेंद्र मोदी को ‘तुलसी’ पर भरोसा नहीं रहा?, या किस्मत दगा दे गई?

ये भी पढ़ें: जिसे मोदी ने कहा था ’50 करोड़ की गर्लफ्रेंड’, उसकी मौत के लपेटे में आए गए थरूर

चुनावी प्रबंधन में कांग्रेस बीजेपी से पिछड़ गई, जिसके चलते आज तीसरे नंबर की पार्टी सीएम पद की दावेदारी पेश कर रही है.

हालांकि इसकी वजह एक ये भी माना जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी कैडर बेस्ड पार्टी है.

जबकि कांग्रेस के पास उतने समर्पित कैडर नहीं हैं.

जिसकी वजह से राज्य सरकार अपने अच्छे कामों को भी जनता तक नहीं पहुंचा पाई.

कांग्रेस ने भी इस बार कर्नाटक में बूथ लेवल तक की कमेटी बनाई, मगर बीजेपी से पिछड़ गई.

माना जा रहा है राहुल गांधी टक्कर तो कड़ी देते हैं

मगर मैनेजमेंट का जो ‘किलर स्टिंक्ट’ वाली बात है वो अभी उनमें नहीं है. इसके लिए एक अच्छी और डेडिकेटेड टीम की जरुरत होती है.

जो बैनर-पोस्टर से लेकर ट्रांसपोर्टेशन तक का काम देखती है. फिलहाल शाह और मोदी की जोड़ी कमाल पर कमाल किए जा रही है.