पटना। ‘बिहार में बहार हो और नीतीशे कुमार हो’, ‘झांसे में नहीं आएंगे, नीतीश को जिताएंगे’, ‘हर घर दस्तक अभियान’ जैसे नारे को गढ़नेवाले की याद एक बार फिर नीतीश कुमार को आने लगी है.
‘कमांडेंट’ प्रशांत किशोर एक्टिव
उपचुनावों में कई सीटों पर हार के बाद एनडीए के सहयोगी दल अपना ‘किला’ बचाने के लिए खुद की जुगत में लग गए हैं. अब उन्हें भी 2019 की चिंता सताने लगी है. कम से कम नीतीश कुमार तो अपनी स्ट्रैटजी बनाने में जुट गए हैं.
‘बिहार फतह’ की तैयारी करने में वो खुद ही जुट गए हैं. बिहार में ‘बड़ा भाई’ और ‘सीएम का चेहरा’ पर बीजेपी के सरेंडर करने के बाद नीतीश कुमार ने अपने ‘कमांडेंट’ प्रशांत किशोर को भी एक्टिव कर दिया है.
प्रशांत से नीतीश की 2-2 मुलाकातें
प्रशांत किशोर के साथ एक नहीं बल्कि 2-2 मुलाकातें कर डाली है. ये वही प्रशांत किशोर हैं जिन्होंने 2015 बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी के विजय रथ को रोक दिया था. तब नीतीश कुमार की पार्टी कांग्रेस और आरजेडी के साथ महागठबंधन की हिस्सा थी.
मगर अब हालात बदल चुके हैं. अब नीतीश कुमार एनडीए के पार्ट हैं और एनडीए में अपना कद बढ़ाना चाहते हैं. ऐसे में उनको अपने ‘चुनावी माझी’ की याद आने लगी है. 2019 लोकसभा चुनाव में जेडीयू की कमान को प्रशांत संभाल सकते हैं.
खबरों के मुताबिक नीतीश और प्रशांत किशोर की 2 मुलाकतें हो चुकी है. हाल ही में पटना में हुए जेडीयू की बैठक में भी प्रशांत किशोर मौजूद थे. 2019 के लिए प्रशांत किशोर को जेडीयू कमान देना चाह रही है.
अगर प्रशांत किशोर दोबारा नीतीश कुमार के लिए काम करें तो कोई हैरानी नहीं होगी. ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या वो 2019 में बीजेपी के लिए चुनावी मोर्चे पर काम करेंगे या नहीं?
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कांग्रेस को हो सकता है नुकसान
2014 लोकसभा चुनाव में पहली बार प्रशांत किशोर का नाम सामने आया था. उस दौरान उन्होंने बीजेपी के लिए काम किया था. इस चुनाव में बीजेपी को रिकॉर्डतोड़ सफलता मिली थी.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रशांत किशोर का जेडीयू के लिए काम करने पर तैयार होना कांग्रेस के लिए नुकसानदायक हो सकता है. क्योंकि प्रशांत किशोर यूपी और पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए काम कर चुके हैं. मगर खबर ये भी है कि दोनों ही चुनाव में प्रशांत किशोर को काम करने की ‘खुली छूट’ नहीं मिली.
शाह की टीम ने नहीं दी तरजीह
2012 से ही प्रशांत किशोर को नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने की रणनीति पर काम कर रहे थे. 2014 चुनाव में प्रशांत किशोर ही नरेंद्र मोदी के लिए ‘चाय पे चर्चा’, युवाओं के बीच ‘मंथन’, ‘3डी रैली’ और ‘भारत विजय रैली’ जैसे कार्यक्रम कराए थे.
ये सभी कार्यक्रम कामयाब रहे थे. मगर जीत की क्रेडिट मोदी और शाह को मिला. माना जाता है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की जीत के बाद अमित शाह ने जिस तरह प्रशांत किशोर की उपेक्षा की, उसका जवाब उन्होंने 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की बड़ी जीत के दिया.
नीतीश ने दिया कैबिनेट मंत्री का दर्जा
बिहार में जीत के बाद उन्हें इनाम के तौर पर सीएम नीतीश का सलाहकार बनाते हुए कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया. वो नीति और कार्यक्रमों को लागू करने के मामले में सीएम को सलाह दिया करते थे.
बिहार विकास मिशन प्रशांत के ही दिमाग की उपज थी. मगर वो बिहार में ज्यादा समय नहीं दे पाए और कांग्रेस के लिए पंजाब और यूपी के मिशन में लग गए.
प्रशांत किशोर की निजी जिंदगी
प्रशांत किशोर के निजी जिंदगी के बारे में बहुत कम जानकारी मिलती है. मीडिया में जो जानकारी है उसके मुताबिक प्रशांत किशोर बिहार के बक्सर के रहनेवाले हैं. उनके पिता श्रीकांत पाण्डेय पेशे से डॉक्टर हैं और बक्सर में अपना क्लीनिक चलाते हैं.
वहां पर उनका घर भी है. प्रशांत के बड़े भाई अजय किशोर पटना में रहते हैं और खुद का बिजनेस है. इसके अलावा उनके परिवार में 2 बहनें हैं. जानकारी के मुताबिक प्रशांत ने इंटरमीडिएट की पढ़ाई पटना के प्रतिष्ठित साइंस कांलेज से की है.
उसके बाद उन्होंने हैदराबाद के एक कॉलेज से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. फिर अफ्रीका में यूएन हेल्थ एक्सपर्ट के तौर पर काम किया. नौकरी छोड़कर प्रशांत 2011 में इंडिया लौटे.
फिर 2012 से 2014 तक मोदी के लिए ‘इमेज रिपेयर’ के तौर पर काम किया. एक बच्चे के पिता प्रशांत किशोर का परिवार ज्यादातर वक्त दिल्ली में रहता है.
आईपैक के पास फिलहाल आंध्र का काम
इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी कंसल्टिंग प्राइवेट लिमिटेड के तहत प्रशांत किशोर की टीम काम करती है. जिसका ब्रांड नेम आईपैक है. इसमें कई प्रोफेशनल्स दिन-रात काम करते हैं.
ज्यादातर आईआईटी और आईआईएम पास आउट है. इसका रजिस्टर्ड ऑफिस हैदराबाद में है. फिलहाल आईपैक की टीम 2019 चुनाव के लिए जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआई कांग्रेस के लिए आंध्र प्रदेश में काम कर रही है.
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