नरेंद्र मोदी का यह प्लान हो गया अप्रूव तो पूरे देश से खत्म हो सकता है विपक्ष का वजूद!

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एक देश एक चुनाव की मांग

2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद से ही बीजेपी एक देश एक चुनाव की मांग रही है। बीजेपी की मांग है कि खर्चों से बचने के लिए लोकसभा व विधानसभा की चुनाव एक साथ हो। वहीं, मोदी के अलावे बिहार के सीएम नीतीश कुमार भी इसके पक्ष में हैं।

नीति आयोग भी इसको लेकर मुक्कमल तरीका निकालने में जुटा है। इसके लिए दलील यह दी जा रही है कि पूरे साल किसी न किसी जगह पर चुनाव होता ही हैं, जिसकी वजह से काफी खर्च होता है। साथ ही विकास कार्य भी बाधित होता है।

एक देश एक चुनाव की मांग

लेकिन आईडीएफसी इंस्टीट्यूट के अध्ययन से मिले आंकड़ों पर यकीन किया जाए तो एक देश, एक चुनाव के परिणाम बेहद गंभीर हो सकते हैं। लोकसभा और विधानसभा चुनान एक साथ होने पर विपक्ष का अस्तित्व समाप्त हो सकता है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इंस्टीट्यूट द्वारा छापी गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसा होने पर 77 फीसदी ऐसी संभावना हो सकती है कि मतदाता राज्यों में भी उसी पार्टी को वोट दे जिसके लिए उन्होंने केंद्र में मतदान किया है।

ऐसे में केंद्र व राज्यों में एक ही दल का शासन होगा। ऐसे में पूरे देश से विपक्ष का वजूद खत्म हो सकता है। ब्लूमबर्ग वेबसाइट की रिपोर्ट बताती है कि देश में हर साल औसतन छह राज्यों में चुनाव होते हैं।

एक देश एक चुनाव का विरोध

हालांकि पीएम मोदी की ‘एक देश, एक चुनाव’ की योजना का विरोध भी किया जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक आलोचक इस कदम को लोकतंत्र और संघीय ढांचे के लिए खतरा मानते हैं।

उनलोगों का कहना है कि ऐसे होने से किसी भी राज्य की सरकार को सत्ता से बेदखल करना आसान हो जाएगा। मीडिया से बात करते हुए सीडीएस के निदेशक संजय कुमार ने कहा कि इससे देश का संघीय ढांचा तबाह हो जाएगा।

लोकसभा व विधानसभा के चुनाव एक साथ होना क्षेत्री दलों के हितों के खिलाफ होगा।

गौरतलब है कि इस मसले पर राजनीतिक सहमति बनाना भी बहुत मुश्किल होगा। क्योंकि भारत में बहुदलीय पद्धति को अपनाया गया है। ऐसे में देश भर में एक चुनाव कराने के लिए सरकार को संविधान में संशोधन करना पड़ेगा।

इसके लिए संसद के साथ दो-तिहाई राज्यों की विधानसभाओं का समर्थन भी अनिवार्य होता है।

वहीं, चुनाव आयोग के आंकड़ों के आधार पर नीति आयोग का आकलन है कि पूरे देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने पर 45 अरब रुपये का खर्च होगा।

जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव करवाने में सिर्फ 38.7 अरब रुपये खर्च हुए थे। आईडीएफसी की रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक विधानसभा चुनाव में औसतन तीन अरब रुपये का खर्च आता है।

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