/‘खीर’ के लिए तो कुशवाहा ने 6 महीने पहले ही जलाया चूल्हा, लेकिन क्या ख्याली खीर से मिलेगी सियासी ‘मिठास’?
rift in nda khushwaha paln to 6 month before kheer

‘खीर’ के लिए तो कुशवाहा ने 6 महीने पहले ही जलाया चूल्हा, लेकिन क्या ख्याली खीर से मिलेगी सियासी ‘मिठास’?

#rift in nda, #6 month before kheer, #who is upendra kushwaha

पटना। यूं तो कहावत में टेढ़ी खीर का जिक्र होता है। लेकिन शायद ही किसी ने अब तक टेढ़ी खीर को देखा होगा। लेकिन बिहार की सियासत में अपनी सियासत सीधी करने के लिए टेढ़ी खीर तैयार करने में उपेंद्र कुशवाहा जुटे हैं। वैसे कहावत ख्याली पुलाव को लेकर भी है। लेकिन यहां कुशवाहा ख्याली खीर के ज़रिए अपने लिए सियासी मिठास हासिल करने की कोशिश में हैं।

6 महीने पहले ही जलाया चूल्हा

वैसे 25 अगस्त को जिस सियासी खीर को बनाने का फार्मूला उपेंद्र कुशवाहा बता रहे थे…और जिस खीर का पैगाम देने के लिए पैगाम-ए-खीर की शुरुआत करने वाले हैं…उस खीर को बनाने के लिए चूल्हे की आंच तो 6 महीने पहले से ही तेज करने में जुटे हैं कुशवाहा और रह-रहकर फूंक मारकर चूल्हे की आग को ज़िंदा रखे हुए हैं। ताकि सही वक्त आने पर सियासी खीर बना सके।

ये भी पढ़ें: बिहार में कैसे पकती है सियासी ‘खीर’? आखिर उपेंद्र कुशवाहा को क्यों चाहिए इसका स्वाद?

30 जनवरी- मानव श्रृंखला

यही वो तारीख है, जब उपेंद्र कुशवाहा ने अपनों को तपाने के लिए विरोधियों के साथ मिलकर चूल्हा जलाया था। बिहार में एनडीए की ही सरकार में चौपट शिक्षा के खिलाफ मानव श्रृंखला बनाई, जिसमें आरजेडी के नेता शिवानंद तिवारी और रामचंद्र पूर्वे के हाथ से हाथ मिलाकर खड़े रहे।

30 मार्च- एम्स में लालू से मिले

मानव श्रृंखला से चूल्हा जल चुका था। लेकिन आग को जिंदा रखने के लिए फूंक मारना जरूरी था। सो 30 मार्च को एम्स में भर्ती लालू से मुलाकात कर एक बार फिर चूल्हे की आग को हवा दे दी।

7 जून- ‘भोज’ से दूरी

फिर 7 जून को पटना में बीजेपी की ओर से एनडीए के अंदर लगी आग बुझाने के लिए भोज का आयोजन हुआ। लेकिन कुशवाहा को एनडीए के भोज का ज़ायका नहीं…अपनी खीर बनाने के लिए आग चाहिए…सो भोज से दूरी बनाकर चूल्हे की आग को हवा दी।

7 जून- सीएम का चेहरा बनाने की मांग

रही सही कसर भोज में पहुंचे आरएलएसपी नेता नागमणि ने नीतीश से ऊपर कुशवाहा को नेता बताकर सीएम चेहरा घोषित करने की मांग कर पूरी कर दी।

8 जून- महागठबंधन में आने का ऑफर

फिर अगले ही दिन 8 जून को आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने उपेंद्र कुशवाहा को खुला ऑफर दे दिया महागठबंधन में आने का। शायद इसी ऑफर का भी इंतजार था कुशवाहा को। लेकिन केंद्र में मंत्री पद होने की मजबूरी के कारण ऑफर तुरंत कबूल नहीं कर सकते हैं।

25 जुलाई- ‘नीतीश छोड़ दें सीएम पद’

पार्टी की ओर से खुद को सीएम चेहरा घोषित करने की मांग के बाद सीधे कुशवाहा ने नीतीश की बतौर सीएम अगली पारी की दावेदारी को ही खारिज कर दिया। न्यूज़ 18 बिहार के संपादक प्रभाकर जी के साथ इंटरव्यू में उन्होनें कहा कि ‘नीतीश कुमार को 15 साल मौका मिला अब उन्हें खुद सीएम पद छोड़ देना चाहिए और किसी और को मौका देना चाहिए।’ किसी और का मतलब खुद उपेंद्र कुशवाहा ही है।

14 अगस्त- ‘सुशासन’ पर सवाल

जनवरी से कुशवाहा की जलाई चूल्हे की आग लगातार अपनों को झुलसा रही थी। लेकिन आग की तपिश का रुख सबसे ज्यादा एनडीए में फिर से आए नीतीश के लिए है। जिसकी बानगी 13 अगस्त को ट्वीट और 14 अगस्त को दिए बयान में भी दिखी। दरअसल अपनी पार्टी के कार्यकर्ता की हत्या के बाद कुशवाहा ने सीधे नीतीश कुमार को संबोधित कर कहा आखिर कब होश में आएगा शासन।

25 अगस्त- ‘खीर’ बनाने की तैयारी

चूल्हे की आग तैयार हो चुकी है…बस सियासी खीर पकाने की तैयारी है। ये अलग बात है कि ख्याली खीर से ही विरोधियों को मिठास और अपनों को कड़वाहट का एहसास होने लगा। सो 48 घंटे के अंदर सफाई भी पेश कर दी गई। कुशवाहा की ख्याली खीर कब बनेगी…या नहीं बनेगी ये कुशवाहा ही बेहतर बता सकते हैं। लेकिन चूल्हे की आग को ज़िंदा रखकर 2019 में सीट शेयरिंग में अपने हिस्से मिठास चाहते हैं और केंद्र में मंत्री होने के नाते सत्ता की मिठास का स्वाद भी मुंह से छोड़ना नहीं चाहते हैं। हालांकि ये तय है कि कुशवाहा को महागठबंधन में जाने पर भी सीएम पद की इच्छा पूरी नहीं होगी। ऐसे में कहीं ना माया मिली ना राम जैसी हालत ना हो जाए।