/बिहार में कैसे पकती है सियासी ‘खीर’? आखिर उपेंद्र कुशवाहा को क्यों चाहिए इसका स्वाद?
उपेंद्र कुशवाहा ने आखिर कहा क्या था?

बिहार में कैसे पकती है सियासी ‘खीर’? आखिर उपेंद्र कुशवाहा को क्यों चाहिए इसका स्वाद?

उपेंद्र कुशवाहा ने आखिर कहा क्या था?

दिल्ली। बिहार की सियासत में आजकल ‘खीर’ की चर्चा है. सियासत और अपराध के लिए देश में जाना जाने वाला बिहार, ‘खीर’ की रेसिपी को लेकर उलझा पड़ा है. इस ‘खीर’ का स्वाद चखने के लिए सब बेताब हैं. इसमें नया नाम शुमार हुआ है उपेंद्र कुशवाहा का. हालांकि बाद में उपेंद्र कुशवाहा की सफाई आ गई. पहले से ही लालू प्रसाद के ‘लाल’ तेजस्वी यादव पहले से ही खीर का स्वाद चखने के लिए बेताब हैं. ऐसे में उपेंद्र कुश्वाहा का ‘रेस’ में होना सुर्खियों में है. ऐसे में आपको बयान जातिगत गणित समझना होगा. तब सवाल उठता है कि आखिर उपेंद्र कुशवाहा ने आखिर कहा क्या था?

उपेंद्र कुशवाहा ने आखिर कहा क्या था?

आरक्षण वाले बिंदेश्वीर प्रसाद मंडल (बी पी मंडल) की सौवीं जयंती के मौके पर पटना के एसकेएम हॉल में उपेंद्र कुशवाहा ने कहा था कि ”यदुवंशियों (यादव) का दूध और कुशवंशियों (कुशवाहा) के चावल मिल जाए तो खीर बनने में ज्यादा दिक्कत नहीं होगी. हमलोग साधारण परिवार से आते हैं, और साधारण परिवार में जब से हमलोग देख रहे हैं. जिस दिन घर में खीर बन गई, दुनिया सबसे स्वादिष्ट भोजन बनेगा.

आज भी यही मान्यता है. सबसे स्वादिष्ट व्यंजन. सबसे अच्छा व्यंजन. तो अब उस स्वादिष्ट व्यंजन को बनने से कोई रोक नहीं सकता. लेकिन इसें सिर्फ दूध और चावल से ही काम नहीं चलनेवाला है. इसमें पचंमेवा की भी जरूरत पड़ती है. और इस पंचमेवा के रूप में…जहां से श्री बीपी मंडल साहब आते हैं…उस इलाके में जाइए…उस इलाके में एक प्रचलित शब्द है- पंचफोरना. कोसी इलाके में प्रचलित शब्द है..इसमें अतिपिछड़ा समाज के लोग, छोटी-छोटी संख्या वाली जातियों के लोग और शोषित-पीड़ित शामिल हैं. उनका पंचमेवा भी आवश्यक है. उनके घर का पंचमेवा…और उसमें चीनी की भी जरूरत पड़ेगी. तो पंडित शंकर जी के घर से हमलोग चीनी भी चलकर ले आएंगे. क्योंकि चीनी तो गरीब लोगों के घर में मिलती नहीं है, तो वहां से हमलोग ले आएंगे, तो उसमें थोड़ी सी चीनी भी डाल देंगे. तो खीर ज्यादा स्वादिष्ट होगी.

‘यही वास्तव में समाजिक न्याय है’

और खीर बनकर तैयार हो तो, भोज का आयोजन होता है…तो जब व्यंजन बनकर तैयार होता है तो हमलोगों के यहां समाज में प्रचलन है कि जब भोजन बनकर तैयार होता है तो उसमें तुलसी का पत्ता डालना होता है, जिसे हमलोग तुलसी दल कहते हैं. तो विनोद चौधरी के यहां से तुलसी दल ले आएंगे. बहुत पेड़ पौधा लगाकर रखा है. तो तुलसी दल वहां से…और उसके बाद अगर जरूरत पड़ी तो जुल्फी अली बरावी के यहां से दस्तर खां लेकर आएंगे. और उस दस्तर खां पर बैठकर हम सबलोग मिल कर उस स्वादिष्ट व्यंजन का रसास्वादन करेंगे. वैसा व्यंजन बनाने का काम करना है. और यही वास्तव में समाजिक न्याय है”.

उपेंद्र कुशवाहा ने आखिर कहा क्या था?

उपेंद्र कुशवाहा की सफाई

बिहार में एनडीए के घटक दल में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) के नेता और केंद्र की मोदी सरकार में मानव संसाधन राज्यमंत्री ने अपने ‘खीर’ वाले बयान पर पटना में सफाई दी. उन्होंने कहा कि ”न तो आरजेडी (राष्ट्रीय जनता दल) से दूध मांगा है और न ही बीजेपी से चीनी मांगी है. हमने सभी समाज से समर्थन मांगा है. मैं तो सामाजिक एकता की बात कर रहा था. कृपया किसी जाति या समुदाय को किसी राजनीतिक पार्टी से जोड़ने की कोशिश न करें”.

दरअसल इस बयान के मायने निकाले जा रहे थे कि आरजेडी और आरएलएसपी में नजदीकी बढ़ रही है. तेजस्वी यादव ने उपेंद्र के बयान का स्वागत भी किया था. उन्होंने ट्वीट कर कहा था कि ”नि:संदेह उपेंद्रजी, स्वादिष्ट और पौष्टिक खीर श्रमशील लोगों की जरूरत है. पंचमेवा के स्वास्थ्यवर्धक गुण न केवल शरीर बल्कि स्वस्थ समतामूलक समाज के निर्माण में भी ऊर्जा देता है. प्रेमभाव से बनाई गई खीर में पौष्टिकता, स्वाद और ऊर्जा की भरपूर मात्रा होती है. यह एक अच्छा व्यंजन है”.

बयान का जातिगत गणित

बिहार में यादवों को आरजेडी का कोर वोटर माना जाता है. राज्य में यादवों की आबादी करीब 15 फीसदी है. वहीं आरजेडी को मुसमानों का भरपूर समर्थन मिलता है. यहां मुस्लिमों की आबादी भी 15 फीसदी से ज्यादा है. कुशवाहा कोइरी समाज से आते हैं और बिहार की आबादी में कोइरी 3 फीसदी हैं. उपेंद्र कुशवाहा बिहार के सीएम नीतीश कुमार के विरोधी माने जाते हैं. ऐसे में उनके ‘खीर’ वाले बयान को हाथोंहाथ लिया गया. इसे एनडीए में फूट के तौर पर देखा जा रहा है.

उपेंद्र कुशवाहा और उनकी पार्टी पहले भी कई मौकों पर नीतीश सरकार की आलोचना की है. इतना ही नहीं उपेंद्र खुद को इशारे-इशारे में मुख्यमंत्री पद का दावेदार भी बता चुके हैं. जानकारों का मानना है कि चुनावी साल में ऐसे बयान आते रहते हैं. अंतिम समय में कौन कहां जाएगा, यह अभी पूरे दावे के साथ नहीं कहा जा सकता. कुशवाहा के बयान को एक रणनीतिक बयान के तौर पर देखा जा रहा है.