शाह और नीतीश में डील-ए-बिहार? डिनर के बाद 15 मिनट की ‘एकांत मुलाकात’

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शाह और नीतीश में डील-ए-बिहार? डिनर के बाद 15 मिनट की 'एकांत मुलाकात'

शाह और नीतीश में डील-ए-बिहार? डिनर के बाद 15 मिनट की 'एकांत मुलाकात'

पटना। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का बिहार दौरा अहम रहा. उनका ब्रेकफास्ट और डिनर किसके साथ होगा ये महीनों पहले तय हो गया था. हालांकि लंच को अमित शाह ने मिस कि या नीतीश कुमार ने, ये कहना फिलहाल मुश्किल है. अगर लंच भी दोनों साथ करते तो गठबंधन के लिए ज्यादा अच्छा होता.

15 मिनट की ‘एकांत मुलाकात’

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सरकारी आवास एक अणे मार्ग पर डिनर के बाद एकांत में 15 मिनट तक बात की. इस डिनर में कुल 13 लोग शामिल थे. डिनर पार्टी में सीट शेयरिंग नहीं बल्कि चुनाव की तैयारियों पर बातें हुई. अलग कमरे में जब नीतीश कुमार और अमित शाह की बातें हो रही थी तो वहां कोई दूसरा नेता मौजूद नहीं था.

डिनर के बाद बाहर निकलने पर बिहार जेडीयू अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने बस इतना कहा कि अच्छा खाना हुआ और अच्छी बातें हुई. जबकि बीजेपी के तरफ से मंत्री प्रेम कुमार ने कहा कि सीट शेयरिंग की कोई बात नहीं हुई, चुनाव में अभी काफी वक्त है. डिनर टेबल पर सुबह की बैठकों की चर्चा होती रही. यानि नीतीश कुमार और अमित शाह ने बंद कमरे में बिहार की डील को पक्का किया. फिलहाल पक्के तौर पर कहा तो मुश्किल है मगर अंदाजा लगाया जा सकता है. खास बात ये रही कि इस डिनर पार्टी में कोई भी केंद्रीय स्तर का नेता शामिल नहीं था. सभी राज्य स्तर के नेता डिनर टेबल पर मौजूद थे.

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डिनर टेबल चुनाव तैयारियों पर चर्चा

अमित शाह ठीक 8 बजे स्टेट गेस्ट हाउस से निकले और 8 बजकर 10 मिनट पर सीएम आवास पहुंचे. उनके साथ बीजेपी की तरफ से कुल 7 लोग डिनर पार्टी में शामिल हुए. जिसमें बिहार बीजेपी प्रभारी भूपेंद्र यादव, डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी, बिहार बीजेपी अध्यक्ष नित्यानंद राय, मंत्री प्रेम कुमार, मंगल पाण्डेय, नंदकिशोर यादव और संगठन मंत्री नागेंद्र जी शामिल रहे. जबकि जेडीयू की तरफ से कुल 4 लोग इस डिनर में बुलाए गए थे. जिसमें, बिहार जेडीयू अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह, राष्ट्रीय महासचिव आरसीपी सिंह, मंत्री, बिजेंद्र यादव और ललन सिंह शामिल रहे.

नीतीश कुमार की डिनर पार्टी नए बने संकल्प भवन के बैंक्वेट हॉल में हुई. ज्यादातर व्यंजन शाकाहारी थे. सीएम आवास पहुंचनेवालों में सबसे आखिरी मेहमान अमित शाह ही थे. इस डिनर पार्टी को लेकर बिहार की मीडिया में 2 दिनों से चर्चा थी कि सीट शेयरिंग पर दोनों नेता बातें करेंगे. मगर डिनर में चुनाव तैयारियों पर चर्चा हुई, वो भी सिमित दायरे में. लेकिन अमित शाह और नीतीश कुमार की एकांत में क्या बातें हुई? अभी उसे बाहर आना बाकी है.

जब नीतीश ने खींची थी थाली

5 साल पहले नीतीश कुमार ने अपने यहां होनेवाले डिनर पार्टी को इसलिए कैंसल कर दिया था कि बीजेपी के बड़े नेताओं में नरेंद्र मोदी भी शामिल थे. तब उनका नाम प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारों में सबसे आगे चल रहा था. उस वक्त नीतीश कुमार ने कहा था कि ऐसे शख्स को प्रधानमंत्री बनते नहीं देख सकते जिसके शासनकाल में दंगा हुआ हो.

2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो तब नीतीश कुमार ने एनडीए से गठबंधन तोड़ने में एक मिनट भी देरी नहीं की. मगर अब वही नीतीश कुमार नरेंद्र मोदी को खुश करने के लिए अमित शाह को अपने घर बुलाकर साथ में डिनर किया. करीब 15 साल तक नीतीश कुमार ने बिहार में अपनी शर्तों पर एनडीए के साथ गठबंधन का नेतृत्व किया.

ये वही नीतीश कुमार ने जिन्होंने बिहार में बीजेपी को अपनी बनाई ‘लकीर’ पर चलने को मजबूर किया. बिहार में सत्ता की लगाम फिर से नीतीश कुमार की हाथों में है. बीजेपी गठबंधन में ‘जूनियर पार्टनर’ की तरह है. मगर अगले चुनाव में ये हालत रहेंगे या नहीं कहना जल्दबाजी होगी. 2019 के चुनाव में अपना गुणा-गणित ठीक करने के लिए नीतीश की ‘लकीर’ पर बीजेपी कब तक चलेगी? इसके लिए थोड़ा इंतजार करना होगा.

बिहार में सीटों का गुणा-गणित

2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 22 सीटें मिली थी. जाहिर सी बात है वो इस बार ज्यादा सीटें जीतना चाहेगी. जेडीयू की मांग है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में 2009 वाला फॉर्मूला अपनाया जाए. 2009 में जेडीयू को 20 और बीजेपी को 12 सीटें मिली थी. जबकि 2014 में बिहार की 40 सीटों में से बीजेपी ने 29 सीटों पर चनाव लड़ा था. 7 सीटें रामविलास पासवान और 4 सीटें उपेंद्र कुशवाहा के खातें में गई थी.

जेडीयू का कहना है कि उसका गठबंधन सिर्फ बीजेपी से है. अपने सहयोगियों के लिए बीजेपी को इंतजाम करना होगा. इसका मतलब ये हुआ कि जेडीयू के फॉर्मूले के मुताबिक 2019 में बीजेपी सिर्फ 4 सीटों पर चुनाव लड़े. इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है. अजेय सी दिखनेवाली पार्टी को क्या नीतीश कुमार इतना मजबूर कर पाएंगे? क्या बीजेपी इतनी मजबूर हो सकती है कि वो नीतीश के फॉर्मूले को अपना ले? ये सोचना किसी सुसाइडल से कम नहीं है.

ये सही है कि पिछले कुछ चुनावों में बीजेपी की जीत की रफ्तार थोड़ी धीमी हुई है. मगर इतनी भी धीमी नहीं है कि वो नीतीश कुमार की ‘पिछलग्गू’ बने. ऐन चुनाव से पहले अगर बीजेपी नीतीश कुमार के साथ महबूबा मुफ्ती वाला सलूक करने की ठान ले तो फिर नीतीश की राह कहां जाएगी? अगर जेडीयू और आरजेडी अलग-अलग चुनाव लड़े तो बीजेपी के लिए फायदे का सौदा हो सकता है. ऐसी बात नहीं है कि नीतीश कुमार को इसका अंदाजा नहीं होगा. आरजेडी पहले ही नीतीश के लिए अपने दरवाजे बंद कर चुकी है. अगर नीतीश को आरजेडी, कांग्रेस और बीजेपी का साथ नहीं मिला तो 2014 में जीते अपने 2 लोकसभा की सीटों को बचा पाएंगे या नहीं, इस पर भी सवाल है.

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