दिल्ली। तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले येदियुरप्पा के संघर्ष की कहानी बेहद ही दिलचस्प है। येदियुरप्पा के सहारे ही दक्षिण में पहली बार बीजेपी ने सत्ता का स्वाद चखा था। बिन येदियुरप्पा जब 2013 में कर्नाटक चुनाव लड़ी तो नतीजा सबको पता है। उसके बाद पीएम मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले येदियुरप्पा को फिर से बीजेपी में लेकर आए।
क्लर्क से मुख्यमंत्री बनने तक का सफर
कर्नाटक की राजनीति में 75 साल के बकुंकरे सिद्दालिंगप्पा येदियुरप्पा वो नाम हैं,
जिनकी बदौलत बीजेपी साल 2008 में दक्षिण में पहली बार कमल खिलाने में कामयाब रही थी।
येदियुरप्पा इतना मजबूत नाम है कि अनंत हेगड़े और प्रताप सिम्हा के
हिंदुत्व को नजरअंदाज कर पार्टी ने विधानसभा चुनावों से पहले ही
सीएम कैंडिडेट के लिए उनके नाम की घोषणा कर दी थी।
चावल मिल के क्लर्क से जमीनी किसान नेता और फिलहाल कर्नाटक में लिंगायतों के
सबसे बड़े नेता येदियुरप्पा कई मुश्किलों से गुजर यहां तक पहुंचे हैं।
भ्रष्टाचार के आरोप में उनकी सरकार गिर गई थी।
घोटाले के आरोपों से घिर गए और बीजेपी से अलग होकर कर्नाटक जनता पक्ष की पार्टी तक बना ली।
हालांकि 2014 में फिर बीजेपी में लौटे और अब तीसरी बार वो जो मुख्यममंत्री बने।
येदियुरप्पा की कहानी
वहीं, कर्नाटक की राजनीति में सिर्फ लिंगायत नेता कहकर येदियुरप्पा को खारिज करना आसान नहीं है।
कर्नाटक के मांड्या जिले के बुकानाकेरे में सिद्धलिंगप्पा और पुत्तथयम्मा के घर
27 फरवरी 1943 को जन्मे येदियुरप्पा ने चार साल की उम्र में अपनी मां को खो दिया था।
उन्होंने अपने पॉलिटिकल करियर की शुरुआत साल 1972 में शिकारीपुरा तालुका के जनसंघ अध्यक्ष के रूप में की थी।
इमरजेंसी के दौरान वे बेल्लारी और शिमोगा की जेल में भी रहे।
यहां से उन्हें इलाके के किसान नेता के रूप में जाना जाने लगा था।
साल 1977 में जनता पार्टी के सचिव पद पर काबिज होने के साथ ही राजनीति में उनका कद और बढ़ गया।
कर्नाटक की राजनीति में उन्हें नजरंदाज करना इसलिए नामुमकिन हो जाता है
क्योंकि 1988 में ही उन्हें पहली बार बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया था।
येदियुरप्पा 1983 में पहली बार शिकारपुर से विधायक चुने गए और फिर छह बार यहं से जीत हासिल की।
1994 के विधानसभा चुनावों हार के बाद येदियुरप्पा को विपक्ष का नेता बना दिया गया।
1999 में जब वो चुनाव हार गए तो बीजेपी ने उन्हें एमएलसी बना दिया।
जिन दो महत्वपूर्ण जातियों के हाथ से राजनीति का भविष्य रहा है वो है लिंगायत और वोक्कालिगा।
कर्नाटक में सीएम अमूमन इसी समुदाय से ही रहे हैं।
पिछले विधानसभा चुनावों में हार के बाद बीजेपी को समझ आ गया कि
बिना येदियुरप्पा के कर्नाटक में कमल खिलना बेहद मुश्किल है।
कहा जाता है कि कर्नाटक की राजनीति में एक वक्त में येदियुरप्पा का नाम सबसे दागदार हो गया था।
जगदीश शेट्टर के जरिए बीजेपी ने भी लिंगायत वोटों को नई राह दिखाने की खूब कोशिश की
लेकिन येदियुरप्पा ने पकड़ ढीली नहीं होने दी। कर्नाटक की सबसे मजबूत जाति लिंगायत के
हिस्से 21 फीसदी वोट है। इसका सबसे ज्यादा वोट येदियुरप्पा को ही जाता है।
राजनीति के जानकार मानते हैं कि येदियुरप्पा की छवि लिंगायत नेता से ज्यादा
किसान नेता की थी लेकिन कांग्रेस ने ही उन्हें वक्त के साथ लिंगायतों का नेता बना दिया।
संदिग्ध हालात में पत्नी की मौत
साल 2004 में येदियुरप्पा की पत्नी का निधन कुएं में गिरने से संदिग्ध परिस्थितियों में हो गई थी।
उनके ऊपर जमीन घोटाले और अवैध खनन घोटाले का आरोप है।
2010 में उनके ऊपर आरोप लगा था कि बेंगलुरु के
प्रमुख जगहों पर अपने बेटों को भूमि आवंटित करने के लिए पद का दुरुपयोग किया।
लेकिन खनन क्षेत्र से जुड़े प्रभावशाली रेड्डी बंधु उनके लिए परेशानी का सबब बने रहे।
बाद में बीजेपी के ही 11 बागी विधायकों और पांच निर्दलीय विधायकों ने
येदियुरप्पा सरकार से समर्थन वापस लेकर उन्हें संकट में डाल दिया।
वह बच गए और दो बार विश्वास मत में जीत हासिल की।
वहीं, बगावत करने वाले 11 विधायकों को उच्च न्यायलय द्वारा आयोग्य करार दिए
जाने के फैसले से संकट टलता देख रहे येदियुरप्पा के सामने फिर से कठिनाई का दौर शुरू हुआ
जब जेडीएस ने उन पर और उनके परिवार पर भूमि घोटालों के अनेक आरोप लगाए।
गौरतलब है कि कांग्रेस की धरम सिंह नीत गठबंधन सरकार को हटाने में
जेडीएस नेता कुमारस्वामी की मदद करके येदियुरप्पा ऊंचाई पर पहुंचे थे।
कुमारस्वामी ने बीजेपी की मदद से सरकार बनाई।
जेडीएस और बीजेपी के बीच समझौता हुआ,
जिसके मुताबिक कुमारस्वामी पहले 20 माह तक मुख्यमंत्री रहेंगे।
जिसके बाद 20 महीनों के बाकी कार्यकाल में इस पद पर येदियुरप्पा काबिज होंगे।
कर्नाटक में राष्ट्रपति शासन लगाया गया, जिसे सात नवंबर को हटा दिया गया।
राष्ट्रपति शासन की अवधि के दौरान जेडीएस और भाजपा ने अपने मतभेद दूर करने का फैसला किया
और येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बने। उन्होंने 12 नवंबर 2007 में सीएम पद की शपथ ली।
जेडीएस ने मंत्रालयों के प्रभार को लेकर उनकी सरकार को समर्थन देने से इनकार कर दिया,
जिसके बाद 19 नवंबर, 2007 को उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
घोटाले के आरोपों के बाद पार्टी से निकाल दिए गए 75 साल के येदियुरप्पा ने 2011 में अपना अलग संगठन बनाया गया था
लेकिन 2013 में इसका प्रदर्शन काफी खराब रहा था लेकिन वह बीजेपी के वोटबैंक का एक हिस्सा काटने में सफल रहे थे।
इस वजह से बीजेपी को कर्नाटक में हार का मुंह देखना पड़ा था और
2014 में बीजेपी से उनका फिर से समझौता हो गया और अब तीसरी बार वो कर्नाटक का सीएम बने हैं।
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