दिल्ली। तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और डीएमके प्रमुख करुणानिधि का 94 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। उन्होंने अंतिम सांस चेन्नई के कावेरी अस्पताल में ली है। निधन के बाद से पूरे तमिलनाडु में शोक की लहर है। ऐसे में अब एक सवाल उठ रहा है कि करुणानिधि का विरासत कौन संभालेगा? लेकिन दो साल पहले उन्होंने इस सवाल पर विराम लगाते हुए अपने बेटे एमके स्टालिन को सियासी वारिस घोषित कर दिया था।
करुणानिधि का विरासत कौन संभालेगा?
एम करुणानिधि ने द्रविड़ मुनेत्र कडगम की कमान पिछले 50 सालों से संभाल रखी थी और उनके बाद पार्टी की कमान किसके पास रहेगी, यह सवाल हमेशा से उठता रहा है। लेकिन अक्टूबर 2016 में ही उन्होंने स्टालिन को अपना वारिस घोषित करते हुए स्पष्ट किया था कि इसका यह मतलब नहीं है वे खुद संन्यास ले रहे हैं।
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ये घोषणा पार्टी कार्यकर्ताओं को स्पष्ट संदेश है कि पार्टी का उत्तराधिकारी मौजूद है। साथ ही अझागिरी और स्टालिन गुटों के बीच चल रहे सत्ता संघर्ष पर विराम लगाने की कोशिश भी थी। इससे पहले जनवरी, 2013 में करुणानिधि ने स्टालिन को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। जनवरी 2017 में स्टालिन को कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया था। हालांकि करुणानिधि ने पार्टी सुप्रीमो की कमान अपने हाथ में रखी थी।
दूसरा सबसे बड़ा राजनीतिक परिवार
वहीं, कहा जाता है कि स्टालिन पार्टी के अन्य नेताओं की तुलना में आम लोगों से मिलने से परहेज नहीं करते और उनसे कहीं भी मिल लेते थे। इस कारण वह लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय हो गए।
वहीं, कहा जाता है कि मुलायम सिंह यादव के बाद करुणानिधि का परिवार देश का दूसरा सबसे बड़ा राजनीतिक परिवार है। इनके बेटे सांसद और मंत्री रह चुके हैं और बेटी अब भी डीएमके सांसद है। करुणानिधि के परिवार के अंदर भी सत्ता को लेकर संघर्ष जारी रहता है।
अझागिरी और स्टालिन कॉम्पिटिशन
दरअसल, करुणानिधि के बेटों अझागिरी और स्टालिन लंबे समय से खुद को पार्टी पर उत्तराधिकारी घोषित करने की मांग करते रहे हैं। एक वक्त था जब अझागिरी डीएमके की दक्षिणी राज्य इकाई को संभाला करते थे, लेकिन बाद में स्टालिन आए और उन्होंने तेजी से ऊपर चढ़ते हुए पार्टी संगठन पर जबरदस्त पकड़ बनाई, इसे संभाला और जनसंपर्क के ढेरों कार्यक्रम चलाए।
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