दिल्ली। जब योगी यूपी के सीएम बने हैं, उत्तर प्रदेश के चार लोकसभा सीटों पर उपचुनाव हुए है। इन चारों सीटों पर बीजेपी की हार हुई है। गोरखपुर सीट तो सीएम योगी आदित्यनाथ का गढ़ रहा है, फिर भी बड़े अंतर से बीजेपी वहां उपचुनाव हार गई थी।
लगातार हो रही हार के बाद पीएम नरेंद्र मोदी के उस फैसले पर सवाल उठने लगे हैं कि क्या मोदी ने योगी को यूपी का सीएम बनाकर सबसे बड़ी भूल की थी।
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बंपर जीत के बाद हार पर सवाल
जिस यूपी में 2014 के लोकसभा और एक साल पहले 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में बंपर सीटें मिली थी, अब उसी राज्य में बीजेपी को लगातार हार मिल रही है। 2017 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 325 सीटों के साथ ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी और 14 साल के सत्ता के वनवास को खत्म किया था।
लेकिन दोनों बार यूपी में बीजेपी के लिए ये करिश्मा पीएम नरेंद्र मोदी के चेहरे की वजह से हुआ था। क्योंकि यूपी चुनाव के दौरान बीजेपी ने किसी को सीएम प्रोजेक्ट कर चुनाव नहीं लड़ा था। लेकिन प्रचंड जीत के बाद पीएम मोदी और अमित शाह ने सत्ता की कमान योगी आदित्यनाथ को सौंपी। बताया जा रहा है कि बीजेपी जिस जातीय संतुलन को साधकर सत्ता में आई थी, योगी आदित्यनाथ उसे साथ लेकर चलने में सफल नहीं हो सके हैं।
बीजेपी की जीत में सबसे अहम भूमिका ओबीसी और दलित समुदाय की थी। लेकिन शासन और सत्ता में उन्हें उचित भागीदारी नहीं दी गई। इसके अलावा योगी राज में राजपूत और दलितों के बीच सहारनपुर जैसी हिंसक घटनाएं भी सामने आईं। इसके अलावा सीएम आदित्यनाथ पर एक जाति विशेष के लोगों को बढ़ावा देने का भी आरोप लगा। विपक्ष ने इसी का फायदा उठाने का काम किया।
एजेंडा पीछे छूटने से मतदाता नाराज?
वहीं, मोदी यूपी के वाराणसी सीट से सांसद हैं। ऐसे में लोगों को उनसे कुछ ज्यादा ही उम्मीद थी। जिस प्रकार से उन्होंने गुजरात का विकास किया है वैसा ही कुछ यूपी में भी होगा। लेकिन केंद्र में मोदी सरकार के चार साल और प्रदेश में बीजेपी सरकार का एक साल हो गया है। लेकिन सरकार के पास विकास के नाम पर गिनाने के लिए कुछ खास नहीं है।
इसके साथ ही योगी आदित्यनाथ कई वर्षों तक खुद एक कट्टर हिंदुत्ववादी राजनीति के चेहरे थे। सीएम बनने के बाद योगी ने नया अवतार लिया, तो उनका नारा था, किसी से भेदभाव नहीं और किसी की मनुहार नहीं। लेकिन अब वे अपनी छवि से विपरीत नजर आ रहे हैं।
जो बीजेपी के कट्टर समर्थकों को रास नहीं आ रहा है। योगी ताजमहल के बाहर झाड़ू लगा रहे हैं, मस्जिद में जाने की बात करते हैं और मदरसों को मॉडर्न बनाने में लगे हैं। योगी की बदली छवि से हिंदुत्व का एजेंडा पीछे छूटता जा रहा है।
राममंदिर मुद्दे पर कुछ खास नहीं हुआ
वहीं, अयोध्या में राममंदिर बीजेपी का मूल मुद्दा था। केंद्र और राज्य में बीजेपी की सरकारें होने के बाद भी पार्टी राममंदिर मामले पर खामोशी अख्तियार किए हुए है। जबकि विपक्ष में रहते हुए योगी आदित्यनाथ राम मंदिर मामले को जमकर उठाते रहे हैं। अब जब सत्ता में हैं तो मामले की आपसी बातचीत से सुलझाने या फिर कोर्ट के जरिए हल करने की बात कही जा रही है।
इसके अलावे कैराना व नूरपुर की जीत से विपक्षी दलों के गठबंधन की नींव मजबूत हुई है। बीजेपी तमाम कोशिशों के बावजूद इन सीटों पर ध्रुवीकरण कराने में नाकाम रही। कैराना जैसे सामाजिक समीकरण वेस्ट यूपी के कई जिलों में हैं।
यह वही इलाका है जहां 2013 के दंगों के बाद बीजेपी के पक्ष में 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनावों में सांप्रदायिक आधार पर मतों का ध्रुवीकरण हुआ था।
अब प्रदेश में योगी सरकार के एक साल से ज्यादा का वक्त बीत चुका है, लेकिन बीजेपी को फायदा होने की बजाय लगातार नुकसान उठाना पड़ रहा है। सीएम और डिप्टी सीएम को अपनी संसदीय सीट गंवानी पड़ रही है।
वो भी उस समय जब लोकसभा चुनाव नजदीक है, ये बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है। ऐसे में अब सवाल उठने लगे हैं कि क्या योगी को यूपी का सीएम बनाना पीएम मोदी की सबसे बड़ी राजनीतिक भूल थी।