बीजेपी के साथ जाने से नीतीश को हुआ नुकसान..जानिए कैसे?

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बीजेपी के साथ जाने से नीतीश को हुआ नुकसान..जानिए कैसे?

बीजेपी के साथ जाने से नीतीश को हुआ नुकसान..जानिए कैसे?

पटना। जुलाई 2017 में महागठबंधन से नाता तोड़कर जब नीतीश ने दोबारा बीजेपी का दामन थामा, तो सियासी नफा-नुकसान को लेकर कई आकलन किए जाने लगे। आकलन खुद नीतीश ने भी किया होगा। लेकिन नीतीश के सारे आकलन उपचुनाव के नतीजों में फेल साबित होते नज़र आ रहे हैं।

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जोकीहाट में नीतीश पर दोहरी मार

नतीजों ने कम से कम ये बता दिया है कि नीतीश का महागठबंधन छोड़ बीजेपी के साथ जाना घाटे का सौदा ही साबित हुआ है। जिसका ताजा उदाहरण है जोकीहाट उपचुनाव के नतीजे।

जोकीहाट उपचुनाव में ना सिर्फ नीतीश की हार हुई है, बल्कि पिछली बार के मुकाबले वोटों की संख्या में भारी कमी हुई है। साल 2015 विधानसभा चुनाव में जेडीयू को 92 हजार 890 वोट मिले थे।

तब नीतीश महागठबंधन में थे और जेडीयू के उम्मीदवार सरफराज अहमद थे। लेकिन बीजेपी के साथ आने के बाद हुए जोकीहाट उपचुनाव में जेडीयू उम्मीदवार को सिर्फ 40 हजार 16 वोट मिले हैं।

यानी 2015 चुनाव के मुकाबले जेडीयू को करीब 52 हजार 874 वोटों का नुकसान हुआ है। हालांकि एक पहलू ये भी है कि जेडीयू एक बार फिर 2005 और 2010 की स्थिति में पहुंच गया है।

2005 विधानसभा चुनाव में जोकीहाट में जेडीयू उम्मीदवार को 39 हजार 7 वोट मिले थे, जबकि 2010 में 44 हजार 27 वोट मिले थे। अगर 2005, 2010 और 2018 उपचुनाव में मिले वोटों को देखे तो जेडीयू का अपना वोट करीब 40 हजार उसके साथ हैं। लेकिन जेडीयू को फायदा महागठबंधन में जाने से ही 2015 में मिल पाया था।

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ब्रांड नीतीश की चमक फीकी पड़ी?

संदेश साफ है कि नीतीश आरजेडी के साथ थे, तो 70 फीसदी अल्पसंख्यकों वाली सीट जोकीहाट में अल्पसंख्यकों ने झोली भर कर वोट दिया। लेकिन बीजेपी के साथ जाने के बाद अल्पसंख्यक उनसे कन्नी काट रहे हैं।

हालांकि जेडीयू की दलील है कि तस्लीमुद्दीन के गढ़ होने की वजह से उनके निधन के बाद उनके बेटे शाहनवाज़ को श्रद्धांजलि के रुप में वोट मिले हैं। लेकिन मन को बहलाने के लिए ये तर्क हो सकता है।

क्योंकि इसी जोकीहाट सीट पर दो बार तस्लीमुद्दीन परिवार से अलग उम्मीदवार मंजर आलम जेडीयू के टिकट पर जीत चुके हैं और तस्लीमुद्दीन के बेटे सरफराज आलम को ही हराया है।

तो क्या उस वक्त ब्रांड नीतीश का असर था और आज ब्रांड नीतीश भी अपना असर खो चुका है। तो क्या बीजेपी के साथ जाने से ब्रांड नीतीश को भी नुकसान पहुंचा है।

ज़ाहिर है ऐसे सवालों का जवाब जल्द से जल्द नीतीश कुमार को निकालना होगा। अगर भविष्य की राजनीति में नीतीश अपने वजूद को कायम रखना चाहते हैं।

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