ये डर है, मजबूरी, जरूरत या फिर अदावत। ये धमक है, कुटनीति, रणनीति या फिर तालमेल। ये नेवरहुड है, दोस्ती, समझौता या फिर करार। ये आडंबर है, संयोग, वार्ता या फिर व्यापार।
दरअसल, इस मुलाकात के मायने हैं, इस गर्मजोशी की वजह है, इस दौरे की दरकार है और यही है पीएम मोदी की अंतर्राष्ट्रीय तटस्थता भी।इस दौर में भारत की इमेज तेजी से उभरते इकॉनोमी की है जहां दो चीजें काफी महत्वपूर्ण हैं, एक सुरक्षा और दूसरा व्यापार।
पीएम मोदी की अंतर्राष्ट्रीय तटस्थता
जब से नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, उनका एक खास स्टाइल है। वो पहले जुड़ते हैं, फिर मजबूती से अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हैं। बाहरी सुरक्षा के लिहाज से ये तरीका काफी प्रभावशाली होता है। साथ ही मुलाकात के जरिए दूसरा पहलू भी असरदार तरीके से पेश किया जा सकता है…क्योंकि व्यापार ही वो जरिया है जिससे दो देशों के बीच आर्थिक जुड़ाव होता है।
मोदी-जिनपिंग की मुलाकात
दोनों देशों के बीच पिछले साल की डोकलाम तनातनी के बाद वक्त और हालात दोनों बदले हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पश्चिमी देशों की धमक को बेअसर करने के लिए नफरतें घटनी जरूरी भी थी। लेकिन पिछले कुछ दिनों के हालात ने भारत और चीन को काफी नजदीक ला खड़ा किया है। अप्रैल में ये संयोग पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच बातचीत के जरिए बना।
इसकी एक बड़ी वजह रही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के स्टील और एल्युमीनियम टैरिफ लगाना जिसके बाद चीन और अमेरिका के बीच व्यापार युद्ध की स्थिति बन गई। तब चीन ने भी अमेरिका के खिलाफ कदम उठाए।
SCO शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए ही पीएम चीन गए हैं। इस संगठन को बनाया तो गया था क्षेत्रीय सुरक्षा के मुद्दे सुलझाने को लेकर लेकिन बदलते वक्त के साथ इसका मकसद भी बदला है।
चीन, रुस, पाकिस्तान और भारत के साथ चार मध्य एशियाई देशों का ये समूह फिलहाल क्षेत्रीय सुरक्षा के साथ ही व्यापार पर भी जोर दे रहा है। ऐसे में आर्थिक गतिविधियों को लेकर चीन अपने पड़ोसी देश भारत की अनदेखी नहीं कर सकता।
ऐसे में चीन जाकर SCO सम्मेलन में शिरकत करने के अलावा वहां के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात करना एक शिष्टाचार भी था और पीएम मोदी स्टाइल में एक प्रभावशाली मौजूदगी दर्ज कराने की जरूरत भी।
PM @narendramodi addressed the Plenary Session of SCOSummit. He spoke on various issues, including the need to further connectivity in the SCO region. pic.twitter.com/tCXiX5umyl
— PMO India (@PMOIndia) June 10, 2018
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जी-7 बनाम SCO
इतना ही नहीं, कई देश ट्रंप की कभी हां-कभी ना वाली पॉलिसी से खुश नहीं। उत्तर कोरिया से बढ़ती नजदीकियों की वजह से जापान नजरअंदाज हुआ है, जबकि अमेरिकी टैरिफ ने चीन को रूस के करीब ला दिया है। जापान भी उत्तर कोरिया पर भरोसा नहीं करता। इन्ही मुद्दों के बीच दुनिया के शक्तिशाली देशों के समूह जी-7 का दो दिवसीय सम्मलेन शुरू हुआ।
जी 7 के सदस्य देशों में अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ़्रांस, इटली, जापान और कनाडा शामिल हैं. भारत इस लिस्ट में नहीं और रूस और चीन भी इसके सदस्य नहीं। ऐसे में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शिखर सम्मेलन को एक तरह से इसके जवाब के तौर पर भी देखा जा रहा है।
पिछले डेढ़ महीने में मोदी-जिनपिंग की ये दूसरी मुलाकात है। इस दौरान दोनों नेताओं ने बाइलैटेरल ट्रेड पर जोर दिया है और 2020 तक 100 अरब डॉलर का इसका लक्ष्य भी रखा गया है।