/2019 के लिए राहुल ने बनाया नया विभाग, इस शख्स को दी है जिम्मेवारी, एमपी में हुआ बड़ा फायदा
2019 के लिए राहुल ने बनाया नया विभाग, इस शख्स को दी है जिम्मेवारी, एमपी में हुआ बड़ा फायदा

2019 के लिए राहुल ने बनाया नया विभाग, इस शख्स को दी है जिम्मेवारी, एमपी में हुआ बड़ा फायदा

2019 के लिए राहुल ने बनाया नया विभाग, इस शख्स को दी है जिम्मेवारी, एमपी में हुआ बड़ा फायदा

दिल्ली। 2019 में सत्ता में वापसी के कांग्रेस अपना पूरा दमखम लगा देना चाहती है। सोनिया गांधी की कांग्रेस अब राहुल गांधी की कांग्रेस में तब्दील हो गई है। इसके साथ ही एक बड़ा बदलाव भी हुआ है।

अब कांग्रेस इस बार के चुनाव में डाटा विश्लेषण का सहारा लेगी। पहले राहुंल ने कंप्यूटर विभाग को आधुनिकता देते हुए डाटा विश्लेषण विभाग बनाया और मुंबई की एक नामी कंपनी के डाटा वैज्ञानिक प्रवीण चक्रवर्ती को इसका चेयरमैन बना दिया।

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एमपी में 60 लाख फर्जी वोटर पकड़े गए

प्रवीण खुद तमिलनाडु के रहनेवाले हैं। इसके बाद डाटा विश्लेषण विभाग ने डाटा के जरिये तमाम जानकारियां आलाकमान को उपलब्ध कराई है, जिसका पहला फायदा पार्टी को मध्य प्रदेश में हुआ है।

मध्य प्रदेश में फर्जी वोटर सूची को शुरुआत में इसी विभाग ने पकड़ा, जिसे लेकर प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय ने पूरा होमवर्क करके चुनाव आयोग में दस्तक दी।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पूरे देश भर के मतदाताओं का डाटा बेस इकट्ठा करके आपस में मिलान करने पर ये गड़बड़ी समाने आयी कि मध्यप्रदेश में एक ही तस्वीर के कई-कई वोटर आईडी बने हैं। बाद में ये आंकड़ा 60 लाख के करीब तक पहुंच गया, जबकि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बड़े पैमाने पर ऐसी गड़बड़ियां नहीं मिली।

कांग्रेस के डाटा विश्लेषण विभाग का मानना है कि डाटा के जरिए बूथ स्तर पर विश्लेषण आसान है और उसके जरिए रणनीति बनाना भी आसान। करीब 600 मतदाताओं का विश्लेषण करके आप चुनाव में रणनीति बना सकते हैं।

बूथ से शुरू करके ब्लॉक, विधानसभा और फिर लोकसभा का पूरा विश्लेषण किया जा सकता है। बूथ में कितने वोट बढ़ाने हैं, इस पर भी टारगेट हो सकता है। डाटा बेस के मुताबिक, पूरा देश या एक लोकसभा पर ऊपर से देखने की बजाय नीचे से बूथ से शुरुआत करनी होगी।

वोट के मुताबिक नहीं मिलती सीटें

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार डाटा विश्लेषण विभाग मानता है कि कांग्रेस को जितना वोट मिलता है उसके मुताबिक सीटें नहीं मिलतीं। कर्नाटक का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे 104 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी बीजेपी 33 सीटों पर जमानत नहीं बचा पाई। डाटा विश्लेषण टीम मनाती है कि इन सीटों पर बूथ में हार देख बीजेपी ने अपना वोट जेडीएस को शिफ्ट कराया, जिससे कांग्रेस न जीते।

इसके अलावा ये भी अहम है कि सबसे ज्यादा करीब 38 फीसद वोट वाली कांग्रेस कैसे 78 सीटों पर सिमट गई। डाटा टीम का मानना है कि डाटा विश्लेषण बताता है कि ऐसा ही होना था।

बूथ स्तर के डाटा के विश्लेषण से मिले बिंदुओं पर नजर रखते हुए वोट को ज्यादा से ज्यादा सीट में कैसे तब्दील किया जाए। इस बाबत बूथ स्तर पर डाटा टीम ने सुझाव भी दिए हैं, जो पूरी तरह डाटा विश्लेषण पर आधारित हैं।

गठजोड़ नहीं रणनीति के तहत गठबंधन

वहीं, डाटा टीम ने कैराना को लेकर एक चौंकाने वाला खुलासा किया है। उसके मुताबिक महागठबंधन का उम्मीदवार होने पर कैराना में कांग्रेस का आठ फीसद वोट बीजेपी को चला गया। इसीलिए बीजेपी सिर्फ 44 हजार के करीब मतों से हारी।

डाटा टीम का ये आंकड़ा कांग्रेस की एक सीट विपक्ष का एक उम्मीदवार की रणनीति पर भी सवाल खड़ा करता है। दरअसल, डाटा विश्लेषण बताता है कि कई ऐसी सीटें मिलती हैं, जहां कांग्रेस नहीं लड़ी तो उसके वोट का कुछ प्रतिशत बीजेपी को शिफ्ट हो सकता है। इसलिए सीधे गठजोड़ की बजाय रणनीति के तहत गठबंधन करना चाहिए।

दरअसल, डाटा टीम 2009 से लेकर अब तक के सभी छोटे-बड़े चुनाव का विश्लेषण किया है। इसके मुताबिक जिस तरह 2009 से कांग्रेस 206 से घटकर 2014 में 44 पर आ गई.

उसी तरह 2014 से अब तक के छोटे-बड़े चुनावों का डाटा विश्लेषण बताता है कि आज की तारीख में बीजेपी 282 से घटकर 201 पर आ पहुंची है और यहीं ट्रेंड रहा तो वो 2019 में 160 सीटें ही ला सकेगी। वहीं कांग्रेस आहिस्ता-आहिस्ता 2019 में 140 के करीब होगी।