पटना। पिछले 2 सप्ताह से नीतीश कुमार के तेवर ने बीजेपी के बड़े नेताओं को अनकम्फर्ट कर दिया है. हालांकि प्रदेश अध्यक्ष के जरिए मैसेज पहुंचाने की कोशिश की गई. उन्होंने आरसीपी सिंह से मुलाकात की.
एलजेपी भी नीतीश के सुर में सुर मिला रही है. नित्यानंद राय ने रामविलास के भाई और मंत्री पशुपति पारस से भी मुलाकात की. चीजों को सेटल करने की कोशिशें जारी है.
नई नवेली ‘दोस्ती’ से परेशानी
इन सब के बीच 7 जून को बिहार एनडीए की बैठक है. माना जा रहा है कि आगामी चुनाव की रणनीतियों पर चर्चा की जाएगी. मगर बीजेपी की परेशानी दूसरी है. पिछले कुछ दिनों से नीतीश कुमार के साथ रामविलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा की मुलाकातें हुई है.
रामविलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा की नीतीश कुमार से ये नई नवेली ‘दोस्ती’ नागवार गुजर रही है. अब ये नेता नीतीश कुमार के सुर में सुर भी मिलाने लगे हैं. नीतीश की बयानबाजी और इस खींचतान की जड़ में 2014 का लोकसभा का रिजल्ट है.
2019 की ‘गोटी’ सेट में जुटे
बिहार की 40 सीटों में 31 एनडीए के खाते में गई थी, इसमें बीजेपी के हाथ 22 सीटें लगी. एलजेपी और आरएलएसपी ने 9 सीटें जीती थी. नीतीश कुमार की पार्टी लोकसभा चुनाव में कुछ खास नहीं कर पाई थी.
अब उनको लगता है कि 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी से अच्छा परफॉर्म करना है तो जीतने के लिए सीटें होनी चाहिए. बीजेपी से ज्यादा सीटें जीतने की भी चुनौती है.
इसी स्ट्रैटजी के तहत नीतीश कुमार ने बिहार की दोनों पार्टियों एलजेपी और आरएलएसपी के नेताओं को अपने पाले में करने की कोशिश में जुटे हैं. इसमें रामविलास और उपेंद्र कुशवाहा भी अपना-अपना फायदा देख रहे हैं.
इन्हें प्रदेश की राजनीति करनी है तो स्टेट में मजबूत जनाधार भी चाहिए. सीटें भी ज्यादा चाहिए ताकि आगे चलकर सत्ता में भागीदारी की सौदेबाजी कर सकें. यही वजह है कि स्पेशल स्टेटस के मुद्दे के पर बेहिचक ये नीतीश कुमार का समर्थन करते हैं. गठबंधन के अंदर रहकर भी बीजेपी को नसीहत देने से नहीं चूकते.
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सौदेबाजी के मूड में एनडीए के घटक
बीजेपी के लिए समस्या ये हैं कि स्पेशल स्टेटस के मुद्दे पर ही आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू एनडीए से अलग हो गए. अब उसी बात को लेकर नीतीश सियासी गेंद उछाल रहे हैं.
बिहार और आंध्र में बीजेपी को चुनौती नहीं मिल रही बल्कि महाराष्ट्र में शिवसेना ने भी कह दिया है कि वो 2019 में बीजेपी के साथ खड़ी नहीं होगी. उपचुनाव में उसने दिखा भी दिया.
जम्मू-कश्मीर में पीडीपी और पंजाब में अकाली दल भी 2019 में कड़ी सौदेबाजी की तैयारी में है. अकाली दल भी कह चुकी है कि बीजेपी को अपने सहयोगियों से अच्छा सलूक करना चाहिए.
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