दिल्ली। राफेल डील पर दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में पांच घंटों की मैराथन सुनवाई हुई. सभी पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया गया. याचिकाकर्ताओं ने राफेल डील की कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग की. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने दलीलें पेश की और सरकार ने भी अपना पक्ष रखा.
सरकार की दलील
सरकार की तरफ से अटार्नी जनरल ने दलील रखी. उन्होंने कहा कि वायुसेना को राफेल जेट की तत्काल जरूरत है. ऑफसेट पार्टनरों को दसॉ ने चुना, सरकार का इसमें कोई हाथ नहीं है. हालांकि इस दौरान अटॉर्नी जनरल ने माना कि फ्रांस की सरकार ने 36 विमानों की कोई गारंटी नहीं दी है. लेकिन फ्रांस के प्रधानमंत्री ने लेटर ऑफ कम्फर्ट जरूर दिया है. हालांकि याचिकर्ताओं ने लेटर ऑफ कम्फर्ट को महत्वहीन करार दिया है. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने वायुसेना के अधिकारियों को भी तलब किया गया था. जिसपर एयर मार्शल वीआर चौधरी, कमांडर इन चीफ ईस्टर्न कमांड आलोक खोसला कोर्ट पहुंचे थे. उन्होंने कोर्ट को बताया कि 4 प्लस जेनरेशन के विमानों की जरूरत की वजह से राफेल का चुनाव किया गया.
याचिकाकर्ता की दलील
प्रशांत भूषण ने कहा कि ऑफसेट बदलने के लिए सरकार ने नियमों को बदला गया. अरुण शौरी ने कहा कि पीएम ने बिना रक्षा मंत्रालय की सलाह के राफेल डील का फैसला किया. संजय सिंह की तरफ से कहा गया कि डील पर बातचीत मई 2015 में शुरू हुई, जबकि अप्रैल 2015 में पीएम ने डील का ऐलान कर दिया था. हालांकि दसॉ के सीईओ ने खुद कहा है कि ऑफसेट चुनने में भारत सरकार की तरफ से कोई शर्त नहीं रखी गई थी और किस कंपनी को चुना जाए इसकी पूरी आजादी दसॉ को थी.
कीमत पर मांग खारिज
इन सबके बीच राफेल की कीमत को सार्वजनिक करने की मांग कर रहे याचिकाकर्ताओं को कोर्ट ने झटका दिया. कोर्ट ने साफ किया कि सरकार ने राफेल की कीमतों पर सीलबंद लिफाफे में जो जानकारी सौंपी है, उस पर चर्चा तभी होगी, जब कोर्ट खुद उसे सार्वजनिक करेगा और करीब 5 घंटे लंबी मैराथन सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की बेंच ने इसपर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.