दिल्ली। राफेल डील पर चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. डील पर सियासत भी जमकर हो रही है. फ्रांसीसी मीडिया की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दसॉ एविएशन के पास रिलायंस डिफेंस से समझौता करने के अलावा कोई ऑप्शन नहीं था. 59 हजार करोड़ रुपए के 36 राफेल फाइटर प्लेन डील मामले में रिलायंस दसॉ के मुख्य ऑफसेट पार्टनर है.
राफेल डील पर चौंकाने वाला खुलासा
फ्रांसीसी वेबसाइट मीडिया पार्ट ने राफेल डील पर चौंकाने वाला खुलासा करने का दावा किया है कि ”उनके पास मौजूद दस्तावेज से इस बात की पुष्टि करते हैं कि फ्रांस के पास रिलायंस को पार्टनर चुनने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था”. मीडियापार्ट ने ही पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के उस दावे को प्रकाशित किया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि राफेल सौदे के लिए भारत सरकार ने अनिल अंबानी की रिलायंस का नाम प्रस्तावित किया था और दसॉ कंपनी के पास कोई दूसरा ऑप्शन नहीं था.
राफेल डील पर चौंकाने वाला खुलासा करनेवाले मीडिया पार्ट के मुताबिक रिलायंस डिफेंस के साथ समझौता कर के 36 फाइटर प्लेन का कॉन्ट्रैक्ट फ्रांस को मिला. हालांकि फ्रांस सरकार और दसॉ ने ओलांद के दावे को खारिज कर दिया था. भारतीय रक्षा मंत्रालय ने ओलांद के दावे को विवादास्पद और गैर जरूरी बताया था. मंत्रालय ने कहा था कि भारत ने ऐसे किसी कंपनी का नाम नहीं सुझाया था. समझौते के मुताबिक दसॉ को कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू का 50 फीसदी हिस्सा भारत को ऑफसेट या रीइंवेस्टमेंट के तौर पर देना था.
कितना कारगर है राफेल फाइटर प्लेन?
- राफेल विमान परमाणु मिसाइल डिलीवर करने में सक्षम है. दुनिया का सबसे सुविधाजनक हथियार को इस्तेमाल करने की क्षमता है.
- इसमें 2 तरह की मिसाइलें हैं. एक 150 सौ किलोमीटर और दूसरी का करीब 300 किलोमीटर है. राफेल जैसा विमान चीन और पाकिस्तान के पास भी नहीं है.
- ये इंडियन एयरफोर्स के इस्तेमाल किए जानेवाले मिराज-2000 का एडवांस वर्जन है. वायुसेना के पास फिलहाल 51 मिराज-2000 है.
- दसॉ एविएशन के मुताबिक रफेल की स्पीड मैक 1.8 है यानी करीब 2020 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार. ऊंचाई 5.30 मीटर और लंबाई 15.30 मीटर. राफेल में हवा में तेल भरा जा सकता है.
- राफेल फाइटर प्लेन का इस्तेमाल अब तक अफगानिस्तान, लीबिया, माली, इराक और सीरिया के खिलाफ इस्तेमाल हुआ है.
राफेल की खरीदारी का इतिहास जानिए
साल 2010 में यूपीए सरकार ने राफेल खरीद की प्रक्रिया फ्रांस से शुरू की. 2012 से 2015 तक दोनों के बीच बातचीत चलती रही. रक्षा मामलों के जानकारों के मुताबिक भारत को 126 विमान खरीदने थे. तय ये हुआ था कि भारत 18 विमान खरीदेगा और 108 विमान बेंगलुरू के हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड में एसेम्बल होंगे. लेकिन सौदा नहीं हो पाया. इसके लिए फ्रांस की सरकार उस वक्त तैयार नहीं थी. इसकी कुल राशि करीब 59 हजार करोड़ रुपए तय की गई थी.
2014 में यूपीए की जगह मोदी सरकार सत्ता में आई. सितंबर 2016 में भारत ने फ्रांस के साथ 36 राफेल विमानों के लिए करीब 59 हजार करोड़ रुपए के सौदे पर हस्ताक्षर किए. मोदी सरकार ने सितंबर 2016 में कहा कि रक्षा सहयोग के संदर्भ में 36 रफाल लड़ाकू विमानों की खरीद को लेकर खुशी की बात है कि दोनों पक्षों के बीच वित्तीय पहलुओं को छोड़कर समझौता हुआ है.