/पूरी दुनिया से निपटने लायक कैसे बना चीन? ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति तो जिम्मेदार नहीं?
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पूरी दुनिया से निपटने लायक कैसे बना चीन? ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति तो जिम्मेदार नहीं?

दिल्ली। कई बार जो चीज सामने से जैसी दिखती है, वैसी होती नहीं है. तत्काल के लिए भले ही अच्छा लगे बाद में उसका रिजल्ट ‘अमेरिका फर्स्ट’ (America First) जैसा होता है. चीन से निपटने में अमेरिका के सामने सबसे बड़ी बाधा America First की नीति है. एक वक्त लगभग हर संगठन और तमाम गठबंधनों में अमेरिका का दबदबा हुआ करता था. अब वैश्विक व्यवस्था में अमेरिका खुद ही अपनी स्थिति कमजोर कर ली है. ट्रंप राष्ट्रपति बनने के बाद से अब तक कुल 12 अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और संधियों से अमेरिका को अलग कर चुके हैं.

America First की वजह से मौका?

ट्रंप प्रशासन की America First की नीति और एकपक्षीय व्यवस्था को लागू करने की वजह से बनी खाली जगह को ही चीन को उभरने का मौका मिला. जहां-जहां से अमेरिका अपने पैर सिकोड़ता गया, वहां-वहां चीन अपना पैर पसारता गया. सत्ता में आने के बाद ट्रंप की विदेश नीति का सबसे पहला कदम था ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप से अमेरिका को अलग करना, जिसे चीन को रोकने के लिए आर्थिक साझेदारी माना जा रहा था.

अमेरिका के सहयोगी जरूर आगे बढ़े गए मगर उसकी गैरमौजूगी ने इस संगठन को कमजोर कर दिया. इसमें कनाडा, जापान, ऑस्ट्रेलिया समेत प्रशांत क्षेत्र के 12 देश और आसियान देश शामिल थे. अगर अमेरिका ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप से बाहर नहीं निकलता तो इसकी ग्लोबल जीडीपी में 40 फीसदी की हिस्सेदारी होती.

ईरान में चीन ने पसार दिया पांव

ट्रंप की ईरान पॉलिसी की आलोचना होती है. अमेरिका ने ईरान के साथ हुई परमाणु डील से बाहर होने के बाद उस पर कई कड़े प्रतिबंध थोप दिए. ईरान की अर्थव्यवस्था इन प्रतिबंधों की वजह से बुरी तरह प्रभावित हुई. हाल ही में संकट से उबरने के लिए ईरान ने चीन के साथ 25 सालों के लिए अरबों डॉलर की रणनीतिक-आर्थिक समझौता कर लिया.

मध्य पूर्व में अमेरिका का दबदबा हुआ करता था. जबकि चीन की भूमिका सीमित होती थी. लेकिन अब इस समझौते के बाद इस क्षेत्र में चीन की पकड़ मजबूत होगी. कुछ एक्सपर्ट यहां तक कह रहे हैं कि चीन के साथ इस बड़ी रणनीतिक साझेदारी के लिए अमेरिका ने ही ईरान को मजबूर कर दिया.

भारत पर भी ट्रंप प्रशासन की मार

एशिया में जापान और दक्षिण कोरिया के साथ अमेरिका के खास रिश्ते थे. दोनों देशों की सेना और उनकी सुरक्षा में अमेरिका की अहम भूमिका रही है. लेकिन ट्रंप ने साफ कह दिया कि जापान अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी खुद ले. दक्षिण कोरिया को उत्तर कोरिया से सबसे ज्यादा खतरा रहा है लेकिन ट्रंप ने किम जोंग उन से बात करना ज्यादा ठीक समझा.

ट्रंप प्रशासन की America First की मार केवल कनाडा़, जापान, दक्षिण कोरिया और मेक्सिकों पर ही नहीं पड़ी बल्कि इसका शिकार भारत भी बना. भारत को अमेरिका से निर्यात में कई तरह की छूट मिलती थी, जिसे ट्रंप प्रशासन ने खत्म कर दिया. भारत की आर्थिक नीतियों की आलोचना भी की.

विश्व स्वास्थ्य संगठन से बाहर हो गया

चीन पर हथियार नियंत्रण और निगरानी के लिए दबाव बनाने में भी अमेरिका तब ज्यादा कामयाब होता अगर वो खुद हथियार नियंत्रण के तीन अहम समझौतों से बाहर नहीं हुआ होता.

अमेरिका रूस के साथ रणनीतिक परमाणु हथियारों को सीमित करने वाले न्यू स्टार्ट समझौते से भी निकलने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है.

जब पूरी दुनिया कोरोना वायरस की महामारी से लड़ रही है को अमेरिका ने विश्व स्वास्थ्य संगठन से बाहर होने का फैसला ले लिया. अमेरिका ने कहा का विश्व स्वास्थ्य संगठन पर चीन का कब्जा हो गया है. ग्लोबल लीडरशिप से पीछे हटने का अमेरिका का हालिया उदाहरण है.

चीन के खिलाफ अमेरिका अपने सहयोगियों को एक साथ खड़ा करने में जटा है, मगर ऐसा लगता है कि अमेरिका की कूटनीति अब तक के सबसे खराब दौर में पहुंच गई है. जिसकी सबसे बड़ी वजह America First की पॉलिसी है. ऐसे हालात में चीन अकेले ही अमेरिका से बेहतर तरीके से निपटता दिख रहा है.

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