मुकेश सहनी से ‘सन ऑफ मल्लाह’ बनने की कहानी को आप कितना जानते हैं?
दिल्ली। 1999 में 18 साल की उम्र में एक लड़का (Mukesh sahani) अपनी पढ़ाई छोड़ कर, घर से भाग कर दरभंगा स्टेशन पर अपने एक दोस्त के साथ पहुंचा. जेब में मात्र 200 रुपए थे. दिल्ली वाली ट्रेन लेट थी, तब तक मुंबई जानेवाली पवन एक्सप्रेस प्लेटफॉर्म पर आ गई. अपने दोस्त के साथ वो लड़का ट्रेन में चढ़ गया. ये ट्रेन कहां जाएगी, पता नहीं था. वो ट्रेन मुंबई की थी और जाने अनजाने में मुकेश सहनी (Mukesh sahani) मुंबई पहुंच गए.
बिहार छोड़ते वक्त जेब में 200 रु.
एक ऐसे जगह जहां बिना पैसे के रहना एक पल भी मुश्किल होता है. मुंबई ही क्यों दुनिया के किसी भी कोने में बिना पैसे के रहना मुश्किल है. खैर मुकेश सहनी (Mukesh sahani) स्लम और सड़क पर सो कर अपना वक्त गुजारने लगे. इनके गांव के कुछ लोग गोरेगांव ईस्ट में रहते थे बाद में खोजबीन कर के मुकेश (Mukesh sahani) भी उन्हीं लोगों के साथ रहने लगे. जैसा की अमूमन हर मामले में होता है, जब आप किसी मुसीबत में होते हैं तो अपने जान-पहचान वालों को ढूंढते हैं. ठीक वैसा ही मुकेश सहनी अपने गांववालों के पास किसी तरह पहुंचे जो मेहनत मजदूरी पर अपना गुजारा मुंबई जैसे महानगर में कर रहे थे. 2-4 रोज उनके कमरे पर रूके. मुकेश सहनी जब पवन एक्सप्रेस में सवार हुए तो उनके जेब में महज 200 रुपए थे. जिससे कुछ दिनों तक पॉकेट खर्च चला.
दुकान में 900 रुपए वाली नौकरी
बाद में उन्हीं दोस्तों की मदद से 900 रुपए महीने की नौकरी मिल गई. किसी तरह गुजारा होने लगा. मुकेश (Mukesh sahani) को काम एक जनरल स्टोर मिला था. मगर जो इनको काम मिला था उसमें मुकेश को सुबह में फूटपाथ पर दुकान लगाना था और फिर रात को उस दुकान को हटा लेना था. यानी फूटपाथ पर सामान बेचने की नौकरी मिली थी. कुल 14-15 घंटे की ये नौकरी थी. एक गुजराती भाई का ये जनरल स्टोर था. महीने के 900 रुपए में खाना-पीना का काम चलने लगा.
काम में मेहनत और ईमानदारी जरूरी
मगर जीवन में कामयाब होने का सपना, मुकेश (Mukesh sahani) का मरा नहीं था उसकी तलाश हमेशा बनी रही. मुकेश के मुताबिक 18 साल की उम्र, फूटपाथ पर दुकान लगाने की नहीं बल्कि खेलने, पढ़ने और मौज-मस्ती की होती है. बिहार से 2 हजार किलोमीटर दूर भी मुकेश (Mukesh sahani) ने अपने सपने को जिंदा रखा. मन में पहले से ही कुछ था कि जीवन में कुछ करना है, कुछ बनना है. मगर ईमानदारी को मुकेश ने कभी नहीं छोड़ा. जो भी काम किया मन लगाकर दिल से किया.
बिहार में ‘सन ऑफ मल्लाह’
आज भी वो इसका जिक्र करते हैं. सबको मेहनत, लगन और ईमानदारी की सीख देते हैं. मुकेश (Mukesh sahani) का मानना है कि अगर आप ईमानदारी से मेहनत करते हैं तो जो सपना आप नहीं देखते हैं उसे भी पूरा कर सकते हैं. मुकेश (Mukesh sahani) ने कभी सोचा भी नहीं था कि वो बिहार में ‘सन ऑफ मल्लाह’ के नाम से जाने जाएंगे. उनका जन्म एक गरीब मछुआरा परिवार में हुआ था. इसलिए इसकी उम्मीद तो कम से कम कभी नहीं रही. मुकेश (Mukesh sahani) के मुताबिक मुंबई में उत्तर भारतीय लोगों पर वहां पर ज्यादा भरोसा नहीं किया जाता है. ऐसे जगह पर मुकेश ने अपने मेहनत, लगन और ईमानदारी से भरोसा को बढ़ाया.
फिल्म ‘देवदास’ से बदली किस्मत
फिल्म ‘देवदास’ की शूटिंग के दौरान साल 2000 में फिल्म के सेट पर काम करने के लिए कुछ वर्कर की जरूरत थी. खासकर जो शीशा कटिंग का काम जानते हों. दरअसल मुकेश (Mukesh sahani) जहां फूटपाथ पर दुकान लगाते थे, उसके पास में ही फोटो फ्रेमिंग की एक दुकान थी. अपना काम करने साथ ही मुकेश (Mukesh sahani) ने फोटो फ्रेमिंग दुकानदार का ग्लास कटिंग में कभी-कभार मदद कर दिया करते थे. कभी-कभी दुकानदार मुकेश पर दुकान को छोडकर चला जाता था. खासकर उस दुकान पर बुजुर्ग लोग भगवान की तस्वीर की फ्रेमिंग के लिए आते थे. इस दौरान मुकेश ने ग्लास कैसे कट किया जाता है इस काम को सीख लिया.
ग्लास कटिंग से बदली किस्मत
इसका मतलब ये हुआ कि मुकेश (Mukesh sahani) ने ग्लास कट करने में महारत हासिल कर ली. संजय लीला भंसाली फिल्म देवदास बना रहे थे, उनके साथ देश के सबसे बड़े आर्ट डायरेक्टर नितिन देसाई उस फिल्म में आर्ट डायरेक्शन का काम देख रहे थे. फिल्म देवदास के लिए सेट लगा रहे थे, उनको कुछ ग्लास कटिंग करनेवाले वर्कर चाहिए था. चूकि ग्लास कट करने का काम मुकेश (Mukesh sahani) सीख लिए थे तो नितिन देसाई के तरफ से एक दिन के काम के लिए 500 रुपए देने का पेशकश किया गया.
कहां 30 दिन में 900 और कहां 8 घंटे में 500. मुकेश लगा कि उनके हाथ खजाना लग गया है. इसके बाद मुकेश (Mukesh sahani) लगातार तीन-तीन शिफ्ट में काम करने लगे. यानी एक दिन का डेढ़ हजार रुपए मुकेश (Mukesh sahani) को मिलने लगा. इसके बाद ये बात उनके गांव तक पहुंची. घरवालों को पता चल गया कि मुकेश बढ़िया पैसा कमा रहे हैं. गांववालों से मुकेश का संपर्क बढ़ने लगा. गांव के लोग जब मुंबई से गांव जाते तो उनके माता-पिता को ये बात बताते थे.
एक दिन के मिलने लगे 5000
मुकेश (Mukesh sahani) की मेहनत और लगन देखकर आर्ट डायरेक्टर नितिन देसाई काफी खुश हुए. मुकेश (Mukesh sahani) को नाम से पुकारने लगे और आगे चलकर फिल्म देवदास के सेट पर मुकेश को नितिन देसाई ने मैनेजर बना दिया. पूरा सेट इनके अंडर में आ गया. 8 घंटे के लिए जो 500 रुपए मिलते थे वो अब बढ़कर 5000 रुपए में तब्दील हो चुके थे. इसके बाद मुकेश सहनी (Mukesh sahani) को कई काम मिले और फिर मुकेश सहनी ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा.
मुकेश के पास करोड़ों का टर्न ओवर
देवदास से मिली कामयाबी के बाद मुकेश (Mukesh sahani) ने एक कंपनी बनाया और उसका नाम है मुकेश सिने आर्ट एंटरप्राइजेज लिमिटेड. इसके बाद मुकेश (Mukesh sahani) ने मुकेश सिने वर्ल्ड प्राइवेट लिमिटेड और आरएम फिल्म्स प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी भी बनाई. आज की तारीख में मुकेश की कपंनी बॉलीवुड में फिल्म प्रोपर्टी सप्लाई करनेवाली सबसे बड़ी कंपनी हैं. मुकेश के कपंनी में 150 से 200 लोग काम करते हैं.
मुकेश (Mukesh sahani) ने जो कभी सोचा नहीं था वो सब सच होने लगा. मुकेश ने बिग बॉस, रा-वन, डॉन-2, देशी ब्यॉज, रॉकस्टार, धूम-3, क्रिश-सीरीज की फिल्में, कौन बनेगा करोड़पति, झलक दिखला जा, प्रेम रतन धन पायो, बजरंगी भाई जान का सेट भी तैयार किया. यशराज और शाहरुख खान की कंपनी रेड चिल्ली के लिए मुकेश (Mukesh sahani) फिल्म का सेट तैयार करते हैं. फिल्म सेट्स निर्माण के साथ-साथ इवेंट मैनेजमेंट और मॉल ब्रांडिंग का काम भी मुकेश की कंपनी करती है. मुकेश की कंपनी फिल्में भी प्रोड्यूस करती है.
दरभंगा के सुपाउल में जन्म
दरभंगा जिले के सुपाउल गांव में 31 मार्च 1981 को जन्मे मुकेश (Mukesh sahani) ने ओंकार स्कूल में पढ़ाई की. मुकेश सहनी (Mukesh sahani) के पिताजी सख्त थे और मुकेश पढ़ाई छोड़कर अपने दोस्त के साथ मुंबई भाग तो गए लेकिन इनको हमेशा इस बात का डर सता रहा था कि घर जाने के बाद पिताजी का सामना कैसे करूंगा. हालांकि कामयाब मुकेश (Mukesh sahani) अपनी पढ़ाई छोड़ना जरूर खलता है. इनको लगता है काश मेरी थोड़ी और अच्छी पढ़ाई हुई होती तो बिजनेस को समझना ज्यादा आसान होता. मगर इस बात को अफसोस नहीं है अब अपने से ज्यादा पढ़े-लिखे लोगों का इंटरव्यू लेने लगे हैं. हालांकि उनको जरूर महसूस होता है कि हायर एजुकेशन होना चाहिए था. मगर कामयाबी देखकर ऊपरवाले का भी शुक्रगुजार हैं कि अच्छा हुआ कि दरभंगा से भागकर मुंबई पहुंच गया.
मुंबई से 9 साल बाद लौटे घर
9 साल में 2-3 दिन के लिए दरभंगा लौटे थे वो सिर्फ शादी के लिए. 1999 में मुंबई गए मुकेश (Mukesh sahani) 9 साल बाद छठ के मौके पर बिहार लौटे तो कुछ दिन अपने गांव में बिताए, तब तक कामयाबी और शोहरत उनके नाम के साथ जुड़ चुका था. मुकेश का मानना है कि इन सालों में वो पैसा कमाने की मशीन में तब्दील हो चुके थे. जब गांव लौटे तो महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना प्रमुख राज ठाकरे की कारस्तानियों पर चर्चा होने लगी. जो उत्तर भारतीय खासकर बिहार के लोगों के प्रति नफरत फैलाने के लिए जाने जाते हैं. मगर गांव और समाज में मुकेश (Mukesh sahani) को अपनापन का अहसास हुआ.
बड़े-बड़े लोग इज्जत देने लगे
बीएमडब्ल्यू पर जब मुकेश (Mukesh sahani) चलने लगे तो उनके समाज खास कर मल्लाह समुदाय को लगा कि वो काफी पैसे वाले हैं और मदद की उम्मीदें लोगों में जगने लगी. इस बात का अहसास मुकेश (Mukesh sahani) को मुंबई में नहीं बल्कि गांव में आकर चला कि अब उनकी हैसियत किसी की मदद करने की हो गई है. क्यों बड़े-बड़े लोग इज्जत देने लगे, इज्जत से उनका नाम लिया जाने लगा.
थैंक्यू बोलकर माइक वापस कर दी
2008 के बाद मुकेश (Mukesh sahani) हर 2-3 महीने में 3-4 रोज के लिए बिहार आने लगे. गांव और जिला लेवल पर होने वाले सामाजिक कार्यों में भाग लेने लगे. तभी निषाद समुदाय के कुछ लोग मुकेश से मिलने आए और बोले की आपको समाज के लिए कोई सम्मेलन करनी चाहिए. भगवान ने आपको हर तरह से सक्षम बनाया है. मुकेश (Mukesh sahani) ने मदद करने की नियत से हामी भर दी.
2010 में सहनी कल्याण संस्था की नींव रखी, जिसके वे राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. साल 2014 से पहले मुकेश की राजनीतिक चाहत नहीं थी. 2014 जनवरी में एक खेल टूर्नामेंट में मुकेश को बुलाया गया. मुकेश इसमें गए और अचानक से मुकेश के हाथ में माइक थमा दी गई. मंच संचालक ने मुकेश को 2 शब्द बोलने के लिए कहा. मुकेश के मुताबिक उन्हें समझ में नहीं आया कि उन्हें क्या बोलना है. उन्होंने थैंक्यू बोलकर माइक वापस कर दी.
2014 में पहला निषाद सम्मेलन
उसके कुछ दिनों बाद 16 फरवरी 2014 को दरभंगा के राज मैदान में निषाद सम्मेलन का आयोजन किया. उस सम्मेलन में काफी तादाद में निषाद समाज से जुड़े लोग पहुंचे. मुकेश (Mukesh sahani) ने निषाद जाति को अति पिछड़ा से हटाकर अनुसूचित जाति के कैटेगरी में कर रिजर्वेशन की मांग रखी. यहीं से मुकेश के राजनीतिक सफर की शुरुआत हुई. उनको लगा की उनके समाज के लोगों को उनसे काफी उम्मीदें हैं.
इनकी उम्मीदों के लिए कुछ करना जरूरी है. दरभंगा जिले में ढाई से तीन लाख निषाद समुदाय की आबादी है. निषाद रैली के बाद उनके समुदाय के लोग उन्हें गांधी, आंधी और भगवान मानने लगे. फिर मुकेश (Mukesh sahani) ने खुद ही अपने समुदाय के लोगों से कहा कि वो न तो गांधी हैं, न आंधी और ना ही भगवान हैं. वो आपके समुदाय का एक बेटा हैं ‘सन ऑफ मल्लाह’. यहीं से ‘सन ऑफ मल्लाह’ का तमगा मुकेश सहनी के साथ चिपक गया.
आरक्षण के मुद्दे पर राजनीति
मुकेश (Mukesh sahani) का मानना है कि कुछ व्यवस्थाएं ऐसी है जिन्हें सरकार बदलती है जबकि कुछ व्यवस्थाएं ऐसी है जिन्हें समाज को बदलना होता है. जो व्यवस्थाएं सरकार को बदलनी है तो उसके लिए सरकार में होना जरूरी है. जब तक सरकार में भागीदारी नहीं होगी सिस्टम से फायदा नहीं लिया जा सकता. मल्लाह समुदाय का मुख्य पेशा मछली पकड़ना और उसे बाजार में बेचना है. खेती की जमीन इस समुदाय के पास न के बराबर होती है.
मगर समय के साथ नदी-तालाब सूखते चले गए. कम होते चले गए. सरकार ने इसके लिए कुछ अल्टरनेटिव इंतजाम नहीं किया, जिसका नतीजा है कि मल्लाह समुदाय सामाजिक और शैक्षणिक स्तर पर पिछड़ता चला गया. मुकेश (Mukesh sahani) के मुताबिक जो समाज राजनीतिक तौर पर मजबूत है उसे बेहतर सुविधा मिल जाता है. चाहे वो जैसे मिले. जो समाज राजनीतिक तौर पर मजबूत नहीं है उसे हर कोई अनदेखा कर देता है. उनके बारे में कोई सोचता नहीं है. ऐसे में मुकेश (Mukesh sahani) को लगा कि निषाद समुदाय को भी राजनीतिक तौर पर मजबूत होना चाहिए. इसी का नतीजा है कि बिहार की सियासत में मुकेश सहनी की पूछ बढ़ गई है.
‘माछ भात खाएंगे और…’
मुकेश सहनी (Mukesh sahani) ने पिछले महीने ही अपनी एक पार्टी विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) बनाई है. अखबारों और टीवी चैनलों पर विज्ञापन देकर सुर्खियों में बने रहनेवाले मुकेश (Mukesh sahani) ने हाल के समय में हेलीकॉप्टर से प्रचार शुरू कर दिया है. इनकी मुख्य मांग है कि निषाद जाति को अनुसूचित जाति में शामिल किया जाए. हालांकि बिहार सरकार ने केंद्र सरकार को इसकी अनुशंसा कर दी है. फिलहाल एनडीए में उचित जगह नहीं मिलने पर महागठबंधन के पाले में आ गए हैं. मुकेश (Mukesh sahani) ने घोषणा कर दी है कि ‘माछ भात खाएंगे और महागठबंधन को जिताएंगे’ और अगर एनडीए दोहरे अंक में पहुंच गया तो राजनीति नहीं करेंगे.