दिल्ली। अंडमान निकोबार के सेंटिनल द्वीप में अमेरिकी नागरिक जॉन एलन चाऊ की हत्या के मामले पुलिस ने अब तक 7 मछुआरों को गिरफ्तार किया है। अमेरिकी नागरिक जॉन एलन चाऊ को संरक्षित सेंटेनलीज आदिवासियों ने मार दिया था। खबरों के अनुसार 2011 की जनगणना के अनुसार सैंटनलीज आदिवासियों की संख्या 40 और बाहरी व्यक्तियों के कोई संपर्क नहीं रखते हैं। कोई व्यक्ति अगर इन तक पहुंचने की कोशिश करता है तो वो उस पर हमला कर देते हैं।
अमेरिकी नागरिक की हत्या
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार एक मछुआरे ने पुलिस को बताया कि 16 नवंबर को जब अमेरिकी नागरिक द्वीप पर पहुंचा तो उस पर तीरों की बौछार होने लगी। इसके बाद आदिवासी अमेरिकी नागरिक को घसीटकर बीच तक ले गए। अगले दिन वे लोग चाऊ का शरीर रेत में आधा दफनाते हुए नजर आए। दरअसल, जिस इलाके में अमेरिकी जाने की कोशिश कर रहा था, यहां रहने वाले लोग जारवा जनजाति के नाम से जाने जाते हैं। इन लोगों की त्वचा का रंग एकदम काला होता है और ये आज भी बिना कपड़े के ही रहते हैं। कद में भी बिल्कुल छोटे होते हैं। दुनिया भर में इन्हें धरती पर आदिकाल की सभ्यता वाली जनजाति के रूप में जाना जाता है। इनका आधुनिक सभ्यता से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है।
यहां गोरा होना अपराध है!
साल 1990 तक इस जनजाति के बारे में कोई नहीं जानता था। ये लोग आज भी तीर से शिकार करके अपना पेट भरते हैं। अपनी दुनिया में बाहरी व्यक्ति को देखकर उसे तुरंत ही धीर धनुष से मार देते हैं। तन को ढकने के लिए ये लोग पत्तों का प्रयोग करते हैं। कहा जाता है कि इस समुदाय में यदि किसी बच्चे का रंग थोड़ा भी साफ हो जाता है तो उसका पिता उसे दूसरे समुदाय का मानकर उसकी हत्या कर देता है। खबरों के अनुसार अमेरिकी नागरिक चाऊ इस द्वीप पहुंचने की दो बार कोशिश की थी। 14 नवंबर को उसकी कोशिश नाकाम रही थी। 16 नवंबर को फिर पूरी तैयारी के साथ पहुंचा तो गुस्साए आदिवासियों ने उसकी हत्या कर दी।
धर्म प्रचार था मकसद?
मीडिया से बात करते हुए अंडमान निकोबार के डीजीपी दीपेंद्र पाठक ने कहा है कि चाऊ छठी बार पोर्ट ब्लेयर की यात्रा कर रहे थे। उन्होंने मछुआरों को उत्तरी सेटिंनल आइलैंड भेजने में मदद के लिए 25 हजार रुपये दिए थे। मछुआर 15 नवंबर की रात उन्हें आइलैंड के पश्चिमी सीमा तक एक छोटी नाव से ले गए। वहां से अगले दिन चाऊ एक नाव लेकर अकेले ही आइलैंड तक गए। वहीं, वहां से शव निकालने के लिए हेलिकॉप्टर से सर्च अभियान भी चलाया गया। लेकिन आदिवासियों के गुस्से के आगे हेलिकॉप्टर वहां उतर नहीं पाया। बताया जा रहा है कि चाऊ वहां धर्म परिवर्तन के इरादे से गया था। उस द्वीपीय इलाके के लोगों में उसे ईसाई धर्म का प्रचार करना था। आदिवासियों का यह कबीला 60 हजार साल पुराना है। इसके साथ ही ये करेंसी का इस्तेमाल नहीं करते और न ही इनके ऊपर कोई मुकदमा चलता है।