युवा नेता ही दे रहे मोदी को टक्कर, पायलट-सिंधिया को सीएम न बना राहुल ने की गलती?
दिल्ली। राजस्थान और मध्यप्रदेश में सीएम के नाम पर मुहर लग गई। युवा ब्रिगेड को किनारे कर कमलनाथ को मध्यप्रदेश और राजस्थान की जिम्मेवारी अशोक गहलोत को सौंपी गई है। अशोक गहलोत 67 साल के हैं और कमलनाथ 72 के हैं। लेकिन सियासी गलियारों में यह सवाल तेजी से तैर रहा है कि युवा ब्रिगेड ही नरेंद्र मोदी को जब कड़ी चुनौती दे रही है, तो फिर राहुल गांधी (Rahul gandhi) ने ये गलती क्यों की? 41 साल के सचिन और 47 साल के ज्योतिरादित्य सिंधिया को आखिर किस मजबूरी के कारण सीएम नहीं बनाया गया।
युवा दे रहे टक्कर तो बुजुर्ग सीएम क्यों?
जबकि पूरे चुनाव के दौरान युवाओं का मुद्दा ही छाया रहा। राजस्थान में तो पर्दे के पीछे सचिन के नाम पर ही चुनाव लड़ा गया। राहुल (Rahul gandhi) ने ये जानते हुए ये गलती की है। क्योंकि गुजरात से लेकर राजस्थान तक के चुनावों में मोदी को टक्कर युवाओं से ही मिला है। चौथी बार गुजरात में सत्ता पर काबिज भाजपा को वहां भी युवा नेताओं से ही चुनौती मिली। अल्पेश ठाकोर, जिग्नेश मेवाणी और हार्दिक पटेल जैसे युवा नेताओं की टीम ने भाजपा को बेदम कर दिया। मध्यप्रदेश चुनाव में भी पार्टी में प्रचार की कमान ज्योतिरादित्य सिंधिया ही संभाले हुए थे। वहीं, राजस्थान में तो पूरी लड़ाई सचिन पायलट ही लड़ रहे थे।
देशभर में मोदी को मिल रही चुनौती
अगर बिहार-यूपी की भी बात करें तो युवा नेता ही मोदी के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। बिहार में तेजस्वी यादव और यूपी में अखिलेश यादव। इन तमाम चीजों को दरकिनार कर राहुल ने दोनों राज्यों में बुजुर्ग को सीएम बनाया है। ऐसे में बीजेपी 2019 में इसे चुनावी मुद्दा बना सकती है कि कांग्रेस सिर्फ वोट के लिए युवाओं का इस्तेमाल करती है।
वहीं, राहुल (Rahul gandhi) के फैसले का मायने कुछ यूं निकाला जा रहा है। कहा जा रहा है कि गहलोत और कमलनाथ पार्टी के मुश्किल वक्त में साथ निभाते रहे हैं। गहलोत पहले भी सीएम पद की जिम्मेदारी संभाली है। वो राजस्थान को बहुत अच्छी तरह से पहचानते हैं। प्रशासन चलाने का अनुभव है। वहीं कमलनाथ के बारे में कहा जा रहा है कि प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने मध्य प्रदेश में तमाम धड़ों को साथ लाने का काम किया।
युवा नहीं बुजुर्गी नेतृत्व की जरूरत?
लेकिन सवाल यह है कि जिस देश में दो-तिहाई आबादी 35 साल से नीचे हो, वहां युवा नेताओं को सूबे की नुमाइंदगी का मौका क्यों नहीं दिया जा सकता है। जो पार्टी बीते कुछ वक्त से बार-बार अपने मंचों से, अपने भाषणों में, अपने घोषणापत्रों में युवाओं की बात करती हो, उनके मुद्दों को उठाने का यकीन दिलाती हो, वो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर एक युवा को क्यों नहीं देख सकती। ये सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं कि जब राहुल (Rahul gandhi) अध्यक्ष बने थे तब उन्होंने कहा था कि इस वक्त पार्टी को युवा नेतृत्व की जरूरत है। तो एक साल में ऐसा क्या बदल गया कि अब युवा नहीं बुजुर्गी नेतृत्व की जरूरत है।