दिल्ली। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के लिए इस बार के बजट की राह आसान नहीं दिख रही. सीतारमण के सामने आर्थिक सुस्ती, गिरती विकास दर और घटती आमदनी में लोगों को राहत देना जैसी कई अहम चुनौतियां है. इससे कैसे निपटती है ये भी आपने आप में किसी चुनौती से कम नहीं है.
BUDGET 2020 की चुनौतियां
मौजूदा हालात में आर्थिक सर्वे के बाद आम BUDGET 2020 आने ही वाला है. ऐसे में पूरा देश केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर देख रहा है, हर आदमी को बजट से उसके लिए थोड़ी राहत मिलने की उम्मीद है. ऐसे में देश की अर्थव्यवस्था के लिए बजट को मुफीद बनाना वित्त मंत्री के लिए सबसे बड़ा चैलेंज है.
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दुनिया भर में आर्थिक सुस्ती के असर से भारत अछूता नहीं है. ऐसे में अर्थव्यवस्था (BUDGET 2020) से जुड़े कई सूचकांक सालों के निचले स्तर पर पहुंच जाने का अनुमान है. 11 सालों में सबसे कम सकल घरेलू उत्पाद दर 5 फीसदी, 7 सालों में सबसे कम खपत दर करीब 5.8 फीसदी, 17 सालों में निवेश दर में 1 फीसदी की कमी, 5 सालों में उत्पादन का सबसे निचला स्तर पर 2 फीसदी और 4 सालों में कृषि विकास दर सबसे कम 2.8 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया है.
BUDGET 2020: महंगाई बड़ी समस्या
एक साल में महंगाई में लगातार बढ़ोतरी हुई है. मौसम का असर और जमाखोरी (BUDGET 2020) की वजह से बीच-बीच में कई सामानों के दाम में बेतहाशा वृद्धि हुई. दिसंबर में महंगाई दर 7.35 फीसदी जबकि रेपो रेट में 6 बार कटौती से नीतिगत ब्याज दर 1.35 फीसदी कम हुई.
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मोदी सरकार की सबसे बड़ी चिंता आमदनी घटने और खर्च बढ़ने की है. इस बार राजकोषीय घाटा (BUDGET 2020) लक्ष्य से 0.50% बढ़कर 3.80% तक पहुंच सकता है. कर वसूली में भी करीब 2 लाख करोड़ रुपये की कमी आ सकती है। बैंकों की ओर से बांटे गए कर्ज में भी 7.10 फीसदी की गिरावट आई है.
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इसका मतलब ये हुआ कि कर्ज लेने और पूंजी खर्च बढ़ाने से अर्थव्यस्था (BUDGET 2020) को कोई बड़ा फायदा होने की उम्मीद कम है. इसका असर निजी क्षेत्र में भी दिखाई पड़ने की उम्मीद है. हालांकि सरकार सरंचनात्मक सुधारों के जरिए उद्योगों को प्रोत्साहित करने का काम जारी रख सकती है.
सैलरी वाले सबसे बड़े आयकर दाता
हिन्दुस्तान में केवल 7 फीसदी लोग आयकर देते हैं. साल 2018-19 के बजट भाषण में (BUDGET 2020) तत्कालीन वित्त मंत्री ने बताया था कि बिना सैलरी वाले करदाता औसतन 25 हजार 753 रुपये टैक्स भरते हैं. जबकि सैलरी कमाने वाले बिना सैलरी वालों से लगभग तीन गुना ज्यादा औसतन 76 हजार 306 रुपये टैक्स देते हैं.
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