अयोध्या विवाद: 159 सालों का इतिहास जानिए, पहली बार कब हुई पूजा?

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अयोध्या विवाद: 159 सालों का इतिहास जानिए, पहली बार कब हुई पूजा?

अयोध्या विवाद: 159 सालों का इतिहास जानिए, पहली बार कब हुई पूजा?

दिल्ली। राम मंदिर भारतीय राजनीति की धुरी बन चुकी है. अयोध्या विवाद में अब तक राम मंदिर नाम से सियासत 2 दशक से चल रही है. बीजेपी के नेता हमेशा कहते रहे हैं कि अयोध्या में राम मंदिर बन कर रहेगा. सबरीमाला पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से लेकर उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्य नाथ तक कह दिया है कि अयोध्या में राम मंदिर बनेगा.

अयोध्या विवाद में अब तक

अयोध्या विवाद अब भारतीय राजनीति की धुरी बन चुकी है. रोजाना इस पर कोई न कोई नया बयान सामने आता है. अयोध्या विवाद में अब तक कई बयानबाजी हो चुकी है. विवादित स्थल पर मालिकाना हक से जुड़े केस में सप्रीम कोर्ट में रोज सुनवाई शरू हो रही है. 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में विवादित स्थल को सुन्नी वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा के बीच 3 बराबर-बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था. इस फैसले के खिलाफ अलग-अलग पक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए. सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी. ऐसे में ये जानना जरूरी हो गया कि आखिर कब शुरू हुआ पूरा विवाद.

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  • अयोध्या विवाद में अब तक राम मंदिर निर्माण की तैयारियां काफी दिनों से चल रही थी. मगर 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में कार सेवकों ने बाबरी मस्जिद को गिरा दिया था.
  • 7 जनवरी को अध्यादेश लाकर केंद्र सरकार ने 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर लिया. इसमें विवादित जमीन का 120 गुणा 80 फीट का हिस्सा भी अधिग्रहित कर लिया गया. जिसे बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि परिसर कहा जाता है.
  • 1993 में ही केद्र सरकार के फैसले के खिलाफ इस्माइल फारूकी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए अपनी याचिका में कहा था कि किसी धार्मिक स्थल का सरकार कैसे अधिग्रहण कर सकती है.
  • 24 अक्टूबर 1994 को सुप्रीम कोर्ट ने इस्माइल फारूकी की याचिका पर फैसला सुनाया कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है. हालांकि रामजन्मभूमि के बारे में यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश दिए गए.
  • बाद में इस फैसले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई. अयोध्या मामले के एक मूल वादी एम सिद्दीकी ने इस्माइल फारूकी के मामले में 1994 के फैसले के खास निष्कर्षों पर ऐतराज जताया.
  • 5 दिसंबर 2017 को अयोध्या मामले की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा कि नमाज पढ़ने का अधिकार है उसे बहाल करना चाहिए. नमाज अदा करना धार्मिक प्रैक्टिस है उससे वंचित नहीं किया जा सकता.
  • 20 जुलाई 2018 को प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली एक पीठ ने इस मामले पर सभी पक्षों की बहस सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

159 साल का इतिहास

अयोध्या विवाद में अब तक राम मंदिर मुद्दा 159 साल पुराना है. मगर आज यह भारतीय राजनीति की धुरी बन चुका है. अयोध्या में 1853 में राम मंदिर वाले जगह के आसपास पहली बार दंगे हुए. 1859 में अग्रेजी हुकुमत ने विवादित जगह के आसपास बाड़ लगा दी. मुस्लिमों को ढांचे के अंदर और हिन्दुओं को बाहर चबूतरे पर पूजा करने की इजाजात दी. काफी दिनों तक ऐसा ही चलता रहा. फरवरी 1885 में महंत रघुबर दास ने फैजाबाद के उप-जज के सामने याचिका दायर की कि यहां मंदिर बनाने की इजाजत दी जाए. जज पंडित हरिकृष्ण ने यह कहकर इसे खारिज कर दिया कि ये चबूतरा पहले से मौजूद मस्जिद के इतना करीब है कि इस पर मंदिर बनाने की इजाजत नहीं दी जा सकती. अयोध्या विवाद में अब तक हालात में कुछ भी तब्दीली नहीं हुई.

जब ढांचा में प्रकट हुए राम

असली विवाद तब शुरू हुई जब 23 दिसंबर 1949 को भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में पाई गई. अयोध्या विवाद में अब तक कुछ भी नया नहीं हो पाया था. मगर हिन्दुओं का कहना था कि भगवान राम प्रकट हुए हैं, जबकि मुस्लिमों का आरोप था कि किसी ने रात में चुपके से मूर्तियां रख दी. तब उस वक्त के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री जीबी पंत से इस मामले में फौरन कार्रवाई करने को कहा. यूपी सरकार ने ढांचे के भीतर से मूर्तियां हटाने का आदेश दिया लेकिन जिला अधिकारी केके नायर ने दंगों और हिन्दुओं की भावनाओं के भड़कने के डर से इस आदेश को पूरा करने में असमर्थता जाहिर की. हालांकि नायर के बारे में माना जाता है कि वो कट्टर हिन्दू थे और मूर्तियां रखवाने में उनकी पत्नी शकुंतला नायर का भी रोल था. फिर सरकार ने इसे विवादित ढांचा बताते हुए इसमें ताला लगवा दिया.

1984 में शुरू हुई पूजा-अर्चना

16 जनवरी 1950 को गोपाल सिंह विशारद नाम के एक शख्स ने फैजाबाद के सिविल जज के सामने अर्जी दाखिल कर यहां पूजा की इजाजत मांगी. अयोध्या विवाद में अब तक कुछ नया तो नहीं हुआ था मगर अब नया होने जा रहा था. उस वक्त के सिविल जज एनएन चंदा ने इजाजत दे दी. मुसमानों ने इस फैसले के खिलाफ अर्जी दाखिल की. विवादित ढांचे की जगह मंदिर बनाने के लिए 1984 में विश्व हिन्दू परिषद ने एक कमेटी गठित की. यूसी पाण्डेय की याचिका पर फैजाबाद के जिला जज केएम पाण्डेय ने 1 फरवरी 1986 को हिन्दुओं को पूजा करने की इजाजत देते हुए ढांचे पर से ताला हटाने का आदेश दिया. इसके विरोध में बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन किया गया. 6 दिसंबर 1992 को बीजेपी, वीएचपी और शिवसेना समेत दूसरे हिन्दू संगठनों के लाखों कार्यकर्ताओं ने विवादित ढांचे को गिरा दिया.

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