/क्या कोरोना वायरस चीन में लाएगा लोकतंत्र? टेस्ट के लिए 8-8 घंटे लगानी पड़ रही लाइन
wuhan badly effected with coronavirus is it good for chines democracy

क्या कोरोना वायरस चीन में लाएगा लोकतंत्र? टेस्ट के लिए 8-8 घंटे लगानी पड़ रही लाइन

चीन। अगर किसी अस्पताल में जाए और मामूली टेस्ट के लिए 8-9 घंटे लाइन में लगना पड़े तो आप उसे क्या कहेंगे? वुहान (Wuhan) में आज कल ऐसा ही हो रहा है. अस्पतालों में पैर रखने की जगह नहीं है. बेड नहीं है. जरूरी मेडिकल सामानों की कमी है. मेडिकल टेस्ट सेंटर चौबीसों घंटे खोले रखे गए हैं, मगर टेस्ट सैंपल के लिए लोग 8-8 घंटे लाइन में लगे रहते हैं. हालांकि दंगे जैसे हालात नहीं है, क्योंकि वहां सबको अपनी आवाज उठाने की आजादी नहीं है. अगर ये चीज भारत हो तो आप अंदाजा लगा सकते हैं, यहां पर लोग तुरंत सबकुछ सिर पर उठा लेंगे.

Wuhan से इतनी बेदर्दी क्यों?

वुहान (Wuhan) शहर जो आज कल कोरोना वायरस की वजह से दुनिया भर में सुर्खियों में छाया है, वो हुबेई राज्य की राजधानी है. वुहान (Wuhan) की आबादी करीब एक करोड़ है जबकि हुबेई राज्य की जनसंख्या लगभग 6 करोड़ है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनफिंग ने कड़े निर्देश जारी किए हैं कि हुबेई से कोई भी बाहर न तो जा सकता है और ना ही आ सकता है. इसका मकसद कोरोना वायरस को फैलने से रोकना है.

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लोकतंत्र नहीं होने का खामियाजा?

हुबेई (Wuhan) को पूरे चीन से काटकर अलग कर दिया गया है. चारो तरफ से घेराबंदी कर गई गई है. साथ ही दूसरे राज्यों से जोड़ने वाली सड़कों और रेलवे पर विशेष पहरा बैठा दिया गया है. वहां इस आदेश का सख्ती से पालन किया जा रहै है. मगर इसलिए हो पा रहा है कि क्यों कि वहां पर लोकतंत्र नहीं है. बोलने की आजादी नहीं है. अगर हिन्दुस्तान की तरह चीन में भी लोकतंत्र रहता तो शायद कोई अपनों से मिलने के लिए इस कदर परेशान नहीं होता और ना ही सरकार इस तरह का कोई आदेश जारी कर पाती. ऐसे में सवाल उठता है कि अगर कोरोना वायरस का मामला ज्यादा लंबा खींच गया तो क्या चीन या हुबेई (Wuhan) लोग सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करेंगे?

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Wuhan में राह चलते मौत

चीन में वुहान (Wuhan) को दूसरे दर्जे का शहर माना जाता है. विकास के मामले में यह शंघाई, पेइचिंग और गुआंगझाऊ से पिछड़ा हुआ है. चीन का एक प्रांत जिसकी आबादी 6 करोड़ है उसे उसकी किस्मत पर छोड़ दिया गया है. कोरोना वायरस से मरनेवालों में 97 फीसदी लोग भी हुबेई के ही हैं. सरकारी सिस्टम पूरी तरह नाकाफी साबित हो रहा है. संसाधन कम पड़ रहे हैं. मगर लोग किसी तरह किस्मत मानकर जिए जा रहे हैं. किसी की दादी मर रही है तो किसी का बेटा. मगर लोग बोल तक नहीं पाते हैं. कई लोगों की तो राह चलते मौत हो गई.