पटना। बिहार की राजनीति में आचानक से प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) इतना महत्वपूर्ण क्यों हो गए? उनका मात्र एक ट्वीट देश और बिहार के मीडिया में छा जाता है. 2 दिन तक प्रदेश की पूरी राजनीति और बयानबाजी उनके आसपास घूमती रहती है. जनता दल यूनाइटेड के प्रमुख और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार प्रशांत के बारे में साफ-साफ बोलने से बचते दिखते हैं तो बिहार बीजेपी के कद्दावर नेता और उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी बिना नाम लिए ट्वीट करते हैं तो करारा जवाब मिल जाता है.
Prashant Kishor Vs सुशील मोदी
सुशील मोदी और प्रशांत किशोर की ये दूसरी बार ट्विटर पर टक्कर हुई है. दोनों बार प्रशांत किशोर का काउंटर अटैक बड़ा ही जबर्दस्त रहा. इतना रहता है कि कम से कम कुछ दिनों के लिए सुशील मोदी शांत पड़ जाते हैं. पहले ताजा मामला जान लीजिए, फिर बात होगी प्रशांत किशोर की शख्सियत की. आखिर प्रशांत किशोर क्या चीज हैं? जिनके आसपास बिहार की राजनीति चल रही है और क्यों सभी पार्टियां उनमें (Prashant Kishor) ‘सत्ता वाली’ भविष्य देखती है.
सुशील मोदी ने कहा क्या था?
बिहार बीजेपी के सीनियर नेता और डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ने ट्वीट किया कि ‘नीतीश कुमार के साथ यह विडंबना अक्सर होती है कि अपनी उदारतावश वह जिनकों फर्श से उठाकर अर्श पर बैठाते हैं, वे ही उनके लिए मुसीबत बनने लगते हैं. उन्होंने (नीतीश कुमार) किसी को अपनी कुर्सी दी, कितनों को राज्यसभा का सदस्य बनवाया, किसी को गैरराजनीतिक गलियों से उठाकर संगठन में ऊंचा ओहदा दे दिया, लेकिन इनमें से कुछ लोगों ने थैंकलेस होने से गुरेज नहीं किया. राजनीति में भी ‘सब जायज’ नहीं होता.
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Prashant Kishor का पलटवार
इसके जवाब में प्रशांत किशोर ने सुशील मोदी का एक पुराना वीडियो ट्वीट कर कहा कि ‘लोगों को चरित्र प्रमाण पत्र देने में सुशील मोदी का कोई जोड़ नहीं है. देखिए पहले बोल कर बता रहे थे और अब डिप्टी सीएम बना दिए गए तो लिख कर दे रहे हैं. इनकी क्रोनोलॉजी भी बिल्कुल क्लीयर है’. सुशील मोदी इस पुराने वीडियो में नीतीश कुमार पर धोखा देने का आरोप लगा रहे हैं. सुशील मोदी इस पुराने वीडियो में कह रहे हैं कि ‘नीतीश कुमार समझते हैं कि वह बिहार के पर्याय हैं…नीतीश बिहार नहीं है, बिहार नीतीश नहीं है. धोखा नीतीश के डीएनए में है. 17 साल के अलायंस के बाद नीतीश कुमार ने बीजेपी को धोखा दिया. नीतीश कुमार ने शिवानंद तिवारी, जीतनराम मांझी, बिहार के मतदाताओं, जॉर्ज फर्नांडिज और लालू यादव को धोखा दिया. यह विश्वासघात नीतीश कुमार का डीएनए है’.
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नीतीश कुमार पर टिकी नजरें
जेडीयू में प्रशांत किशोर और पवन वर्मा थिंक टैंक माने जाते हैं. पवन वर्मा की चिट्ठी पर नीतीश कुमार ने बयान तो दिया मगर Prashant Kishor को लेकर कुछ भी साफ-साफ कभी नहीं कहा. जबकि ये दोनों नागरिकता कानून और एनआरसी को लेकर पार्टी लाइन खिलाफ लगातार बयान दे रहे हैं. Prashant Kishor को नीतीश कुमार का बेहद करीबी माना जाता है. अब पीके के इस बयान के बाद सबकी नजरें नीतीश कुमार पर टिक कई है.
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प्रशांत किशोर की शख्सियत
पहली बार सार्वजनिक तौर पर 2014 लोकसभा चुनाव में Prashant Kishor का नाम सामने आया. उस दौरान उन्होंने बीजेपी के लिए काम किया था. इस चुनाव में बीजेपी को रिकॉर्डतोड़ सफलता मिली थी. फिर बाद में बीजेपी के एक कद्दावर नेता से मनमुटाव हो गया. बाद में प्रशांत किशोर ने कांग्रेस समेत कई पार्टियों के लिए काम किया और कामयाबियों ने झोली भर दी.
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‘बिहार में बहार हो नीतीश कुमार हो’ नारा 2015 विधानसभा चुनाव में काफी सुर्खियों में रहा था. नीतीश कुमार के साथ प्रशांत किशोर के आने से 2015 विधानसभा चुनाव में काफी फायदा हुआ था. जबकि सालभर पहले हुए लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार की हार हुई थी. उनकी पार्टी महज 40 में से महज 2 सीटें जीत पाई थी. बिहार विधानसभा चुनाव के बाद कुर्ता-पायजामा में प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) के साथ नीतीश कुमार की तस्वीरें मीडिया में काफी सुर्खियां बटोरी थी.
क्या अब एक ‘बिहारी’ के भरोसे ‘मराठी मानुष’ की लड़ाई?
जीत के बात पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस में लालू प्रसाद ने प्रशांत किशोर का जिक्र किया था. उस वक्त प्रशांत किशोर का कद काफी बड़ा हो गया था. 2015 में राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस और जनता दल यूनाइटेड को मिलाकर महागठबंधन बनाने में भी प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) का अहम रोल था. चुनाव में जीतने के बाद सीएम नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को राज्य मंत्री का दर्जा दिया था. मगर महागठबंधन टूटने के बाद बीजेपी के साथ बनी नई सरकार ने उन्हें पद से हटा दिया गया.
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अमित शाह की टीम ने नहीं दी तरजीह
2012 से ही प्रशांत किशोर को नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने की रणनीति पर काम कर रहे थे. 2014 चुनाव में प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ही नरेंद्र मोदी के लिए ‘चाय पे चर्चा’, युवाओं के बीच ‘मंथन’, ‘3डी रैली’ और ‘भारत विजय रैली’ जैसे कार्यक्रम कराए थे. ये सभी कार्यक्रम कामयाब रहे थे. मगर जीत की क्रेडिट मोदी और शाह को मिला. माना जाता है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की जीत के बाद अमित शाह ने जिस तरह प्रशांत किशोर की उपेक्षा की, उसका जवाब उन्होंने (Prashant Kishor) 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की बड़ी जीत दिला कर दिया.
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रणनीतिकार प्रशांत किशोर की जिंदगी
प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) बिहार के बक्सर के रहनेवाले हैं. उनके पिता श्रीकांत पाण्डेय पेशे से डॉक्टर थे और बक्सर में अपना क्लीनिक चलाते थे. वहां पर उनका घर भी है. प्रशांत के बड़े भाई अजय किशोर पटना में रहते हैं और खुद का बिजनेस है. इसके अलावा उनके परिवार में 2 बहनें हैं. प्रशांत ने इंटरमीडिएट की पढ़ाई पटना के प्रतिष्ठित साइंस कांलेज से की है. उसके बाद उन्होंने हैदराबाद के एक कॉलेज से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. फिर अफ्रीका में यूएन हेल्थ एक्सपर्ट के तौर पर काम किया. नौकरी छोड़कर प्रशांत (Prashant Kishor) 2011 में इंडिया लौटे. फिर 2012 से 2014 तक मोदी के लिए ‘इमेज रिपेयर’ के तौर पर काम किया. एक बच्चे के पिता प्रशांत किशोर का परिवार ज्यादातर वक्त दिल्ली में रहता है.
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