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बिहार विधानसभा चुनाव: अगर प्रशांत किशोर और तेजस्वी यादव साथ आ गए तो?

दिल्ली। आज नहीं तो कल प्रशांत किशोर (PK) को बलि का बकरा बनना ही पड़ेगा. उन्होंने जो रास्ता चुना है उसमें बचने की गुंजाइश कम ही है. ऐसे में प्रशांत के लिए 2 ही रास्ते बचेंगे. अगर राजनीति करनी है तो उनको कांग्रेस में जाना पड़ेगा या फिर आरजेडी में.

PK पर कोई कुछ क्यों नहीं बोलता?

शायद यही वजह है कि प्रशांत (PK) के बारे में न तो आरजेडी और ना ही कांग्रेस की तरफ कोई बड़ा नेता कोई बयान देता है. शायद इनको मालूम है कि 8 महीने बाद बिहार में चुनाव है और प्रशांत की जरूरत दोनों ही पार्टियों को पड़ सकती है.

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नीतीश कुमार भले ही बीजेपी के साथ सरकार चला रहे हैं लेकिन आज भी उन्हीं प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं जो प्रशांत ने 2015 चुनाव से पहले कांग्रेस-आरजेडी-जेडीयू गठबंधन के लिए बनाई थी. यानी सात निश्चय. ये बात कई बार नीतीश कुमार मंच से दुहरा चके हैं. वे भले ही आज दूसरे दल के साथ गठबंधन में है मगर उससे आमलोगों को कोई फर्क नहीं पड़ा, क्योंकि वो अपने ड्रीम प्रोजेक्ट (सात निश्चय) के जरिए लोगों के लिए काम कर रहे हैं.

कोयला को चमक देने की काबिलियत

चुनावी राजनीति में प्रशांत किशोर (PK) वो शख्स हैं जो कोयला को सोना की चमक दे सकते हैं. उसके विजन को लोगों तक साफ-साफ शब्दों में (मीडिया का इस्तेमाल कर) पहुंचा सकते हैं. एक नेता को कैसा दिखना चाहिए, क्या बोलना चाहिए, कितना बोलना चाहिए, बोलने में तथ्यों का कितना इस्तेमाल करना चाहिए, इससे उसकी पर्सनालिटी पर क्या इम्पैक्ट पड़ेगा.

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ये सबकुछ प्रशांत (PK) और उनकी टीम तय करती है. इस बात को नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव और राहुल गांधी बखूबी समझ रहे हैं. प्रशांत किशोर को भी अपना वैल्यू पता है. बिहार में उन्होंने बीजेपी में नीतीश के सबसे भरोसेमंद डिप्टी सीएम सुशील मोदी से पंगा लिया है.

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वो भी ऐसे समय में जब अमित शाह तीन-तीन कार्यक्रम में कह चुके हैं कि 2020 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी नीतीश कुमार की नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी. ऐसे में प्रशांत (PK) को इसकी कीमत तो चुकानी ही पड़ेगी. नीतीश कुमार इसको इसलिए लंबा खींच रहे हैं ताकि सीट शेयरिंग की बारगेनिंग में बीजेपी से मोलभाव अच्छी हो जाए.

तेजस्वी और नीतीश के लिए अग्निपरीक्षा

2015 में प्रशांत किशोर (PK) की ही रणनीति थी कि नीतीश कुमार-लालू प्रसाद-कांग्रेस ने मिल कर चुनाव लड़ा और महागठबंधन के जरिए बीजेपी को मात दे पाए. इस बार अगर प्रशांत का साथ कांग्रेस-आरजेडी और उसकी सहयोगी पार्टियों को मिल जाए तो अनुमान लगा सकते हैं.

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बिहार की राजनीति में नीतीश को अपनी प्रासांगिकता बचाए रखने की चुनौती है तो तेजस्वी यादव की सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा होगी. इस चुनाव में पता चल जाएगा कि लालू के इस लाल की बिहार में कितनी लोकप्रियता है? क्या बिहार के लोग सच में लालू की मुस्लिम-यादव राजनीति का उत्तराधिकारी मानते हैं?

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तेजस्वी यादव और आरजेडी के बारे में यही माना जाता है कि उसके पास बेस वोट बैंक तो है मगर जिताऊ वोट उसके पास नहीं है. जिताऊ वोट जुटाने की कला में लालू प्रसाद माहिर थे, वो बात तेजस्वी यादव में कम से कम अब तक तो नहीं दिखी. उनको एक अच्छे रणनीतिकार (PK) की जरूरत है. ऐसे में प्रशांत किशोर उनको सूट कर सकते हैं.

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पहले चुंकि प्रशांत किशोर एक प्रोफेशनल थे मगर अब वो एक सियासतदां बन चुके हैं. ऐसे में तेजस्वी से प्रशांत किशोर (PK) अपनी रणनीति की कीमत सियासी मांगेंगे, प्रशांत किशोर की कीमत तेजस्वी क्या दे पाते हैं उसी पर सबकुछ निर्भर करेगा. तेजस्वी अगर प्रशांत किशोर की मुराद पूरी कर पाए तो आगामी चुनाव बीजेपी और नीतीश दोनों के लिए मुश्किलों भरा हो सकता है.