दिल्ली। बिहार एक ऐसा प्रदेश हैं जहां आदमी की पहचान उसकी जाति से जुड़ी होती है. (Begusarai) जाति के हिसाब से पता चलता है कि वो कितना औकात वाला है. जाति के हिसाब से ही लोग अपनी रोजी-रोटी का जुगाड़ करते हैं. लोग कोशिश करते हैं कि अपनी जाति वाला के यहां से किसी सामान की खरीदारी करें.
जिस समाज में जाति के हिसाब से इतना कुछ हो रहा हो तो भला, जाति को कैसे अलग कर सकते हैं. जाति के हिसाब से ही राजनीतिक पार्टियां अपने उम्मीदवारों को टिकट बांटती है. अब ये महज संयोग ही है कि बेगूसराय (Begusarai) में सबसे ज्यादा भूमिहार जाति की आबादी है और उसी जाति से उसी जगह से लेफ्ट के उम्मीदवार कन्हैया कुमार आते हैं. जिनका मुकाबला बीजेपी के गिरिराज सिंह से है. हालांकि गिरिराज सिंह बेगूसराय के रहनेवाले नहीं हैं. फिर भी कन्हैया की जीत डावांडोल लग रही है.
‘पूरब का लेनिनग्राद’ बेगूसराय
‘पूरब का लेनिनग्राद’ कहा जाने वाला बेगूसराय राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की जन्मभूमि है. 2019 के लोकसभा चुनाव में बेगूसराय की एक बार फिर चर्चा में है. यहां देश-दुनिया के बड़े पत्रकार आ रहे हैं. बेगूसराय के गांव और गलियों का खाक छान रहे हैं. देश के बड़े समाजवादी लोगों का जमावड़ा है. शहर के बड़े होटलों में ठहरने की जगह नहीं है. यानी बाहरी लोगों से बेगूसराय (Begusarai) गुलजार है.
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खास बात ये है कि सभी सभाओं में भीड़ ठीकठाक जुट रही है. सभी भाषणबाजों को यहां के लोग बड़े ही तल्लीनता से सुनते हैं. कन्हैया कुमार की वजह से जो कभी बिहार नहीं आया वो अब बेगूसराय (Begusarai) आ रहा है. हाथ जोड़कर कन्हैया कुमार को जीतने की अपील कर रहा है. कभी नीतीश को भला-बुरा कहनेवाले गिरिराज सिंह को जीताने के लिए नीतीश कुमार भी बेगूसराय में कई सभाओं को संबोधित कर चुके हैं. लोगों से सूर्य भगवान की तरफ हाथ उठवा कर कसम खिला चुके हैं.
देशभक्त Vs देशद्रोह का आरोपी
बीजेपी के फायरब्रांड नेता गिरिराज सिंह, (Begusarai) जो किसी न किसी बात पर न जाने कितनों को पाकिस्तान चले जाने की सलाह देते रहते हैं. उनके सामने 2016 में जेएनयू के बहुचर्चित देश विरोधी कांड के आरोपी कन्हैया कुमार हैं. कन्हैया को लेफ्ट पार्टियों ने अपना उम्मीदवार बनाया है. पूरे दम-खम के साथ कन्हैया भी मैदान में डटे हैं.
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29 अप्रैल को चौथे चरण में यहां वोट डाले जाएंगे. सीपीआई उम्मीदवार कन्हैया और बीजेपी उम्मीदवार दोनों ही भूमिहार जाति से आते हैं. बेगूसराय (Begusarai) में भूमिहारों की अच्छी खासी आबादी है. सबसे ज्यादा वोटर हैं. यहां से जीतने वाले ज्यादातर कैंडिडेट भी भूमिहार जाति के ही हैं. यहां तक मामला कन्हैया कुमार के लिए ठीक लग रहा है.
ये ‘खेल’ दिलचस्प क्यों?
मगर ऊपरी तौर पर ठीक दिखने वाला बेगूसराय (Begusarai) में कन्हैया का खेल आरजेडी के तनवीर हसन बिगाड़ सकते हैं. तनवीर हसन की वजह से यहां मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है. दरअसल तनवीर हसन यहां पहले भी चुनाव लड़ चुके हैं. कहा जा रहा है कि मुस्लिम वोटरों पर उनकी अच्छी पकड़ है.
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बेगूसराय (Begusarai) के स्थानीय लोग तनवीर को मुसलमान भूमिहार तक कह डालते हैं. इसका मतलब ये हुआ कि भूमिहार बहुल कुछ गावों के लोग तनवीर को वोट करते हैं. तनवीर ने 2014 में बीजेपी को टक्कर दी थी. महज 58 हजार वोटों से हार गए थे. लेफ्ट से बीजेपी में आए भोला सिंह को 4 लाख 28 हजार 227 वोट मिले थे. जबकि सीपीआई को करीब 2 लाख वोट.
‘खेल’ अभी बाकी है?
अगर कन्हैया को यहां से विपक्ष की ओर से संयुक्त उम्मीदवार बनाया गया होता तो बीजेपी के लिए बेगूसराय (Begusarai) को बचाना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन होता. हालांकि जिस मुस्लिम वोटरों की वजह से कन्हैया की हार बताई जा रही है. वो मुस्लिम वोटर मतदान से पहले होने वाले जुम्मे के नमाज को तय करता है कि उसे किसे वोट देना है और कौन बीजेपी को हरा सकता है. इसलिए कन्हैया का ‘खेल’ बिगड़ा या बचा इसका फैसला अभी बाकी है.
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