योगी ने निकाल लिया दलित-मुस्लिम गठजोड़ का तोड़, पढ़िए क्या है ‘प्लान योगी’

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योगी ने निकाल लिया दलित-मुस्लिम गठजोड़ का तोड़, पढ़िए क्या है 'प्लान योगी'

योगी ने निकाल लिया दलित-मुस्लिम गठजोड़ का तोड़, पढ़िए क्या है 'प्लान योगी'

दिल्ली। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी में दलितों के लिए आरक्षण की बात छेड़ी है। योगी ने कहा कि ‘जब बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) दलितों और पिछड़े छात्रों के लिए आरक्षण प्रदान कर सकती है, तो एएमयू क्यों नहीं।’

हालांकि योगी आदित्यनाथ ने ये बयान योगी सरकार पर हाल के दिनों में दलितों के साथ भेदभाव को लेकर हो रहे हमले के जवाब में दिया है। लेकिन इस बयान के पीछे दरअसल विपक्ष के दलित-मुस्लिम गठजोड़ वाले समीकरण का तोड़ है। इसे समझने के लिए पहले हाल में हुए कैराना लोकसभा उपचुनाव के नतीजों पर गौर कीजिए।

कैराना के गणित से निकला ‘प्लान योगी’

कैराना सीट जो योगी आदित्यनाथ के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बनी थी, वहां बीजेपी की जबर्दस्त हार हुई। जिन्ना को लेकर योगी ने बयान देकर ध्रुवीकरण की कोशिश भी की, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। ना ही कैराना से बीजेपी के सांसद रहे हुकुम सिंह के निधन से खाली हुई सीट पर उनकी बेटी मृगांका सिंह के पक्ष में सहानुभूति फैक्टर काम आया। इसके पीछे बड़ी वजह थी दलित-मुस्लिम गठजोड़।

वोटों का अंकगणित साफ था। कैराना लोकसभा सीट पर 17 लाख वोटर्स हैं। इनमें 5 लाख मुस्लिम, 4 लाख पिछड़ी जाति (जाट, गुर्जर, सैनी, कश्यप, प्रजापति और अन्य शामिल) और करीब ढाई लाख वोट दलितों के हैं। यानी दलित-पिछड़ा-मुस्लिम गठजोड़ के आगे बीजेपी की हर रणनीति नाकाम रही और विपक्ष इसी गठजोड़ के बूते 2019 फतह करने के सपने देख रहा है। ऐसे में जरूरी था कि इस गठजोड़ को तोड़ा जाए।

जामिया और एएमयू में आरक्षण ‘राग’

अब योगी आदित्यनाथ ने जामिया और एएमयू में दलितों को आरक्षण देने का राग छेड़कर मुस्लिम और दलितों के बीच गठजोड़ तोड़ने की कोशिश शुरु कर दी है। बल्कि एक तीर से कई निशाना साधने की कोशिश की है। योगी आदित्यनाथ के इस बयान पर विपक्ष के नेता चाहकर भी कुछ नहीं बोल सकते हैं।

अगर आरक्षण देने के विरोध में बोलते हैं, तो दलित नाराज होंगे और समर्थन में बोलते हैं…तो मुस्लिम मतदाताओं की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है। वहीं ‘बीएचयू में दलितों को आरक्षण तो जामिया और एएमयू में आरक्षण क्यों नहीं’ का राग छेड़कर सवर्णों की दुखती रग पर हाथ रखकर ध्रुवीकरण की भी कोशिश की है। क्योंकि इस आधार पर मुमकिन है बीएचयू में भी दलितों के आरक्षण का विरोध शुरू हो जाए और सवर्ण एकजुट हो जाएं। नतीजे जो भी हों…लेकिन एक बात साफ है कि 2019 के चुनाव से पहले दोनो तरफ से आरक्षण का कार्ड ही खेला जा रहा है और 2019 का चुनाव आरक्षण के इर्द-गिर्द होगा ना कि विकास के मोदी मॉडल के इर्द-गिर्द।

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