बिहार के किसी ब्राह्मण नेता को 26 साल बाद कांग्रेस ने बनाया प्रदेश अध्यक्ष, आखिर क्यों?

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बिहार के किसी ब्राह्मण नेता को 26 साल बाद कांग्रेस ने बनाया प्रदेश अध्यक्ष, आखिर क्यों?

बिहार के किसी ब्राह्मण नेता को 26 साल बाद कांग्रेस ने बनाया प्रदेश अध्यक्ष, आखिर क्यों?

पटना। बिहार की राजनीति में हासिए पर चल रहे ब्राह्मण नेताओं की पूछ क्यों बढ़ी है? ब्राह्मण नेताओं की अहमियत कांग्रेस पहले बिल्कुल भूल गई थी. वो दलित, पिछड़े और दूसरे सवर्ण नेताओं के पीछे भाग रही थी. जबकि बिहार की बाकी पार्टियां इनकी अहमियत समझते हुए तरजीह देती रही थी. सत्ता का सुख भी लेती रही. बिहार के जातीय आंकड़ों की माने तो सवर्ण जातियों में सबसे ज्यादा ब्राह्मणों की तादाद है. सामाजिक गुणा-गणित में भी ब्राह्मण फिट बैठते हैं. इसकी अहमियत आरजेडी, बीजेपी और जेडीयू समझती रही. मगर कांग्रेस को ये समझने में 26 साल लग गए.

ब्राह्मण नेताओं की पूछ क्यों बढ़ी है?

2019 का लोकसभा चुनाव सिर पर है. कांग्रेस, आरजेडी और हम का महागठबंधन में है. मुस्लिम और यादव पहले से ही आरजेडी के साथ है. मांझी को भरोसा है कि दलित वोटर उनको जिताएंगे. आरजेडी के पास राजपूत जाति के कई बड़े नेता हैं. मगर सवर्ण वोट लिहाज से अहम ब्राह्मणों को बीजेपी का बेस वोटर माना जाता है. कांग्रेस ने इसी गुणा-गणित को बिठाकर मदन मोहन झा को बिहार कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया है.

ब्राह्मण नेताओं की पूछ क्यों बढ़ी है? इस सवाल का जवाब भी जान लीजिए. कांग्रेस के पारंपरिक वोटर रहे ब्राह्मणों को कुछ हिस्सा भी अगर पार्टी के साथ जुड़े तो बड़ी बात होगी. इससे बीजेपी को मात देने में आसानी होगी. कांग्रेस ने दूसरी अगड़ी जातियों के नेताओं को नंबर 2 को पोजिशन पर बिठाया है. यानी पार्टी ने मैसेज देने की कोशिश की है कि वो सवर्णों की हितैषी पार्टी है. मगर 26 साल एक लंबा अरसा होता है. ऐसे में भरोसा जताने के लिए मदन मोहन झा को काफी मेहनत करनी होगी.

आखिरी ब्राह्मण अध्यक्ष जगन्नाथ मिश्रा

बिहार की सियासत में कहा जा रहा है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मदन मोहन झा को पार्टी अध्यक्ष बनाकर ब्राह्मण कार्ड खेला है. ऐसे में ये समझना आसान हो जाता है कि आखिरी ब्राह्मण नेताओं की पूछ क्यों बढ़ी है? प्रदेश में करीब 8 फीसदी ब्राह्मण मतदाता हैं. कांग्रेस का ये परंपरागत वोट माना जाता था. मगर बीजेपी के उभार और कांग्रेस का ब्राह्मण नेताओं पर भरोसा नहीं करने से ये वोट छिटक गया. 1992 में बिहार कांग्रेस के आखिरी ब्राह्मण अध्यक्ष जगन्नाथ मिश्रा थे. तब से प्रदेश कांग्रेस का कोई ब्राह्मण अध्यक्ष नहीं हो पाया.

ऐसी बात नहीं कि कोई ब्राह्मण नेता इस काबिल नहीं था. केंद्रीय नेतृत्व को लगा कि दूसरी जातियों पर भरोसा कर वो दूसरे वोट बैंक को रिझा पाएगी, मगर ऐसा नहीं हुआ. जो परंपरागत वोटर था वो बीजेपी के तरफ शिफ्ट हो गया. बिहार में कांग्रेस की मजबूरी आरजेडी हो गई. फिर आरजेडी ने जैसे चाहा, वैसे कांग्रेस को नचाया. आरोप ये भी लगे कि कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व को अपने नेताओं से ज्यादा लालू प्रसाद पर भरोसा है. इसकी वजह से कांग्रेस गर्त में जाती रही. अपने मूल वोटर को भी गंवाती रही. आलम ये हो गया कि बिहार के जो खांटी कांग्रेसी रहे वो वोट डालना तक छोड़ दिए. नेताओं का मनोबल गिरता रहा. जब नेता का मनोबल गिरा रहेगा तो कार्यकर्ता और वोटर कहां टिकेगा.

दूसरी पार्टियों में ब्राह्मण नेताओं की भरमार

इस दौरान आरजेडी अपने सवर्ण नेताओं को तरजीह देती रही. यही वजह है कि शिवानंद तिवारी, मृत्युंजय तिवारी, मनोज झा, रघुवंश प्रसाद सिंह, जगदानंद सिंह जैसे नेता मीडिया में आकर बयान देते रहे. बीजेपी की तरफ से किसी भी मामले पर मंगल पाण्डेय और अश्विनी चौबे हाजिर हो जाते हैं. जेडीयू ने पिछड़े तबके के नेताओं को अपने साथ रखा, मगर वशिष्ठ नारायण सिंह को नीतीश कुमार ने बनाए रखा. आज भी बिहार जेडीयू के अध्यक्ष हैं. हाल ही में ब्राह्मण प्रशांत किशोर को नीतीश कुमार ने सदस्यता दिलाई और पार्टी का भविष्य बताया.

बिहार के सामाजिक ताना-बाना में शायद ही दलितों और पिछड़ों का कभी ब्राह्मणों से टकराव हुआ हो. इसकी अहमियत दूसरी पार्टियां बखूबी समझती रही, मगर कांग्रेस को ये समझने में एक पीढ़ी का गैप हो गया. इसका नतीजा ये रहा कि बीजेपी उन्हें अपना परंपरागत वोटर मान कर चलने लगी. अब बिहार कांग्रेस को नया ब्राह्मण अध्यक्ष मिला है तो देखने वाली बात होगी की वो पार्टी में कितना जोश भर पाते हैं. ब्राह्मण नेताओं की पूछ क्यों बढ़ी है? और आगे क्यों बढ़ेगी ये जानना आसान हो जाता है.

नए नवेले प्रदेश अध्यक्ष एक खांटी कांग्रेसी

बिहार कांग्रेस के नए अध्यक्ष मदन मोहन झा को सियासत, विरासत में मिली है. एक अगस्त 1956 में जन्मे मदन मोहन झा के पिता डॉक्टर नागेंद्र झ बिहार सरकार में मंत्री थे. वे दरभंगा जिले के मनीगाछी के बधात गांव के रहनेवाले हैं. मदन मोहन झा ने कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई के जरिए सियासी पारी को आगे बढ़ाया. बाद में महासचिव बने. इसके बाद बिहार युवा कांग्रेस के महासचिव रहे. बाद में बिहार कांग्रेस के उपाध्यक्ष और कोषाध्यक्ष की भी जिम्मेदारी उठाई. 1985 से 1995 तक विधायक रहे और फिलहाल वो विधान पार्षद हैं. खुद कभी बिहार सरकार में मंत्री थे. यानी संगठन और सरकार का एक लंबा अनुभव के साथ खांटी कांग्रेसी हैं.

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