नीतीश कुमार की वो कौन-सी बात हैं जिसे उपेंद्र कुशवाहा भूल नहीं पाए?

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upendra kushwaha: नीतीश की वो कौन-सी बात हैं जिसे कुशवाहा भूल नहीं पाए?

नीतीश कुमार की वो कौन-सी बात हैं जिसे उपेंद्र कुशवाहा भूल नहीं पाए?

पटना। नरेंद्र मोदी सरकार से आखिरकार उपेंद्र कुशवाहा (Upendra kushwaha) अलग हो ही गए. राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से अलग होने का एलान कर ही दिया. जिसका अनुमान काफी दिनों से लगाया जा रहा था. पिछले कुछ दिनों से वे भारतीय जनता पार्टी और नीतीश कुमार की लगातार आलोचना कर रहे थे.

घर से फेंकवा दी थी सामान

शुरुआती दिनों में नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाहा के रिश्ते इतने बुरे नहीं थे, जितने अब दिखने लगे हैं. साल 2003 में नीतीश कुमार ने उपेंद्र कुशवाहा को बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया था. यानी मुख्यमंत्री के बाद सबसे ताकतवर कुर्सी उपेंद्र कुशवाहा (Upendra kushwaha) के पास रही थी. नीतीश कुमार को उपेंद्र कुशवाहा (Upendra kushwaha) सार्वजनिक तौर पर बड़ा भाई बता चुके हैं. 2003 के बाद 2005 में नीतीश कुमार पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने उपेंद्र कुशवाहा (Upendra kushwaha) से उनका बंगला खाली कराने के लिए उनकी गैरमौजूदगी में उनके घर का सामान तक बाहर फिंकवा दिया था. लगता है कुशवाहा आज तक उस बात को भूल नहीं पाए हैं. जिस वक्त उनके घर का सामान बाहर फिंकवा गया था उस वक्त बंगला में उनकी मां अकेली थी.

जब उपेंद्र को भेजा राज्यसभा

उपेंद्र कुशवाहा (Upendra kushwaha) समता पार्टी से बाहर निकले और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी बनाई. फिर अपनी राजनीति जमीन बनानी शुरू कर दी. 2009 के लोकसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा (Upendra kushwaha) ने बिहार की सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए. इन उम्मीदवारों ने 25 हजार से लेकर 40 हजार तक वोट हासिल किए. बाद में एक सार्वजनिक सभा में नीतीश कुमार ने उपेंद्र कुशवाहा (Upendra kushwaha) को गले लगाया और सभी शिकायतों को दूर करने का भरोसा दिया. उपेंद्र कुशवाहा (Upendra kushwaha) को राज्यसभा भेज दिया. 2013 में उपेंद्र कुशवाहा (Upendra kushwaha) ने राज्यसभा से इस्तीफा देकर फिर सड़क पर आ गए. अपनी नई पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के नाम से. 2014 में नरेंद्र मोदी और अमित शाह के साथ गठबंधन में आए. तीन सीटें हासिल कर केंद्र में मंत्री बन गए. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में कुशवाहा एनडीए में थे और नीतीश कुमार महागठबंधन में.

उपेंद्र कुशवाहा (Upendra kushwaha) एक बार फिर मंत्री पद और बंगला छोड़कर सड़क पर हैं. लेकिन उनके लिए ये कोई नई बात नहीं है. कहा जाता है कि कुछ कदम उठाने से पहले उपेंद्र कुशवाहा (Upendra kushwaha) बहुत विचार नहीं करते हैं. मगर इस बार मसला थोड़ा अलग है. अगर एनडीए से निकलने का फैसला वो 11 दिसबंर को करते तो उनकी आलोचना इस बात पर होती कि राज्यों में चुनाव परिणान के बाद उन्होंने कैलकुलेट करके एनडीए से बाहर होने का फैसला लिया है.

इस वजह से महागठबंधन से बुलावा

2017 में नीतीश कुमार जब महागठबंधन से निकल कर एनडीए में आए तो तभी से कहा जा रहा था कि उपेंद्र कुशवाहा (Upendra kushwaha) ज्यादा दिनों तक एनडीए में नहीं रहेंगे. चुनावी गणत के लिहाज से देखें तो बिहार की 243 विधानसभा सीटों में करीब 63 ऐसी हैं जहां कुशवाहा समुदाय के वोटरों की तादाद 30 हजार से ज्यादा है. इसके अलावा बाकी विधानसभा सीटों पर कुशवाहा मतदादा काफी तादाद में हैं. बिहार में 6-7 फीसदी कुशवाहा मतदाताओं में 3 फीसदी को भी उपेंद्र कुशवाहा (Upendra kushwaha) अपनी तरफ जोड़ पाते हैं तो दूसरे के पलड़े को मजबूत बना सकते हैं. शायद राजनीति के माहिर खिलाड़ी लालू प्रसाद इस चीज को बखूबी समझते हैं. तभी महागठबंधन में उपेंद्र कुशवाहा (Upendra kushwaha) की बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है. हालांकि यहां उनके मुख्यमंत्री बनने की महात्वाकांक्षा पूरा नहीं होगा. ये तय है.

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