न्यूयॉर्क। विदेश में कुछ तिलस्म तो है जिसकी वजह से हर इंसान इसकी तरफ़ खिंचा चला आता है। एक नए देश में, नये नये लोगों के बीच, पर न जाने क्यूं अपना वतन बहुत याद आता है इसलिए मैं कुछ ऐसा तलाश करने निकल पड़ती हूं जहां अपने देश सा कुछ मिल जाए।
चारों तरफ खुशियां ही खुशियां
अमेरिका में मेरे देश जैसा कुछ भी तो नहीं है। न सड़कों पर रोते गरीब बच्चे, न गर्मी में पिसते मज़दूर। न भ्रष्टाचार में डूबे लोग और न ही अपने ही देश को बेच खाने वाले कपटी पाखंडी लोग। न यहां बेरोज़गार युवा है और न ही देश को उजाड़ देने वाले कीड़े। यहां ऐसा कुछ नहीं है जो मुझे मेरे घर की याद दिला सकें।
न अपनापन और ना ही रोकटोक
न अपनापन है यहां और न अपनों के साथ बाटें जाने वाली ख़ुशी। न बड़ो की रोकटोक है यहां और न ही उनको मनाने की मुश्किल। न कोई आंसू पोंछने वाला और न ही कोई सवाल करने वाला। वाकई ज़िन्दगी काफ़ी आसान है यहां.
विदेश में भी अपनापन
लेकिन कुछ है जो देश और विदेश दोनों ही जगह अपनेपन का एहसास दिला ही जाता है जैसे अमेरिका की हवा, अमेरिका का आसमान और अमेरिका की ज़मीन। ठंडी हवाएं जब चेहरे को छू कर गुज़रती है तब अपने घर की खुशबू मेरी रगों में दौड़ जाती है।
दिल को छू जाने वाला माहौल
कभी कभी सड़क के किनारे लहलहाते फ़सल देख मन ख़ुश हो जाता है, आख़िर यही ज़मीन मां कहलाती है अपने देश में, और सच है सिर्फ़ मां ही है जो कभी साथ नहीं छोड़ती। कभी कभी झील के किनारे भी मुझे अपने देश में होने का एहसास दिला जाता है जहां का पानी कहीं न कहीं जा कर उसी समंदर में मिलता है जिस समंदर में हमारे पूर्वजों की राख तैरती है.
अमेरिका से न्यूजफ्राई के लिए प्रिया शुक्ला की रिपोर्ट