जब इन राजनीतिक संकटों से हिल गया था देश, एक वोट से गिर गई थी अटल बिहारी की सरकार

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जब इन राजनीतिक संकटों से हिल गया था देश

जब इन राजनीतिक संकटों से हिल गया था देश, एक वोट से गिर गई थी अटल बिहारी की सरकार

दिल्ली। कर्नाटक जैसे राजनीतिक हलात देश में कई बारे बने हैं, जब शक्ति परीक्षण से पहले ही सरकारें गिर गईं। कर्नाटक में येदियुरप्पा के शपथ के 55 घंटे बाद ही सरकार गिर गई। उन्हें जब लगा कि वे बहुमत साबित करने में नाकाम हैं तो इस्तीफा दे दिया।

इसके बाद वहां बीजेपी की सरकार गिर गई। 222 सीटों वाली विधानसभा में बीजेपी को 104 सीट ही मिले थे। बड़ी पार्टी होने के नाते राज्यपाल ने सरकार बनाने का न्यौता दिया था।

लेकिन भारतीय राजनीति में ऐसे दिलचस्प मौके कई बार आए हैं। ऐसी घटनाओं से भारतीय राजनीति का इतिहास भरा पड़ा है।

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अटल बिहारी वाजपेयी

दरअसल, 1998 में लोकसभा चुनाव हुए थे। चुनावों में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था। लेकिन अन्नाद्रमुक की मदद से एनडीए ने केंद्र में अपनी सरकार बनाई। इस सरकार के मुखिया अटल बिहारी वाजपेयी थे।

13 महीने बाद अन्नाद्रमुक ने अपना समर्थन वापस ले लिया और सरकार अल्पमत में आ गई। विपक्ष की मांग पर राष्ट्रपति ने सरकार को बहुमत साबित करने के लिए कहा। संसद में फ्लोर टेस्ट हुआ और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार एक वोट से गिर गई, जिसका किसी को उम्मीद नहीं थी।

जिस एक वोट से सरकार गिरी वह वोट था ओडिशा के सीएम गिरधर गमांग का। गमांग उस समय ओडिशा के सीएम और सांसद भी थे। वो इस फ्लोर टेस्ट में अपना वोट डालने विशेष रूप से दिल्ली आए थे।

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मोरारजी देसाई

वहीं, देश में इमरजेंसी के लगभग दो साल बाद पूरे देश में विरोध की लहर तेज दी। उस वक्त की तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने इसे देखते हुए लोकसभा भंग करन चुनाव कराने की सिफारिश कर दी।

लेकिन इमरजेंसी लागू करने का फैसला चुनाव में इंदिरा के लिए घातक साबित हुआ। इसके साथ ही आजादी के 30 वर्ष बाद केंद्र में किसी गैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ।

इस दौरान में जनता पार्टी भारी बहुमत के साथ सत्ता में आई और मोरारजी देसाई पीएम बने। चरण सिंह उस सरकार में गृहमंत्री और उप प्रधानमंत्री बनें। लेकिन पार्टी में बढ़ते अंदरूनी कलह की वजह से मोरारजी देसाई की सरकार गिर गई।

चौधरी चरण सिंह

जिसके बाद चरण सिंह को मौका मिल गया, वे कांग्रेस व सीपीआई की मदद से चौधरी चरण सिंह ने 28 जुलाई 1979 को पीएम पद की शपथ ली।

उसके बाद प्रेसिडेंट नीलम संजीव रेड्डी ने उन्हें 20 अगस्त तक बहुमत साबित करने का मौका दिया था। लेकिन इंदिरा गांधी ने 19 अगस्त को ही अपना समर्थन वापस ले लिया और चरण सिंह ने फ्लोर टेस्ट से पहले ही इस्तीफा दे दिया।

वीपी सिंह

भारतीय राजनीति की एक और कहानी 1989 की है। जब 1988 में लोकनायक जय प्रकाश नारायण के जन्मदिन 11 अक्टूबर को जनमोर्चा, लोकदल, कांग्रेस (एस) और जनता पार्टी का विलय हुआ और नई पार्टी जनता दल का गठन हुआ।

वीपी सिंह को जनता दल का अध्यक्ष चुना गया। वीपी सिंह की ही अगुवाई में कई क्षेत्रीय दल एक ही झंडे के नीचे आ गए और नेशनल फ्रंट का गठन हुआ।

1989 में लोकसभा चुनाव हुए। नेशनल फ्रंट को अच्छी सफलता मिली पर इतनी भी नहीं थी कि वो सरकार बना सके। लेकिन वीपी सिंह ने बीजेपी और वाम दलों का बाहर से समर्थन लेकर सरकार बना ली और वे प्रधानमंत्री बन गए।

सरकार के एक साल हुए ही थे कि भाजपा ने रथ यात्रा की शुरुआत की। रथ कई राज्यों से होते हुए बिहार पहुंचा। बिहार में जनता दल की सरकार थी और लालू यादव वहां के सीएम थे।

उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी के रथ को रोक दिया और गिरफ्तार कर लिया। इस घटना के बाद बीजेपी ने केंद्र सरकार से समर्थन वापस ले लिया और केंद्र में वीपी सिंह की सरकार गिर गई।

चंद्रशेखर

1990 में वीपी सिंह के इस्तीफे के बाद जनता दल के नेता चंद्रशेखर ने अपने समर्थकों के साथ पार्टी छोड़ दी और समाजवादी जनता पार्टी का गठन किया। उसी साल चंद्रशेखर ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बना ली।

लेकिन सात महीने बाद ही कुछ ऐसा हुआ कि उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा। दरअसल, दो मार्च 1991 को हरियाणा पुलिस के सिपाही प्रेम सिंह और राज सिंह राजीव गांधी के निवास 10 जनपथ के बाहर जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किए गए।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक दोनों सादे कपड़ों में थे औऱ गिरफ्तारी के बाद उन्होंने स्वीकार किया कि वो कुछ सूचना जुटाने वहां भेजे गए थे।

इस घटना के बाद देश में फिर राजनीतिक भूचाल आ गया और कांग्रेस ने केंद्र सरकार से अपना समर्थन वापस लेने की घोषणा कर दी। इसके बाद संसद में फ्लोर टेस्ट की नौबत आई।

लेकिन चंद्रशेखर ने सबको चौंकाते हुए फ्लोर टेस्ट से पहले ही छह मार्च 1991 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

मुलायम सिंह यादव

वहीं, यूपी की राजनीति में भी ऐसी दिलचस्प घटना हुई है। साल 1992 में मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी जनता पार्टी से अलग होकर समाजवादी पार्टी का गठन किया।

एक साल बाद यूपी में विवादित ढांचा ध्वस्त कर दिया गया। राज्य की सत्तारूढ़ कल्याण सिंह की सरकार को इस घटना के बाद बर्खास्त कर दिया गया था। इसके बाद चुनाव होने थे।

समाजवादी पार्टी और मायावती की पार्टी के बीच गठबंधन हुआ। इन दोनों दलों ने मिलकर सरकार बनाई, हालांकि गठबंधन की यह सरकार अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी।

बसपा ने सरकार से समर्थन वापस ले लिए। यूपी विधानसभा में फ्लोर टेस्ट हुआ और भाजपा के समर्थन से मायावती सीएम बनीं और सपा खुद को ठगा महसूस कर सत्ता से बाहर हो गई।

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